बहुत समय बाद ऐसा हो रहा है कि केंद्रीय बजट का बड़े स्तर पर इंतज़ार किया जा रहा है। कॉर्पोरेट और उद्योग क्षेत्र तो हर साल ही बजट का बेसब्री से इंतज़ार करता था। बजट से काफी पहले विभिन्न उद्योग संगठन वित्तमंत्री के सामने बजट में राहत रियायत पाने की अपनी उम्मीदें पेश कर देते थे। वे इंतज़ार करते थे कि इनमें से कितनों को वित्तमंत्री ने माना और कितनों को ठंडे बस्ते में डाल दिया।

अगर आप की निजी आय 15 लाख रुपये सालाना है तो 30 फ़ीसदी आयकर देना पड़ता है, लेकिन करोड़ों-अरबों रुपये कमाने वाली कंपनियों को अधिकतम 22 फ़ीसदी ही कर देना पड़ता है। क्या यह स्थिति बदलेगी?
लेकिन आम लोगों ने बजट से उम्मीद बांधना काफी समय से बंद कर दिया था। इसकी एक वजह यह है कि कौन-सा सामान कितना मंहगा हुआ या सस्ता अब यह ज़्यादातर जीएसटी से तय होता है, बजट से नहीं। दूसरे यह कि 2014 के बाद से बजट में सरकार ने मध्य वर्ग के लिए राहत या रियायत से मुँह मोड़ लिया है। कुछ समय पहले आयकर दरों में जो रियायत दी भी गई तो न्यू टैक्स रिजीम और ओल्ड टैक्स रिजीम में बांटकर उलझन भर बना दिया गया। जो लोग पहले की तरह होम लोन या बीमा वगैरह के लिए टैक्स में रियायत ले रहे थे उन्हें ओल्ड टैक्स रिजीम में डाल दिया गया और उन्हें कोई रियायत नहीं दी गई।