प्राथमिक भाव भय का था। फिर घृणा। और तब स्वाभाविक क्रम में हिंसा। यह कैसे हुआ जबकि घोषणा युद्ध की की गई थी प्रत्येक देशवासी को योद्धा की पदवी प्रदान की गई थी? पूरे देश को मिलकर युद्ध करना था, यही तो कहा गया था? योद्धाओं के लिए शंखनाद किया गया था, आकाश से पुष्पवर्षा भी की गई थी? तो योद्धा कौन था और युद्ध के साथ लगा हुआ स्वाभाविक भाव वीरता को कहाँ देखा हमने? इन दो महीनों में वीरता की कितनी छवियाँ आपको याद आती हैं?
कोरोना: समाज अधिक डरपोक, हिंसक और क्रूर क्यों हो गया?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 11 May, 2020

अपने-अपने घर लौट रहे मज़दूरों को बीच में ही रोक दिया गया। (फ़ाइल फ़ोटो)
हम उनकी बात न करें जो इस घड़ी इंसानियत की याद को ज़िंदा रखने के लिए भाग-भाग कर भूखे प्यासे लोगों तक किसी भी तरह कुछ राहत पहुँचाने के जतन में लगे हैं। यह डरा हुआ समाज इनकी बहादुरी को अपनी शर्म ढँकने के लिए आड़ बनाएगा। लेकिन यह चतुराई है। क्योंकि यह मानवीयता इस भीरु और दास समाज के बीच अपवाद है। इसे यह समाज अपना गुण न कहे।
वे जो सबसे अधिक सुरक्षित थे, आर्थिक और सामाजिक रूप से और हर प्रकार से, वे सबसे अधिक डरे हुए थे और अब तक हैं। आप बड़े गेटवाली कॉलोनियों को देख लीजिए। डरे हुए लोग, अपने दड़बों में दुबके हुए। जिनके सहारे उनकी गृहस्थी चलती है, उन्हें हर बहाने से दूर करते हुए। वे जिनका स्वास्थ्य सबसे अधिक सुरक्षित है क्योंकि उनके पास पैसा है और पहुँच भी, वे सबसे अधिक डर गए उन्होंने ख़ुद को बंद कर लिया। इस वर्ग के पास पोषण और संपन्नता के कारण सबसे अधिक प्रतिरोधक क्षमता है लेकिन इसने इस क्षमता का इस्तेमाल समाज के लिए नहीं किया।