थल सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत का यह कहना कि पाकिस्तान धर्मनिरपेक्ष हो जाए तो हम उसके साथ रह सकते हैं, एक ख़तरनाक प्रवृत्ति की ओर इशारा करता है। जनरल रावत ऐसे मामलों में घुसपैठ कर रहे हैं जिसमें प्रवेश करने की न उनको ज़रूरत है न ही इजाज़त।

देश की विदेश नीति क्या होगी, यह तय करना किसी जनरल का काम नहीं है। यह काम केंद्र की चुनी हुई सरकार का होता है। सरकार तय करेगी कि पाकिस्तान या फिर किसी भी देश से वह कब बात करेगी या नहीं करेगी। सैन्य प्रमुख को केवल सैनिक मसलों तक ख़ुद को सीमित रखना चाहिए। लेकिन ऐसा न करके किसी पड़ोसी देश के अंदरूनी मामलों में अपनी नाक घुसाकर और देश के राजनयिक मामलों में टिप्पणी कर
जनरल रावत अपनी सीमा पार कर रहे हैं।

जनरल रावत इसके पहले भी एक नहीं, कई बार ऐसी बातें कह चुके हैं, जिसका सेना से सीधा लेना-देना नही रहा है और जिसका गहरा राजनीतिक या राजनयिक अर्थ होता है। हैरत की बात यह है कि केंद्र सरकार ने अभी तक जनरल रावत को टोका नहीं है। इसी कारण उनकी टिप्पणियाँ घटने के बजाय बढ़ती जा रही हैं। लेकिन उनकी यह प्रवृत्ति बहुत ख़तरनाक इशारे कर रही है। यदि इस प्रवृत्ति को रोका नहीं गया तो कल इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। क्या हो सकता है, यह जानने के लिए हमें बहुत दूर नहीं जाना। पड़ोसी पाकिस्तान का हाल हमारे सामने है जहाँ सेना ख़ुद तय करती है कि अगली बार किसकी सरकार बनानी है या गिरानी है।

आइए, देखते हैं जनरल रावत ने इससे पहले किन-किन मुद्दों पर क्या-क्या बयान दिए हैं। उनका सबसे चर्चित और विवादास्पद बयान असम पर रहा है।

जनरल रावत ने असम और वहाँ रहने वाले मुसलमानों के बारे में घोर आपत्तिजनक बयान दिया था। उसकी काफ़ी आलोचना भी हुई थी। उन्होंने एक सेमिनार में भाषण देते हुए कहा था कि असम की जनसंख्या पूरी तरह बदल चुकी है। उनके कहने का आशय यह था कि जहाँ पहले हिन्दू बहुमत में थे, वहाँ मुसलमानों की आबादी ज़्यादा है। पहले पाँच जि़लोे में ऐसा था, फिर आठ और नौ ज़िलों में यह हो गया। इसे बदला नहीं जा सकता।

एआईयूडीएफ़ के विस्तार पर चिंता

बिपिन रावत ने कहा था, ‘असम में जिस तेज़ी से भारतीय जनता पार्टी बढ़ रही है, उससे अधिक रफ़्तार से ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ़्रंट बढ़ रहा है। देश में जनसंघ के पास किसी समय दो सांसद थे, वह वहाँ से जिस तेज़ी से बढ़ कर आज स्थिति में पहुँचा है, एआईयूडीएफ़ के बढ़ने की रफ़्तार उससे अधिक है। इससे असम का क्या होगा, हमें यह देखना होगा।’