जेएनयू हिंसा में जैसे-जैसे नयी जानकारियाँ आ रही हैं, वे पुलिस के रवैये और इस मामले में उसकी भूमिका पर संदेह को बढ़ा रही हैं। चाहे वह हिंसा के दिन पुलिस के रवैये का मामला हो या फिर जाँच में लीपापोती करने का। अब जेएनयू हिंसा का सबसे ज़्यादा शिकार हुए साबरमती हॉस्टल के दो वार्डनों के बयान पुलिस के रवैये पर सवाल खड़े करते हैं। दोनों वार्डनों का कहना है कि उन्होंने जेएनयू कैंपस में पाँच जनवरी को शाम चार ही हाथों में लाठी और रॉड लिए नकाबपोशों की भीड़ को देखा था और उसी समय उन्होंने पुलिस और जेएनयू सुरक्षा कर्मियों को इसकी सूचना दे दी थी। इसके बावजूद चार घंटे तक कोई सहायता नहीं मिली।