अंग्रेज़ी पढ़ा लिखा हत्यारा कहता है
वह झूठा तो है लेकिन मेरा अपना झूठा है
- वक़्त-बेवक़्त
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- 22 Jun, 2020

राजनीति में झूठ बोलने से क्या जनता को कोई दिक़्क़त नहीं है? अमेरिका में तो मीडिया ने ट्रम्प के झूठ की लंबी फेहरिस्त तक छापी है। इस पर शोध हुए हैं कि उनके लगातार झूठ बोलने और ग़लत तथ्यों की जानकारी देने की ख़बरें छपने के बावजूद जनता और झूठ क्यों माँगती है।
‘मुझे कहीं छिपना है, पुलिस पीछे पड़ी है'
आधुनिक प्रेमिका कहती है, ‘खून, अरे लाओ, पट्टी कर दूँ’
औरत से कहता है अभिजात अपराधी, ‘धन्यवाद।’
(यह एक शब्द में संस्कृति है)
पट्टी करती जब सर झुका कामिनी
मानो संवाद में बड़ा अभिप्राय भर कहता है,
‘तुमने पूछा नहीं खून कैसे लगा?’
‘यह मैं पूछना नहीं चाहती
इस समय मेरे लिए इतना ही काफ़ी है कि तुम मुश्किल में हो।’
हत्या की संस्कृति में प्रेम नहीं होता है
नैतिक आग्रह नहीं
प्रश्न नहीं …
‘हत्या की संस्कृति’ शीर्षक से रघुवीर सहाय की यह कविता जाने क्यों इन दिनों बार-बार याद आ रही है! अंग्रेज़ी पढ़ा लिखा, अभिजात और आधुनिक, इन विशेषणों पर ध्यान तो देना ही चाहिए लेकिन उससे अधिक मारक है इस पूरे कार्य व्यापार को संस्कृति कहना। हत्यारा हत्या के अपने कृत्य को छिपा नहीं रहा बल्कि एक तरह से प्रेमिका को चुनौती दे रहा है कि वह जो उसकी मरहम पट्टी कर रही है तो क्या यह नहीं समझ रही कि उसके हत्या के कृत्य को ऐसा करके वह जायज़ ठहरा रही है। प्रेमी को मुश्किल से बचाने के लिए छिपा लेना, भले ही वह हत्या करके क्यों न आया हो, यही प्रेमिका का कर्तव्य है। उकसाने पर भी वह सवाल नहीं करना चाहती। नहीं चाहती क्योंकि सवाल का जवाब तो उसे मालूम ही है। पुरानी नीति कविताओं की तरह इस छोटी-सी कविता के आख़िरी अंश में कवि इस पर अपना निष्कर्ष देता है। जिसे उसने संस्कृति कहा था, वह वास्तव में हत्या की संस्कृति है। आधुनिक प्रेमिका और अभिजात अपराधी के बीच जो कुछ हो प्रेम नहीं है। इस हत्या की संस्कृति में किसी नैतिकता की जगह नहीं। प्रेम, नैतिकता और प्रश्न करने की क्षमता का सीधा रिश्ता है। जब प्रश्नों का अभाव हो जाए तो नैतिकता का बचा रह जाना सम्भव नहीं है।