कोरोना और कारागार का क्या रिश्ता है? यह अनुप्रास अलंकार का एक प्रयोग भर नहीं है। ईरान ने, जिसे हम ख़ासा क्रूर राज्य मानते हैं, 85,000 कैदियों को अस्थायी तौर पर छोड़ दिया है। इनमें राजनैतिक कैदी भी शामिल हैं। वह अपनी जेलों पर इन कैदियों की संख्या के कारण जो दबाव है, उसे कम करना चाहता है। कोरोना का सामना करने के लिए यह भी ज़रूरी है।
कोरोना का भय क्या सीनों में घुमड़ते विद्रोह को ख़त्म कर सकता है?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 23 Mar, 2020

कोरोना को लेकर 'जनता कर्फ्यू' के दौरान सड़क सूनी पड़ी।
आपातकालीन स्थिति में हम ख़ुद ही सरकारों की मदद करने लगते हैं। युद्ध, महामारी, ये दो ऐसी स्थितियाँ हैं जिनमें हम सबको भेदभाव भुलाकर न सिर्फ़ एक हो जाने के लिए कहा जाता है, बल्कि राज्य से भी एक हो जाने के लिए कहा जाता है। इसमें निजी अवकाश की माँग धार्मिक दूषण से कम नहीं। इसलिए विद्रोह की बात तो कोई सोच ही नहीं सकता।
ईरान से अलग ख़बर इटली से आई है। वहाँ फोग्गिया, अवेल्लिनो, बोलोंगा और मोदेना की जेलों से कैदियों के विद्रोह का समाचार मिला। यह 8 मार्च को शुरू हुआ। एक दिन पहले इटली के न्याय मंत्रालय ने कैदियों के परिजन और सामाजिक कर्मियों से उनकी मुलाक़ात पर पाबंदी लगा दी। ऐसा कोरोना के ख़तरे को देखते हुए किया गया। इस वजह से नाराज़ कैदियों ने बग़ावत कर दी। यह 3 दिनों तक चलता रहा। कुछेक जेलों को भारी नुक़सान भी हुआ है। इसमें 14 मौतें हुईं। इटली की सरकार ने कहा कि वह किसी भी ग़ैर-क़ानूनी हरकत को बर्दाश्त नहीं करेगी और जो कुछ भी हुआ वह आपराधिक था। सरकार हर कड़ा क़दम इसे दबाने के लिए उठाएगी।