आज के समय की विडंबना पर शायद एक लम्बे वक़्त बाद ही बात हो पाएगी कि जिस साल गाँधी के जन्म के 150 साल पूरे होने का जश्न मनाया जा रहा था उसी साल गाँधी की हत्या के षड्यंत्र के आरोपी रहे को भारत रत्न बनाने की माँग की जा रही थी। इसके नेता वे ही थे जो देश को गाँधी के आदर्श पर चलने का उपदेश दे रहे थे। उस देश या उस जनता की समझ में जो भारी घपला है उसे इसी एक बात से समझा जा सकता है। यह कहते वक़्त इसकी सावधानी बरतना ज़रूरी है कि इस जनता में धर्म के लिहाज़ से हिंदू ही होंगे। मुसलमान या ईसाई या अन्य धर्मावलंबी इस जनता का हिस्सा नहीं हैं। यह भी कि यह हिंदू धार्मिक हिंदू नहीं हैं, राजनीतिक हिंदू हैं। यह उस विचारधारा का अनुयायी है जो हिंदुत्ववाद में यक़ीन करता है। यह विचारधारा अपनी वैधता व्यापक करने के लिए हिंदू शब्द की आड़ लेती है। इसका उद्देश्य शुद्ध सांसारिक है, सत्ता पर कब्जा करना और उस कब्जे को पक्का करने के लिए एक व्यापक आधार बनाना, भारत में यह आधार आसानी से हिंदुओं के सहारे तैयार किया जा सकता है। इसमें कोई पारलौकिक या आध्यात्मिक महत्वाकांक्षा नहीं है।
गाँधी की खाल ओढ़कर सावरकर के अनुयायी क्यों गा रहे हैं भजन?
- वक़्त-बेवक़्त
- |
- |
- 22 Oct, 2019

सावरकर के जीवनीकारों ने नोट किया है कि सावरकर वीरता की शिक्षा ज़रूर देते थे लेकिन ख़ुद वीरता दिखाने की मूर्खता उन्होंने नहीं की। कई मामलों में सावरकर ने ज़िम्मेवारी कबूल नहीं की। यही उन्होंने गाँधी की हत्या के प्रसंग में किया। हर मामले में सावरकर से प्रभावित और दीक्षित तरुण या युवा बलि चढ़ते रहे, स्वातंत्र्यवीर मुक्त रहे। इसे कायरता नहीं रणनीतिक चतुराई मानकर उनके आराधक उनपर मुग्ध होते रहे। अब यह एक प्रवृत्ति बन गई है।
गाँधी की हत्या के बाद सावरकर गिरफ़्तार हुए लेकिन हत्या में शामिल होने के सीधे साक्ष्य न होने के कारण संदेह का लाभ उन्हें मिला और वह छूट गए।