राजापाकर (एससी) सीट कांग्रेस के कब्जे में है। मगर, इस सीट को महागठबंधन में बमुश्किल कांग्रेस बचा पायी है। क्या चुनाव के मैदान में भी कांग्रेस अपनी यह सीट बचा पाएगी? यह सवाल कांग्रेस के लिए और महागठबंधन के लिए भी अहम है। कांग्रेस की विधायक प्रतिमा दास के लिए राजापाकर का दंगल उनके राजनीतिक करियर के लिए भी महत्वपूर्ण है।

जो बात बीते चुनाव में संघर्ष और कठिन परिस्थिति में प्रतिमा दास की जीत को ऐतिहासिक बना रही थी, वही बात गठबंधन की सियासत में प्रतिमा दास और कांग्रेस के खिलाफ होती दिखी। बहुत कम मार्जिन से जीत नकारात्मक रूप में व्यक्त की जा रही थी। स्थानीय सियासत में परस्पर विरोध में वोट डालते रहे राजपूत और यादव मतदाताओं के बीच से सीट निकालने की क्षमता कहीं गिनी नहीं जा रही थी। यहां तक कि कांग्रेस के भीतर भी प्रत्याशी बदलकर दावा करने की बात करने वाले कम न थे। मगर, प्रतिमा दास ने मजबूती से अपना पक्ष कांग्रेस में और कांग्रेस ने महागठबंधन में रखा और राजापाकर में एक बार फिर प्रतिमा दास चुनाव मैदान में हैं। आरजेडी की भी इस सीट पर नज़र थी लेकिन यह उनके हिस्से नहीं आई।
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कांग्रेस प्रत्याशी का कॉन्फिडेन्स

प्रतिमा दास की खुशी छिपाए नहीं छिप रही है। राजापाकर में नामांकन करने के बाद लौटी हैं। सदाकत आश्रम में कुछ दिनों पहले मुलाकात हुई थी। अब दोबारा चुनाव क्षेत्र में मिलते ही कहती हैं, “आप सबका सहयोग और आशीर्वाद काम आया। बहुत धन्यवाद करती हूं।” थोड़ा सकुचाते हुए और मन में सोचते हुए कि यह धन्यवाद तो नेतृत्व के लिए होगा, सवाल दागा, “छोटी मार्जिन से जीत के बाद इस चुनाव में डर तो नहीं लग रहा है?” प्रतिमा दास कहती है कि “राहुलजी जैसे महान नेता का साथ है। डर कैसा? तेजस्वी यादव का साथ है। डर कैसा? दलित-पिछड़ा, मुस्लिम-अगड़ा सब साथ हैं।”

जनता का मूड समझने हम जा पहुंचे जीएमएस बाकरपुर स्कूल। यह हाजीपुर-जनदाहा रोड पर स्थित है। इस रोड से राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा भी गुजरी थी। स्कूल के आसपास बच्चों की चहल-पहल के बीच चिनिया बादाम बेच रहे मिस्री लाल के पास रुक गये। मिश्री लाल 10 साल से यहीं रोजी-रोटी के लिए डटे रहे हैं। “किसकी हवा है?”- पूछने पर मिश्री लाल ने बताया, “चुनाव है तो कोई जीतगा ही। मगर, हम तो कांग्रेस को वोट देंगे।” क्यों? प्रतिमा दास ने बहुत अच्छा काम किया है? “ना, ना, ना। हम राहुल गांधी के साथ हैं। राहुल हम गरीब के साथ हैं।”

महिलाओं का समर्थन प्लस प्वाइंट

थोड़ा और आगे बढ़ने पर मिले राजा यादव। सवाल पूछने से पहले ही बोलने लगे, “यहां अब प्रतिमा दास नहीं। कोई काम की नहीं हैं। महेंद्र राम ठीक हैं।” महेंद्र राम को जेडीयू से टिकट मिला है। वे एनडीए के प्रत्याशी हैं। महिलाओं की क्या राय है, हमने जानने की कोशिश की। टोटो से उतरती महिला से पूछा, “सड़क, पानी, बिजली पर वोट पड़ेगा या प्रत्याशी और पार्टी देखकर?” बोलीं, “महिला हूं, महिला को वोट करूंगी।” 
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रोजगार का मुद्दा बड़ा

गाजीपुर चौक से महज छह किमी दूर हम देसरी मार्केट पहुंचे। यहां बीचों-बीच गुजरने वाली रेलवे क्रॉसिंग है— हाजीपुर से बछवाड़ा तक की व्यस्त बड़ी लाइन। लोग रामविलास पासवान को भी याद करते हैं, लालू प्रसाद को भी। छात्र रजनीश बताते हैं कि रेलवे का विकास पुरानी बात हो गयी। “युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा है। पढ़ने का माहौल नहीं मिल रहा है। सारी बातें चुनाव के समय होती हैं। अब तो चुनाव में भी नहीं होतीं।” एक अन्य छात्र रामजतन पासवान कहते हैं कि “चिराग जिधर हैं हमारा वोट उधर है। चिराग ही उम्मीद हैं और वही युवाओं का भविष्य भी।“ लालू और तेजस्वी के पक्ष में बोलने के लिए पास खड़े कुछ लोगों का समूह उमड़ पड़ता है। पूछने पर बताते हैं कि वे यादव हैं। क्या यादव राजापाकर सीट पर नतीजे तय करेंगे? गमछा लपेटे किसान जटा शंकर कहते हैं। एक जाति नहीं तय करती है चुनाव। मगर, “यादवों का वोट जिधर होगा, पलड़ा उधर ही भारी रहेगा।” 

सांसद चिराग को खोज रही है जनता

हाजीपुर-महनार रोड होते हुए करीब सात किमी की छोटी यात्रा पर सहदेई बुजुर्ग ब्लॉक पहुंचे, जहां ग्रामीण प्रतिमा दास की तारीफों के पुल बांध रहे थे। सहदेई बुजुर्ग ब्लॉक के ग्रामीणों से बातचीत से पता चलता है कि स्कूल का विस्तार, सड़कों की मरम्मति जैसे काम हुए हैं। मगर, ये उम्मीद से कम हैं। रेखा दास पूछती हैं, “क्या यहां के सांसद की जिम्मेदारी नहीं है? सारी उम्मीदें एक महिला विधायक से ही क्यों?” क्या सांसद इलाके में नहीं आते हैं? “हम तो टीवी पर ही देखते हैं। इलाके में नहीं देखते।” 

मुस्लिम-दलित गठजोड़ कांग्रेस की रीढ़ बना हुआ है और यादव समुदाय में तेजस्वी यादव की सक्रियता से लोगों में उत्साह है।

वैशाली मुखिया संघ के अध्यक्ष मंजय लाल राय जैसे नेताओं ने पहले असंतोष जताया था, लेकिन तेजस्वी के '243 सीटों पर लड़ूंगा' वाले बयान ने नाराज़गी दूर कर दी है। अगर एमवाई एकता बनी रही, तो यह सीट महागठबंधन का मजबूत गढ़ बनेगी।

राजापाकर का मिजाज फिलहाल कांग्रेस और महागठबंधन के पक्ष में उफान मार रहा है—जातिगत गठबंधनों की सकारात्मक ऊर्जा और स्थानीय मुद्दों पर फोकस इसे अभेद्य बना रहा है। गाजीपुर चौक से देसरी मार्केट तक की यात्रा में ग्रामीणों का उत्साह साफ बता रहा है कि एनडीए की कोशिशें भले हों, लेकिन राहुल-तेजस्वी की जोड़ी और प्रतिमा दास की मेहनत जीत की पटकथा लिख रही है। 

एम-वाय-दलित एकता पर भरोसा

पिछले चुनाव में प्रतिमा दास की जीत सिर्फ संयोग नहीं, बल्कि कांग्रेस की स्मार्ट रणनीति का नतीजा थी। जेडीयू के महेंद्र राम के खिलाफ राजपूत वोटरों का स्वाभाविक समर्थन कांग्रेस प्रत्याशी प्रतिमा दास को मिला था—जो एससी-एसटी एक्ट के कथित दुरुपयोग से उपजा था। लेकिन असली ताकत तो महागठबंधन के एमवाई (मुस्लिम-यादव) गठजोड़ और दलित एकता में थी। इस बार भी यह अहम रहने वाली है।
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बीते विधानसभा चुनाव में लोजपा के धनंजय कुमार ने मुकाबले को त्रिकोणीय बनाया था, लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी प्रतिमा दास की स्थानीय अपील ने वोटों को एकजुट कर लिया। अब, लोजपा के एनडीए में शामिल होने से भले ही सीन बदला हो, लेकिन कांग्रेस के लिए यह अवसर है। महागठबंधन की एकता से वोट कटने का खतरा टल गया है। महनार से जुड़े राजपूत नेता रमा सिंह की भूमिका भी यादगार रही। उनकी पत्नी वीणा सिंह आरजेडी की टिकट पर लड़ीं, और रमा सिंह ने राजपूत वोट महागठबंधन की ओर मोड़ने में अहम योगदान दिया। भले ही रमा सिंह अब लोजपा में हैं, लेकिन राजपूत समुदाय में कांग्रेस की सकारात्मक छवि बरकरार है। लोग भूले नहीं हैं कि लोजपा उम्मीदवार महेंद्र राम ने राजपूतों को फर्जी मामले में फंसाया था। 

कांग्रेस की प्रतिमा दास के लिए अवसर है। अगर वह राहुल गांधी के 'न्याय' ब्रांड को भुना पाती हैं, मुस्लिम-दलित गठजोड़ के साथ-साथ तेजस्वी यादव के असर वाले यादव वोटरों को अपने साथ रख पाती हैं तो कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। 'माई बहिन मान योजना' कारगर है लेकिन महिलाओं के लिए अकाउंट में 10 हजार रुपये डालने की स्कीम के आगे यह कितना कारगर होगी- कहना मुश्किल है। राजपूत वोटरों को अपने साथ बनाए रखने की मशक्कत भी कांग्रेस को करनी होगी।