Bihar SIR Controversy: बिहार विधानसभा में बुधवार को गजब का दृश्य था। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव एसआईआर पर बोल रहे थे। बीच में CM नीतीश कुमार खड़े हो गए और पुरानी बातें करने लगें। सदन हैरान था। उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी फीकी हंसी बिखेर रहे थे।
सीएम नीतीश कुमार और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव
बुधवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विधानसभा में जब तेजस्वी यादव के मतदाता पुनरीक्षण संबंधी भाषण के बीच में बोलने के लिए खड़े हुए तो उन्होंने सारी बातें कहीं लेकिन इस मुद्दे पर कुछ नहीं बोला। उन्होंने जो भी बोला उससे 1976 की इस फ़िल्म के एक गीत की याद ताजा हो गयी जिसकी एक लाइन है, ...यह तो वहशी है, तुम्हीं होश में आओ लोगो!
आज की राजनीति की यह विडंबना है कि हम जिनकी सेहत को लेकर कोई चर्चा नहीं सुन रहे थे उन्होंने सेहत की बुनियाद पर इस्तीफा दे दिया लेकिन जिनकी सेहत की चर्चा बहुत ज्यादा है वह इस्तीफा देना तो दूर मुख्यमंत्री के तौर पर 5 साल और राज करना चाह रहे हैं। बात पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीश धनखड़ और बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ही है। नीतीश कुमार की सेहत के बारे में उनकी पार्टी और सरकार के स्तर से अब तक यही संदेश दिया जा रहा है कि वह स्वस्थ हैं लेकिन जिस तरह उनकी बातें 2005 के पहले के कांटे पर अटक गई हैं, उससे तो अक्सर लोग यही कह रहे हैं कि उन्हें क्या हो गया है।
तेजस्वी यादव विधानसभा में बुधवार को यह कह रहे थे कि जिस वोटर लिस्ट को चुनाव आयोग मानने को तैयार नहीं है, उसी लिस्ट के आधार पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बाकी सभी सांसदों व विधायकों का चुनाव हुआ है। तेजस्वी ने पूछा कि क्या यह चुनाव फर्जी था?
तेजस्वी ने यह भी कहा कि भारतीय जनता पार्टी के 52000 से अधिक बीएलए (बूथ लेवल एजेंट) ने बिहार में विदेशी घुसपैठियों का जिक्र नहीं किया है और चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को दिए 700 से अधिक पन्ने के हलफनामे में भी ऐसी कोई बात नहीं लिखी है। उन्होंने कहा कि वैसे भी जब केंद्र और बिहार में एनडीए सरकार है तो घुसपैठियों के लिए जिम्मेदार कौन है।
तो सवाल वोटर वेरीफिकेशन और घुसपैठियों के बारे में था लेकिन जब इस पर बोलने के लिए नीतीश कुमार खड़े हुए तो उन्होंने फिर वही 2005 से पहले का राग अलापना शुरू कर दिया। नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को बच्चा बताया और कहा कि तुम्हारे माता-पिता बिहार में मुख्यमंत्री रहे लेकिन बिहार के लिए कोई काम नहीं किया।
दरअसल विधानसभा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जो बातें कहीं, अगर उन्हें के शब्दों को उधार लिया जाए तो वह ‘अंड बंड’ ही था। वह जिस तरह 2005 के पहले शाम के बाद किसी के घर से न निकलने का दावा करते हैं वह एक रटी रटाई बात ही लगती है। इसी तरह मुसलमानों के बारे में काम करने का दावा भी वह इस अंदाज में करते हैं, जैसे वह मुसलमान की आज की समस्याओं से पूरी तरह अनजान हैं।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कार्याकाल के बारे में जब लिखा जाएगा तो यह बात भी याद रखी जाएगी कि 2025 में चुनाव आयोग के एक फरमान की वजह से जब पूरा बिहार त्राहि त्राहि कर रहा था तो नीतीश कुमार निश्चिंत थे और शायद अनभिज्ञ भी। इसीलिए विधानसभा में चुनाव आयोग के फरमान पर तेजस्वी यादव के बयान के जवाब में नीतीश कुमार ने ऐसा कोई आश्वासन नहीं दिया कि पिछड़े, गरीब, दलित और अल्पसंख्यक मतदाताओं का नाम वोटर लिस्ट से नहीं काटा जाएगा। नीतीश कुमार ने इस बात की भी कोई चर्चा नहीं की कि चुनाव आयोग ने जिस तरह से दस्तावेज मांगे हैं उससे आम लोग बहुत परेशान हैं और उनकी परेशानी दूर करने की जरूरत है।
इस वक्त नीतीश कुमार अपनी पार्टी के अध्यक्ष तो जरूर हैं लेकिन ऐसा माना जाता है कि उनके इर्द-गिर्द शीर्ष पर रहने वाले उनके सहयोगी दरअसल भारतीय जनता पार्टी के विचारधारा को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं और नीतीश कुमार इस मामले में बेबस हैं। वह चाहे भारतीय जनता पार्टी से आकर जनता दल यूनाइटेड में कार्यकारी अध्यक्ष बने संजय कुमार झा हों या कांग्रेस पार्टी के बिहार प्रमुख रहे अशोक चौधरी जो आजकल जनता दल यूनाइटेड के प्रमुख नेता बने हुए हैं। मंत्री अशोक चौधरी की बेटी की शादी रस विचारधारा वाले परिवार में हुई है और हाल में वह उससे काफी प्रभावित भी नजर आते हैं।
ऐसा माना जा रहा है कि चुनाव आयोग के फरमान पर जदयू के नेता अंदर-अंदर तो परेशान हैं लेकिन भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा पर चलने वाले नेताओं के डर से वह कुछ बोल नहीं पा रहे हैं। फिर भी बांका से जदयू के लोकसभा सदस्य गिरिरधारी यादव ने चुनाव आयोग के फरमान का विरोध किया है और यह भी कहा है कि उसे बिहार का व्यावहारिक ज्ञान नहीं है। सवाल यह है कि नीतीश कुमार आखिर कैसी मनःस्थिति में हैं कि वह अपनी पार्टी के ऐसे नेताओं की चिंता पर कोई ध्यान नहीं दे पा रहे हैं।
नीतीश कुमार के लिए एक गंभीर बात यह भी है कि जिस तरह भारतीय जनता पार्टी और चुनाव आयोग की ओर से बिहार में कथित घुसपैठियों की समस्या को उछाला जा रहा है, उस पर या तो वह कुछ बोलना नहीं चाहते या वह पूरे मामले को समझ ही नहीं पा रहे हैं। क्या यह उनकी मुख्यमंत्री की जिम्मेदारियों पर सवाल नहीं है कि उनके रहते बिहार में घुसपैठिए आ गए और अगर घुसपैठिए नहीं आए हैं तो वह भारतीय जनता पार्टी और चुनाव आयोग के ऐसे नैरेटिव पर चुप्पी क्यों साधे हुए हैं?
ध्यान रहे कि चुनाव आयोग के ताजा फरमान को बैकडोर एनआरसी बताया जा रहा है और नीतीश कुमार एनआरसी का विरोध कर चुके हैं। लेकिन इस मुद्दे पर भी वह अब कुछ बोल नहीं पा रहे हैं या उन्हें बोलने नहीं दिया जा रहा है।
नीतीश कुमार बार-बार मुसलमानों के लिए काम करने का दावा करते हैं मगर उन्हें मुसलमानों की हाल की समस्याओं से कोई मतलब नजर नहीं आता या फिर यह कहा जा सकता है कि वह इसे समझ नहीं पा रहे हैं। ऐसा लगता है कि उन्हें कुछ बातें रटा दी गई हैं और वह उन्हीं को दोहराते रह रहे हैं। उन्हें शायद इस बात का एहसास नहीं कि वक़्फ़ संशोधन क़ानून पर मुसलमानों की कितनी गंभीर चिंताएं हैं। और अगर वह सब कुछ समझ रहे हैं तो इसका मतलब है कि उनकी पार्टी ने उनकी सहमति से ही वक़्फ़ संशोधन कानून को समर्थन देने का फैसला किया।
सन 2005 में जब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने थे तो अक्सर लोगों को लगता था कि बिहार का कायाकल्प हो जाएगा लेकिन वैसे सभी लोग अब इस बात पर अफसोस कर रहे हैं कि वह अब होश ओ हवास में नहीं हैं और बिहार में क्या हो रहा है इससे वह पूरी तरह बेखबर लगते हैं। बिहार में पिछले कुछ महीनों में जिस तरह हत्याओं का दौर चल रहा है वह नीतीश कुमार की 2005 की छवि के बिलकुल खिलाफ है।
ऐसे में उनके चाहने वाले भी अब जो कह रहे हैं उसे इस लाइन में बताया जा सकता है … यह तो वहशी है, तुम्हीं होश में आओ लोगो!