वैश्विक व्यापार का परिदृश्य अमेरिका और चीन के बीच चल रहे टैरिफ विवाद से हिल गया है। यह विवाद न केवल इन दो महाशक्तियों को प्रभावित कर रहा है, बल्कि पूरी दुनिया पर इसका असर पड़ रहा है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने दूसरे कार्यकाल में चीन से आयातित सामानों पर भारी टैरिफ लगाकर एक नए ट्रेड वॉर की शुरुआत कर दी है। लेकिन चीनी अर्थव्यवस्था के ताज़ा आँकड़े बता रहे हैं कि वह अमेरिकी हमले को झेलते हुए अपनी रफ़्तार बनाये रखने में कामयाब रहा है। अमेरिका भारत पर भी टैरिफ़ बढ़ाने का दबाव डाल रहा है, लेकिन चीन को नियंत्रित करने में भारत का समर्थन उसके लिए बेहद ज़रूरी है।

टैरिफ विवाद और चीन

टैरिफ यानी आयात शुल्क, जो एक देश दूसरे देश से आने वाले सामानों पर लगाता है। अमेरिका ने चीनी सामानों पर टैरिफ को 20% से बढ़ाकर 145% तक कर दिया। जवाब में, चीन ने अमेरिकी उत्पादों जैसे कोयला और प्राकृतिक गैस पर 125% तक टैरिफ लगाया। यह विवाद 2018 से शुरू हुआ, जब ट्रम्प ने पहली बार चीन पर टैरिफ लगाए थे ताकि अमेरिका का बढ़ता व्यापार घाटा कम हो सके। इस बार ट्रम्प ने कनाडा, मेक्सिको और यूरोपीय संघ को भी टैरिफ की धमकी दी है, जिससे वैश्विक व्यापार में उथल-पुथल मच गई है। कई विशेषज्ञ इसे 1930 की महामंदी जैसे हालात से जोड़ रहे हैं।
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इस टैरिफ वॉर का मकसद अमेरिकी नौकरियों को वापस लाना और व्यापार घाटे को कम करना है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह रणनीति चीन की अर्थव्यवस्था को कमजोर कर पाई है?

विवाद की पृष्ठभूमि

यह ट्रेड वॉर 2018 में शुरू हुआ, जब ट्रम्प ने चीन से आयात पर टैरिफ लगाना शुरू किया। उनका मानना था कि चीन के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा बहुत ज्यादा बढ़ गया है। 2025 में यह विवाद और तेज हो गया। ट्रम्प की "अमेरिका फर्स्ट" नीति के तहत चीनी सामानों पर भारी टैरिफ लगाया गया, ताकि अमेरिकी कंपनियाँ अपने देश में उत्पादन करें। चीन ने भी जवाबी कार्रवाई की और अमेरिकी कृषि उत्पादों, कोयले और गैस पर टैरिफ बढ़ाया। साथ ही, चीन ने भारत, वियतनाम और आसियान देशों के साथ व्यापारिक रिश्ते मजबूत करने शुरू किए। चीनी नेता शी जिनपिंग ने कहा, "हम टैरिफ वॉर नहीं चाहते, लेकिन डरते भी नहीं।" चीन ने विश्व व्यापार संगठन में भी शिकायत दर्ज की है।
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चीन की अर्थव्यवस्था की स्थिति
क्या ट्रम्प की टैरिफ रणनीति काम कर रही है? हाल के आंकड़े बताते हैं कि चीन की अर्थव्यवस्था ने इन चुनौतियों के बावजूद लचीलापन दिखाया है। 15 जुलाई, 2025 को चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो ने जीडीपी वृद्धि के आंकड़े जारी किए:
  • जनवरी-मार्च 2025: 5.4% वृद्धि
  • अप्रैल-जून 2025: 5.2% वृद्धि
  • पहली छमाही का व्यापार अधिशेष: 586 अरब डॉलर
  • जून में निर्यात: 5.8% की बढ़ोतरी
ये आंकड़े दर्शाते हैं कि ट्रम्प के दबाव के बावजूद चीन की अर्थव्यवस्था की रफ्तार कमजोर नहीं पड़ी। लेकिन विशेषज्ञों में शंका है। एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट की फेलो लिज़ी सी. ली कहती हैं, "चीन ने स्टॉकपाइलिंग, आपूर्ति श्रृंखलाओं को अनुकूलित करने और नीतिगत समर्थन से टैरिफ के असर को कम किया है। लेकिन यह अस्थायी राहत है। असली चुनौती तब आएगी जब स्टॉक खत्म होंगे और 90 दिन का टैरिफ ट्रूस (12 अगस्त 2025 तक) खत्म होगा।"

चीन की कमजोरी घरेलू मांग में है। आयात में मामूली वृद्धि, खुदरा बिक्री में नरमी, आवास संकट और नौकरी की असुरक्षा से लोग खर्च करने से हिचक रहे हैं। फिर भी, चीन का विनिर्माण क्षेत्र मजबूत है। 2000 में वैश्विक विनिर्माण में उसकी हिस्सेदारी 6% थी, जो 2024 में 33% हो गई और 2030 तक 45% होने का अनुमान है।

अमेरिका की चिंताएँ और भारत

अमेरिका की चिंता का कारण चीन की बढ़ती आर्थिक और तकनीकी शक्ति है। 2024 में चीन का जीडीपी 18.3 ट्रिलियन डॉलर था और यह 5G तकनीक, इलेक्ट्रिक वाहनों और पेटेंट में अग्रणी है। ट्रम्प का नारा "मेक अमेरिका ग्रेट अगेन" हर क्षेत्र में अमेरिका को आगे रखने का है। उनकी टैरिफ रणनीति चीन के विनिर्माण और निर्यात को निशाना बनाती है।

इसमें भारत की भूमिका अहम हो जाती है। अमेरिका भारत को इंडो-पैसिफिक रणनीति और क्वाड (अमेरिका, भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया) के जरिए चीन के खिलाफ एक साझेदार के रूप में देखता है। पूर्व अमेरिकी उपविदेश मंत्री कर्ट कैंपबेल ने कहा, "चीन के उकसावे वाले कदमों के खिलाफ भारत को समर्थन देना चाहिए।" लेकिन भारत और चीन के संबंध जटिल हैं। 2024 में दोनों के बीच व्यापार 135 अरब डॉलर था, जिसमें भारत का व्यापार घाटा 85 अरब डॉलर था। सीमा विवादों ने तनाव बढ़ाया है, लेकिन हाल ही में विदेश मंत्री एस. जयशंकर की शी जिनपिंग से मुलाकात दर्शाती है कि भारत अमेरिका पर पूरी तरह भरोसा नहीं कर रहा।
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भारत और चीन की विकास यात्रा

दोनों देशों की विकास यात्रा लगभग एक ही समय पर शुरू हुई थी। 1980 के दशक तक दोनों की अर्थव्यवस्थाएँ बराबर थीं। लेकिन चीन ने 1978 में देंग शियाओपिंग के सुधारों के साथ विनिर्माण, निर्यात और तकनीक पर जोर दिया। वहीं, भारत 1980 के दशक में सांप्रदायिकता के दौर में फंस गया। राम मंदिर विवाद और तनावों ने देश की ऊर्जा को विवादों में झोंक दिया। 1991 में भारत ने आर्थिक सुधार शुरू किए, लेकिन श्रम शक्ति का सही उपयोग नहीं हो सका। आज भारत की जीडीपी 3.5 ट्रिलियन डॉलर और प्रति व्यक्ति आय $2,868 है, जबकि चीन की जीडीपी 18.3 ट्रिलियन डॉलर और प्रति व्यक्ति आय $13,661 है।

चीन ने टैरिफ के सामने लचीलापन दिखाया है, लेकिन चुनौतियाँ बाकी हैं। अमेरिका इसे कमजोर करने की कोशिश कर रहा है, वहीं भारत को एक रणनीतिक साझेदार बनाना चाहता है। लेकिन भारत के लिए यह मौका है कि वह अमेरिका और चीन दोनों के साथ संतुलन बनाए। चीन उसका प्रतिद्वंद्वी है, पर भौगोलिक और आर्थिक दृष्टि से दोनों एक बड़ी शक्ति बन सकते हैं। इसके लिए "नमस्ते ट्रंप" जैसे नारों का मोह छोड़ना होगा। इतिहास के इस मोड़ पर अप्रत्याशित फैसले ही भविष्य तय करेंगे। क्या भारत यह साहस दिखा पाएगा, यह वक्त बताएगा।