यूपी का चुनाव इस समय देश का सबसे बड़ा चुनाव है। इसलिए उसे 2024 के राष्ट्रीय चुनाव का सेमीफ़ाइनल भी कहा जा रहा है। कड़ी ठंड और कोविड की 'तीसरी लहर' के डर के बावजूद अब यूपी में चुनावी-गर्मी कुछ तेज़ हो गयी है। इधर कुछ दिनों से राजनीतिक दलों के बीच तरह-तरह के आरोपों-प्रत्यारोपों का दौर भी चालू हो गया है। इसमें मीडिया, खासकर टीवीपुरम् के कुछ चैनल और कुछ हिन्दी अख़बार भी 'एक पक्ष' बनकर सामने आये हैं। वे खुलेआम 'सत्ताधारी टीम' के लिए 'बल्लेबाजी' और 'गेंदबाजी' करते नज़र आ रहे हैं।
अखिलेश-मायावती पर जातिवाद का आरोप लगाने वाले क्या अपनी गिरेबान में झाँकेंगे?
- विचार
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- 18 Jan, 2022

इस वक़्त ऐसी आलोचना के निशाने पर ज़्यादा अखिलेश ही हैं क्योंकि फिलवक्त उन्हीं की पार्टी विकल्प के बड़े समूह के तौर पर देखी जा रही है। कहा जा रहा है कि उनकी पिछली सरकार के दौरान ज़्यादातर महकमों या महत्वपूर्ण सरकारी पदों पर यादवों को बैठा दिया गया था! क्या यह आरोप या आँकड़ा सही है?
इस बीच 'मीडियापुरम् की आवाजें' समाज़ के विभिन्न हिस्सों में भी असर डाल रही हैं। आज सबेरे-सबेरे की सैर के दौरान दो कुलीन दिखते लोगों को कहते सुना कि सरकार चाहे जितना किया या ना किया; वो अपनी जगह है पर मुलायम, अखिलेश या मायावती की तरह ये सरकार जात-पात तो नहीं करती! मुलायम अखिलेश जब आते हैं तो 'यादवों का राज' हो जाता है और मायावती आती है तो चारों तरफ अपनी जाति के लोगों की मूर्तियां लगवा देती हैं। अफसर भी हर जगह दलित ही तैनात हो जाते हैं!