हनी ट्रैप का इस्तेमाल दुनिया भर में होता रहा है।
माता हारी (प्रथम विश्व युद्ध, 1914-1918): नीदरलैंड की मशहूर नर्तकी माता हारी (असली नाम: मार्गरेटा ज़ेले) प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अपनी सुंदरता और आकर्षण का इस्तेमाल करके फ्रांस और जर्मनी दोनों के अधिकारियों से जानकारी हासिल करती थीं। माता हारी को 1916 में फ्रांस की खुफिया एजेंसी ने भर्ती किया था लेकिन बाद में शक़ हुआ कि वो जर्मनी के लिए भी जासूसी कर रही थी (डबल एजेंट)। 1917 में, फ्रांसीसी खुफिया एजेंसी ने जर्मन कोडेड संदेशों को इंटरसेप्ट किया, जिसमें माता हारी का "H-21" कोडनेम से जर्मन एजेंट के रूप में उल्लेख किया गया था। 13 फरवरी 1917 को मात हारी को पेरिस में गिरफ्तार किया गया। फ्रांसीसी सैन्य अदालत ने जर्मनी के लिए जासूसी का दोषी पाया, और 15 अक्टूबर 1917 को पेरिस के पास विन्सेन्स में गोली से उड़ा दिया गया। कई इतिहासकार मानते हैं कि माता हारी के खिलाफ सबूत कमज़ोर थे और उसे बलि का बकरा बनाया गया था।
प्रोफ्यूमो अफेयर (यूके, 1963): ब्रिटेन के युद्ध मंत्री जॉन प्रोफ्यूमो का क्रिस्टीन कीलर नाम की एक युवती के साथ संबंध था, जो सोवियत नौसैनिक अटैची येवगेनी इवानोव की भी मित्र थी। 1963 में यह जानकारी सामने आने पर प्रोफ्यूमो को इस्तीफा देना पड़ा। इसने कंजर्वेटिव पार्टी की हैरॉल्ड मैकमिलन सरकार को गंभीर संकट में डाल दिया, और 1964 में पार्टी चुनाव हार गई।
रोमियो स्पाई (पूर्वी जर्मनी, 1950-1980): पूर्वी जर्मनी की खुफिया एजेंसी स्टासी के प्रमुख मार्कस वुल्फ ने "रोमियो स्पाई" रणनीति विकसित की। आकर्षक पुरुष एजेंटों को पश्चिमी जर्मनी की प्रभावशाली महिलाओं के साथ रोमांटिक संबंध बनाने के लिए भेजा जाता था, ताकि गोपनीय जानकारी हासिल की जाए। इसने पश्चिमी जर्मनी की सुरक्षा और नीतियों को कमज़ोर किया।
मौरिस डेजॉन (सोवियत संघ, 1957-1960): सोवियत संघ में फ्रांस के राजदूत मौरिस डेजॉन को KGB ने हनी ट्रैप में फँसाया। KGB ने महिलाओं का उपयोग करके डेजॉन को रोमांटिक संबंधों में उलझाया। एक नकली "पति" ने उन्हें धमकाया, और KGB ने इस स्थिति का उपयोग ब्लैकमेल के लिए किया। इसने डेजॉन की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाया और फ्रांस-सोवियत कूटनीति को प्रभावित किया।