कोरोना संक्रमण पर हर रोज दिल्ली में होने वाली मीडिया ब्रीफिंग में कुछ राज्यों में बढ़ते संक्रमण का ज़िक्र विशेष रूप से किया जाता है जबकि कई राज्यों और बहुत सारे तथ्यों से आँखें मूंद ली जाती हैं।
अब कई तरह के दबावों के बीच ऐसा लग रहा है कि भारत से वैक्सीन निर्यात का सिलसिला फिर से शुरू हो सकता है। नीति आयोग में स्वास्थ्य मामलों को देख रहे वी के पॉल ने कहा कि कोविड वैक्सीन का निर्यात पूरी तरह से हमारे राडार पर है।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और दवा बनाने वाली कंपनी एस्ट्राजेनेका द्वारा विकसित की गई वैक्सीन को लेकर दुनिया भर में जो हो रहा है वह आगे चलकर भारत के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है। यह सब भारत की वैक्सीन नीति से होगा।
महामारी का ख़तरा उन लोगों के लिए भी उतना ही है, लेकिन जिस तरह से म्याँमार यानी बर्मा में सेना ने चुनी हुई सरकार को अपदस्थ कर सत्ता पर कब्जा किया है, जनता तमाम ख़तरों को नजरंदाज करते हुए सड़कों पर निकल आई है।
पिछले दिनों जब देश के सबसे बड़े उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के बाहर विस्फोटों से भरी एक एसयूवी मिली तो चिंता की रेखाएँ हर तरफ़ दिखी थीं। 12 साल पहले मुकेश अंबानी के भाई अनिल अंबानी के साथ भी ऐसी ही घटना हुई थी।
सवा करोड़ लोगों को वैक्सीन देने का आँकड़ा काफी बड़ा लगता है, ख़ासकर जब इसकी तुलना हम दुनिया के दूसरे देशों से करते हैं। लेकिन अगर हम इसे प्रतिशत में बदल दें तो तसवीर कुछ दूसरी हो जाती है।
कभी दुनिया की क्रिकेट का चेहरा बदल देने वाले आस्ट्रेलियाई मीडिया मुगल कैरी पैकर और टेलीविजन की दुनिया बदल देने वाले रपर्ट मर्डाक अब सोशल मीडिया का चेहरा बदलने पर तुल गए हैं।
2020 की ख़ासियत यह रही है कि इस साल जितना भी बुरा हुआ, उसका आरोप मढ़ने के लिए एक खलनायक मौजूद है। ख़ासकर आर्थिक मोर्चे पर जितनी भी दुर्गति दिख रही है उसके लिए।
किसानों की आमदनी कैसे बढ़ाई जा सकती है, इसके लिए दो बातें अक्सर कही जाती हैं। सबसे पहले यह कहा जाता है कि भारत में कृषि उत्पादन काफी होता है और इसके निर्यात से किसानों की आमदनी को बढ़ाया जा सकता है।
मशहूर ब्रिटिश पत्रिका ‘द इकाॅनमिस्ट’ में पिछले हफ़्ते आवरण कथा थी- ‘विल इन्फ्लेशन रिटर्न?’, यानी क्या मुद्रास्फीति लौटेगी? अर्थशास्त्रियों की यह सबसे बड़ी चिंता है कि मुद्रास्फीति यानी महंगाई का असर वहाँ के बाजारों से ग़ायब हो चुका है।
सोशल मीडिया पर एक तसवीर बहुत ज़्यादा चलाई जा रही है- इसमें आंदोलन कर रहे किसानों के हाथों में भीमा कोरेगाँव, शाहीनबाग़ और दिल्ली दंगों के लिए गिरफ्तार किए गए लोगों के पोस्टर हैं। यह तसवीर क्या कहती है?
मध्य प्रदेश में हुई गौ-कैबिनेट की चर्चा जितनी उसकी बैठक से पहले हुई, बैठक के बाद उतनी नहीं हुई क्योंकि उसमें ऐसा कुछ हुआ ही नहीं कि कोई बड़ी चर्चा हो सके। क्या बीजेपी को वाक़ई गाय की चिंता है?
शुक्रवार को सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम के आपातकालिक प्रावधानों का इस्तेमाल करते हुए प्याज के भंडारण की सीमा तय कर दी। प्याज की कीमतें जिस तरह से और जिस तेजी से बढ़नी शुरू हुई हैं, उसे देखते हुए सरकार के पास कोई चारा भी नहीं था।
सितंबर महीने में महंगाई यानी मुद्रास्फीति की जो दर 7.34 फीसदी के रिकाॅर्ड स्तर पर पहुंच गई थी उसका सबसे बड़ा कारण था खाद्य वस्तुओं यानी खाने-पीने के जरूरी सामान का महंगा हो जाना।
देश के आर्थिक विमर्श में इन दिनों नई हरी पत्तियों की चर्चा अचानक ही शुरू हो गई है। सितंबर महीने के जो आँकड़ें हैं वे भले ही कोई बड़ी उम्मीद न बंधी रही हो, राहत तो दे ही रहे हैं।
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के आँकड़े बता रहे हैं कि कभी सबसे तेज़ी से तरक्क़ी कर रही अर्थव्यवस्थाओं में शुमार होने वाला भारत अब दुनिया की सबसे तेज़ी से नीचे गिर रही अर्थव्यवस्था बन गया है।