आज जो चीन के सम्पूर्ण बहिष्कार का नारा दे रहे हैं, वे कल तक अफ़सोस कर रहे थे कि चीन ने विकास की जो ऊँचाइयाँ हासिल कर ली हैं, हम उनके क़रीब भी क्यों नहीं पहुँच पाए हैं।
राजनीति में झूठ बोलना क्या एक नये दौर में पहुँच गया है। अमेरिका में तो मीडिया ने ट्रम्प के झूठ की लंबी फेहरिस्त तक छापी है। इस पर शोध हुए हैं कि उनके लगातार झूठ और ग़लत तथ्यों की जानकारी देने की ख़बरें छपने के बावजूद जनता और झूठ क्यों माँगती है।
जॉर्ज फ़्लॉयड की हत्या के बाद सारे अमेरिका में जो शोक और रोष उमड़ पड़ा है, उसमें गोरे भी बड़ी संख्या में शामिल हुए हैं।
एक तरफ़ छात्रों की गिरफ़्तारियों की ख़बर दिल्ली, अलीगढ़ और इलाहाबाद से आ रही है और दूसरी तरफ़ विश्वविद्यालय ऑनलाइन इम्तहान की चिंता में क्यों?
सीमा भारत और पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश या म्यांमार के बीच नहीं रह गई है, अब बिहार और उत्तर प्रदेश, राजस्थान और गुजरात, असम और मेघालय या कर्नाटक और केरल के बीच खिंच गई है।
प्राथमिक भाव भय का था। फिर घृणा। और तब स्वाभाविक क्रम में हिंसा। यह कैसे हुआ जबकि घोषणा युद्ध की की गई थी प्रत्येक देशवासी को योद्धा की पदवी प्रदान की गई थी? तो योद्धा कौन था और वीरता को कहाँ देखा हमने?
प्रेस स्वतंत्रता दिवस गुज़र गया। भारत के सूचना विभाग के मंत्री ने इस मौक़े पर दिए गए रस्मी बयान में दावा किया कि भारत में प्रेस को पूरी आज़ादी है। इस बयान को किसी ने नोटिस लेने लायक़ नहीं समझा। क्यों?
बंबई उच्च न्यायालय ने सरकार को समाज के जाने माने लोगों की मदद लेने की सलाह दी। मैं बंबई उच्च न्यायालय को कहना चाहता था कि इस समाज में अब कोई ऐसा बचा नहीं। सबकी प्रतिष्ठा रौंद डाली गई है।
जो कम्पनी आज 5000 लोगों को खाना बाँट रही है, वह जब 1000 कामगारों की छँटनी करेगी तो हम जो उससे यह अनुदान लेकर लोगों को ज़िंदा रखने का संतोष लाभ कर रहे हैं, क्या उन कामगारों की तरफ़ से कुछ बोल पाएँगे?
पिछले महीने दिल्ली के उत्तर पूर्वी इलाक़े में जो हिंसा हुई, उसके गुनहगारों को पहचानने और पकड़ने में दिल्ली पुलिस जुटी हुई है। पुलिसकर्मी पूरी चुस्ती के साथ एक-एक कर उन्हें पकड़ रही है।
भूखे भजन न होई गोपाला। पुरानी कहावत है। जब मैं हर रात इस चिंता में रहूँ कि कल सुबह खाना नसीब होगा कि नहीं, कितने बजे आएगा, कितना मिलेगा, ठीक इसी घड़ी कोई मेरी आध्यात्मिक चिकित्सा करने आ धमके तो मैं उसके साथ कैसा बर्ताव करूँगा?
कोरोना वायरस के फैलने से रोकने के लिए लॉकडाउन किया गया तो हज़ारों लोग पैदल ही घर की ओर निकल गए। आख़िर ये चुपचाप निकल क्यों गए? इन्होंने आवाज़ क्यों नहीं उठाई?
युद्ध, महामारी, ये दो ऐसी स्थितियाँ हैं जिनमें हम सबको भेदभाव भुलाकर न सिर्फ़ एक हो जाने के लिए कहा जाता है, बल्कि राज्य से भी एक हो जाने के लिए कहा जाता है। इसलिए विद्रोह की बात तो कोई सोच ही नहीं सकता।
किस क़िस्म की हिंसा दिल्ली में हुई? इस पर बहस चल ही रही है। कुछ लोगों ने इसे हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दंगा कहा जिसमें दोनों पक्षों ने हिंसा की।
ऑश्वित्ज़ एक क़त्लगाह का नाम है। ऑश्वित्ज़ में कैद और अनिवार्य हत्या की प्रतीक्षा कर रहे लोगों में से जो बचे रह गए थे उन्हें आज से 75 साल पहले, 27 जनवरी, 1945 को सोवियत संघ की लाल सेना ने मुक्त किया।
नागरिकता संशोधन क़ानून और एनआरसी के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन को हिंदू-मुसलमान के नज़रिए से क्यों देखा जा रहा है?
जेएनयू में कौन थे ये गुंडे? क्या ये सत्ताधारी दल से जुड़े थे? क्या ये किसी छात्र संगठन के थे? वे इतने इत्मीमान से निकल कैसे गए? एक भी पकड़ा क्यों न जा सका?
नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन क्यों है? क्या यह सिर्फ़ मुसलमान का मामला है? क्या मेरे सामने किसी और को बेइज़्ज़त किया जा रहा हो तो मुझे ख़ामोश रहना चाहिए? क्या उसके बाद भी में इंसान रह जाऊँगा?
नागरिकता संशोधन विधेयक केंद्रीय सरकार के मंत्रिमंडल ने पारित कर दिया है। सरकार इसे क्यों लाना चाहती है? क्या धार्मिक आधार पर ऐसे भेदभाव की इजाज़त संविधान देता है?
भारत का पूँजीपति वर्ग अमेरिका के मुक़ाबले अधिक राज्याश्रित है। इसलिए वह राज्य की आलोचना करने से बचता है। तो राहुल बजाज क्योंकर बोल पाए?
महाराष्ट्र में आख़िरकार भारतीय जनता पार्टी जीत गई। कैसे, यह प्रश्न अप्रासंगिक है। जीतना ही असल बात है। जीत ही परम सत्य है। जीत ही नैतिकता है। जो जीतता है, वही सच्चा और नैतिक है।
9 नवंबर, 2019 के बाद अब यह कहा जा रहा है कि ठहरे रहने का नहीं, आगे बढ़ने का वक़्त है। शायद उच्चतम न्यायालय ने अपने फ़ैसले से हमें आगे बढ़ने का अवसर दिया है।
रिपोर्ट बताती है कि बहुत सारी दलित औरतों ने पाया कि ज़मीन के काग़ज़ पर से उनके नाम हट गए हैं और उनके मालिक अब गाँव के दबंग जातियों के लोग हैं। क्यों है ऐसी स्थिति?
पीलीभीत के एक स्कूल के हेडमास्टर का निलंबन इस आरोप के बाद हुआ कि वह छात्रों को एक धार्मिक प्रार्थना करने को मजबूर कर रहे थे। स्कूलों में प्रार्थना हो या नहीं?
विडंबना देखिए कि जिस साल गाँधी के जन्म के 150 साल पूरे होने का जश्न मनाया जा रहा था उसी साल गाँधी की हत्या के षड्यंत्र के सरगना को भारत रत्न बनाने की माँग की जा रही थी। 2019 में अपूर्वानंद ने यह स्तंभ लेखा।
वर्धा के महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में अजब-गज़ब हुआ। पीएम को चिट्ठी लिखने के लिए अजीब नियमों के तहत छह छात्रों को निकाला और अब आख़िरकार पलटना पड़ा।