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हार
जिस तरह से अभी कोरोना संक्रमण का मामला ख़त्म भी नहीं हुआ है, चीन सहित कुछ देशों में इसकी संभावित लहर की आशंका है और उस बीच अब एक और ज़्यादा घातक महामारी को लेकर आगाह किया गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ के प्रमुख, टेड्रोस अदनोम घेब्रेयसस ने एक चेतावनी दी है कि दुनिया को अगली महामारी के लिए तैयार हो जाना चाहिए। उन्होंने कहा है कि वह कोरोना महामारी से भी अधिक घातक हो सकती है।
डब्ल्यूएचओ के प्रमुख ने कहा, 'वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल के रूप में कोविड का अंत वैश्विक स्वास्थ्य ख़तरे के रूप में कोविड का अंत नहीं है।' उन्होंने कहा, 'एक अन्य प्रकार के वैरिएंट के उभरने का ख़तरा है जो बीमारी और मौत के मामलों में उछाल का कारण बनेगा, और एक और बीमारी का ख़तरा भी है जो अधिक घातक हो सकता है।'
डब्ल्यूएचओ के प्रमुख ने 76वीं विश्व स्वास्थ्य सभा में अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए यह बात कही। इसके अलावा डब्ल्यूएचओ ने यह भी चेताया है कि ऐसी बीमारियों के दो संकटों के एक साथ आने से ख़तरा और ज़्यादा बढ़ सकता है और ऐसे में प्रभावी वैश्विक तंत्र की ज़रूरत होगी। उन्होंने कहा कि यह तंत्र ऐसा होना चाहिए जो सभी प्रकार की आपात स्थितियों से निपटे।
उन्होंने सलाह दी, 'जब अगली महामारी दस्तक दे- और यह आएगी- तो हमें निर्णायक, सामूहिक और एक समान रूप से जवाब देने के लिए तैयार रहना चाहिए।'
विश्व स्वास्थ्य संगठन के लिए एक नई चिंता का कारण अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य आपात स्थितियों का लगातार होना है।
संयुक्त राष्ट्र के एक वरिष्ठ सलाहकार का कहना है कि इन वैश्विक या अंतरराष्ट्रीय महामारियों के कारण डब्ल्यूएचओ को कई बार सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में आपातकालीन स्थितियों की घोषणा करने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसके कारण संगठन पर ही बोझ पड़ा है। रायटर्स की रिपोर्ट के अनुसार डब्ल्यूएचओ की वार्षिक बैठक को संबोधित करते हुए संगठन की आपातकालीन प्रतिक्रिया समीक्षा समिति के प्रमुख प्रोफेसर वलीद अम्मार ने कहा कि स्वास्थ्य की स्थिति के कारण डब्ल्यूएचओ पर लगातार बढ़ती मांगों के परिणामस्वरूप उपलब्ध धन और दुनिया में उसके कर्मचारी की कमी की खाई चौड़ी हो रही है।
समिति की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल मार्च तक डब्ल्यूएचओ 53 उच्च-स्तरीय स्वास्थ्य आपात स्थितियों से निपट रहा था। इनमें कोविड-19, हैजा और मारबुर्ग वायरस का प्रकोप जैसी महामारियां शामिल थीं। भूकंप और बाढ़ जैसी स्थितियों से भी निपटना पड़ा। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन से बाढ़ और तूफान जैसी प्राकृतिक घटनाओं की संख्या भी बढ़ रही है, जिसका स्वास्थ्य क्षेत्र पर प्रभाव पड़ रहा है।
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