पहलगाम आतंकी हमले के बाद सुरक्षा एजेंसियों ने 1500 से अधिक संदिग्धों को हिरासत में लिया है। जानिए घाटी में कैसे कड़े किए गए हैं सुरक्षा प्रबंध और आगे की रणनीति क्या है।
जम्मू-कश्मीर में पहलगाम के बैसरन घाटी में हुए आतंकी हमले के बाद सुरक्षा व्यवस्था को अभूतपूर्व स्तर पर कड़ा किया गया है। सुरक्षाबलों ने पूरे जम्मू-कश्मीर, ख़ासकर दक्षिण कश्मीर में 1500 से अधिक संदिग्धों को हिरासत में लिया है। इनमें ओवर ग्राउंड वर्कर्स यानी आतंकियों को रसद व आश्रय जैसी सहायता देने वाले और आतंकी गतिविधियों से जुड़े लोग शामिल हैं। दक्षिण कश्मीर में 250 से अधिक ओवर ग्राउंड वर्कर्स हिरासत में हैं।
यह हिरासत अभियान आतंकी नेटवर्क को तोड़ने और भविष्य के हमलों को रोकने की रणनीति का हिस्सा है। हालांकि, इतनी बड़ी संख्या में हिरासत में लिए जाने से स्थानीय लोगों में डर और असंतोष का भी माहौल बना है, जो पहले से ही अनुच्छेद 370 हटने के बाद से तनावग्रस्त हैं।
एनआईए घटनास्थल पर पहुंचकर जाँच कर रही है। मीडिया रिपोर्टों में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि डिजिटल सबूतों से पाकिस्तान के कराची और मुजफ्फराबाद में ठिकानों के कनेक्शन का पता चला है। हिरासत में लिए गए लोगों से पूछताछ के ज़रिए आतंकी नेटवर्क, स्लीपर सेल्स, और हमले में सहायता करने वालों की पहचान की जा रही है। पहलगाम हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े द रेजिस्टेंस फ्रंट यानी टीआरएफ़ ने ली है।
पूरे जम्मू-कश्मीर में हाई अलर्ट घोषित है। संवेदनशील स्थानों, जैसे पर्यटन स्थलों, धार्मिक स्थानों और रेलवे व बस स्टेशनों पर सुरक्षा बलों की तैनाती बढ़ा दी गई है। भारतीय सेना की विक्टर फोर्स, स्पेशल फोर्स, जम्मू-कश्मीर पुलिस की स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप और सीआरपीएफ़ बड़े पैमाने पर सर्च ऑपरेशन चला रहे हैं। बारामूला में सुरक्षाबलों को कामयाबी मिली है। चेकपॉइंट्स पर वाहनों की गहन जांच हो रही है। सीमा पर पंजाब ने भी सुरक्षा बढ़ा दी है।
श्रीनगर से अतिरिक्त उड़ानें शुरू की गई हैं, और श्रीनगर-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग को एकतरफा यातायात के लिए खोला गया है ताकि पर्यटकों को सुरक्षित निकाला जा सके।
उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने बुधवार को सुरक्षा समीक्षा बैठकें कीं। गृह मंत्री शाह ने श्रीनगर में पीड़ित परिवारों से मुलाकात की और सुरक्षा एजेंसियों को कड़े निर्देश दिए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी की ढाई घंटे की बैठक में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ पांच बड़े फ़ैसले लिए गए। इसमें गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, और एनएसए अजीत डोभाल शामिल थे।
हमले से पता चला कि बैसरन घाटी जैसे दुर्गम इलाकों में सुरक्षा तैनाती अपर्याप्त थी। 5.5 किमी के पहलगाम-बैसरन मार्ग पर कोई पुलिस पिकेट नहीं था। आतंकियों ने सेना जैसी वर्दी और M4 कार्बाइन, AK-47 जैसे अत्याधुनिक हथियारों का इस्तेमाल किया, जो उनकी तैयारी और आईएसआई के समर्थन की ओर इशारा करता है। रिपोर्टें हैं कि उन्होंने धर्म पूछकर निशाना बनाया, जिससे सामाजिक तनाव बढ़ाने की मंशा जाहिर होती है। जाँच में पाकिस्तान समर्थित टीआरएफ़ और आईएसआई की भूमिका की आशंका जताई जा रही है।
यह खुफिया तंत्र की विफलता को दिखाता है। दुर्गम इलाकों में ड्रोन और सैटेलाइट निगरानी बढ़ाने की ज़रूरत बताई जा रही है। स्थानीय खुफिया नेटवर्क को और मज़बूत करने की ज़रूरत बताई जा रही है। यह हमला न केवल सुरक्षा चुनौती है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक संकट भी पैदा कर रहा है। पर्यटकों में डर और स्थानीय लोगों में अनिश्चितता से क्षेत्र की छवि को नुक़सान पहुंचा है।
जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमले के बाद सुरक्षा बलों ने त्वरित और बड़े पैमाने पर कार्रवाई शुरू की है। हिरासत, सर्च ऑपरेशन और उच्च-स्तरीय बैठकों से सरकार का आतंकवाद के ख़िलाफ़ जीरो टॉलरेंस के रुख का पता चलता है। हालाँकि, दुर्गम इलाक़ों में सुरक्षा तैनाती की कमी और आतंकियों की नई रणनीतियां चुनौतियां बनी हुई हैं।
पहलगाम आतंकी हमला जम्मू-कश्मीर के लिए एक बड़ा झटका है, जिसने सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित किया है। 1500 लोगों की हिरासत और कड़ी सुरक्षा व्यवस्था से सरकार ने आतंकवाद के खिलाफ मजबूत इरादा दिखाया है। हालांकि, खुफिया विफलताओं और पर्यटन उद्योग के संकट ने गहरे सवाल खड़े किए हैं।