पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की शानदार जीत के पीछे विश्लेषक तरह-तरह के कारण गिना रहे हैं। कोई ममता की लोकप्रियता को वजह बता रहा है तो कोई उनके काम को। कोई बंगाली अस्मिता पर आधारित उनके अभियान को श्रेय दे रहा है तो कोई प्रतिपक्ष में सशक्त स्थानीय नेता के अभाव को इसका कारण बता रहा है। कुछ लोग ममता की जीत को इन सबका मिलाजुला परिणाम मान रहे हैं।
26% का साथ+22% की विवशता=तीसरी बार ममता
- पश्चिम बंगाल
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- 6 May, 2021

बंगाल की 70% आबादी जो हिंदू है और जिस पर किसी तरह का दबाव नहीं है, जिसके सामने जीवन-मरण का कोई प्रश्न नहीं है, जो 'निष्पक्ष' तौर पर सरकार के कामकाज पर अपनी राय दे सकती थी, उसमें से केवल 26-27% ने ममता को कामकाज को सराहा है।
लेकिन एक बात को सब नज़रअंदाज़ कर रहे हैं। वह यह कि क्या वाक़ई 48% वोट शेयर पर आधारित इस विशाल जीत का अर्थ यह है कि बंगाल की जनता ममता और उनकी पार्टी से बहुत ख़ुश है। मेरी राय है - नहीं। क्यों, यह मैं नीचे समझाने की कोशिश करता हूँ।
किसी के प्रदर्शन का आकलन अगर आपको करना हो तो आप कैसे करेंगे? मसलन किसी बच्चे ने कविता लिखी। क्या उसके माता-पिता उस कविता का सही और निष्पक्ष आकलन कर सकते हैं? शायद नहीं। और अगर कर भी सकते हों तो क्या बाक़ी दुनिया में उस आकलन की वह स्वीकार्यता होगी? नहीं होगी।
नीरेंद्र नागर सत्यहिंदी.कॉम के पूर्व संपादक हैं। इससे पहले वे नवभारतटाइम्स.कॉम में संपादक और आज तक टीवी चैनल में सीनियर प्रड्यूसर रह चुके हैं। 35 साल से पत्रकारिता के पेशे से जुड़े नीरेंद्र लेखन को इसका ज़रूरी हिस्सा मानते हैं। वे देश