बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम की भगदड़ के दौरान 11 लोगों की जान चली गई। इस घटना ने एक बार फिर भारत में बड़े आयोजनों में भीड़ प्रबंधन की गंभीर समस्या को उजागर किया है। यह घटना 29 जनवरी 2025 को प्रयागराज महाकुंभ मेले में हुई भयावह भगदड़, जिसमें कम से कम 30 लोगों की मौत (सरकारी आंकड़ा) हुई थी, और जुलाई 2024 में हाथरस त्रासदी, जिसमें 121 लोगों की जान गई थी, के बाद हुई है। ये घटनाएं अतीत की त्रासदियों से सबक न सीखने की स्पष्ट विफलता को बताती हैं। आखिर कब इस पर राष्ट्रीय नीति बनेगी या फिर अगली घटना के बाद फिर इस पर सिर्फ बातें होंगी।
बेंगलुरु भगदड़, जिसे उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने "आपराधिक लापरवाही" का नतीजा बताया, तब हुई जब लगभग 2 से 3 लाख लोग एक ऐसे स्थान पर एकत्र हुए, जिसकी क्षमता केवल 35,000 थी। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इस घटना पर जिम्मेदारी से किनारा करते हुए स्पष्ट किया कि यह आयोजन क्रिकेट एसोसिएशन द्वारा आयोजित किया गया था, न कि राज्य सरकार द्वारा, हालांकि पुलिस सहायता दी गई थी। उन्होंने उल्लेख किया कि विधान सौध में 1 लाख से अधिक की भीड़ बिना किसी घटना के एकत्र हुई थी, लेकिन स्टेडियम में भीड़ का बढ़ना "पूरी तरह अप्रत्याशित" था।

प्रयागराज महाकुंभ में भगदड़ के बाद जहां-तहां शव और श्रद्धालुओं के सामान बिखरे हुए मिले। फाइल फोटो

महाकुंभ मेले की भगदड़, हाल के वर्षों में सबसे घातक घटनाओं में से एक, पवित्र मौनी अमावस्या अनुष्ठान के दौरान हुई, जब लाखों लोग पवित्र स्नान के लिए संगम घाट की ओर उमड़ पड़े। कम से कम 30 लोग कुचल गए और 60 से अधिक घायल हो गए, क्योंकि भीड़ के दबाव में बैरियर गिर गए। हालांकि प्रयागराज में हुई मौतें ज्यादा हैं। लोग आज भी लापता हैं। नेता विपक्ष राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश सरकार पर वीआईपी आवाजाही को प्राथमिकता देने और जन सुरक्षा की अनदेखी करने का आरोप लगाया, जिससे व्यवस्थागत कुप्रबंधन उजागर हुआ था।
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इसी तरह, 2024 में हाथरस में भोले बाबा के धार्मिक 'सत्संग' के दौरान हुई भगदड़ में 2.5 लाख से अधिक लोग शामिल हुए, जो कि अनुमत 80,000 की सीमा से कहीं अधिक था, जिसके परिणामस्वरूप 121 लोगों की मौत हुई, जिनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे थे। जांच में अपर्याप्त भीड़ नियंत्रण और आयोजकों द्वारा सबूत नष्ट करने के प्रयासों का खुलासा हुआ, जो लापरवाही के एक पैटर्न को दर्शाता है। अब यह मामला पूरी तरह दब गया है। जिसे भोले बाबा की वजह से भगदड़ मची थी, उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। सत्ता उसके साथ खड़ी नजर आई। यूपी के सीएम .योगी आदित्यनाथ ने इसमें साजिश की आशंका जताई। जांच बैठाई। लेकिन उस साजिश का पता आजतक नहीं चला। 

हाथरस के सरकारी अस्पताल में रोते बिलखते लोग। फाइल फोटो

देश में भगदड़ का इतिहास दुखद है। 1954 के कुंभ मेले की आपदा, जिसमें 800 से अधिक लोगों की जान गई, से लेकर 2013 में प्रयागराज रेलवे स्टेशन की भगदड़, जिसमें 42 लोग मारे गए, धार्मिक और सार्वजनिक समारोह बार-बार खराब योजना, अपर्याप्त बुनियादी ढांचे और सुरक्षा प्रोटोकॉल के ढीलेपन के कारण घातक बन गए हैं। अन्य उल्लेखनीय घटनाओं में 2005 की मंधरदेवी मंदिर भगदड़ (265 से अधिक मौतें), 2008 की चामुंडागर मंदिर त्रासदी (250 मौतें), और 2008 की नैना देवी मंदिर भगदड़ (145 मौतें) शामिल हैं। ये घटनाएं, जो अक्सर अफवाहों, संरचनात्मक विफलताओं या अचानक भीड़ बढ़ने से शुरू होती हैं। 
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने 2014 में 'भीड़ प्रबंधन योजना की तैयारी के लिए गाइडलाइंस जारी की थीं, लेकिन इसका कार्यान्वयन असंगत रहा है। यह ढांचा प्री-रजिस्टर्ड पास, समयबद्ध प्रवेश और क्षमता मूल्यांकन जैसे उपायों की सिफारिश करता है। लेकिन राज्य सरकारों और स्थानीय अधिकारियों ने इन दिशानिर्देशों को अपनाने में काफी हद तक विफलता दिखाई है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में भीड़भाड़ वाले स्थानों के लिए कोई नीति नहीं है। शर्ते नहीं हैं। जो नियम-कानून हैं, वे पुराने हैं।

नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भीड़ का दृश्य

फरवरी 2025 में नई दिल्ली के रेलवे स्टेशन पर हुई भयावह भगदड़, जिसमें 18 लोगों की मौत हुई, के बाद सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई, जिसमें व्यापक भीड़ प्रबंधन दिशानिर्देश विकसित करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति की मांग की गई। याचिका में परिवहन केंद्रों और आयोजन स्थलों पर व्यापक गलियारों, चौड़े फुटब्रिज और बेहतर पहुंच की आवश्यकता पर जोर दिया गया। हालांकि, ऐसे सुधारों पर अभी काम होना है।
बार-बार होने वाली त्रासदियों ने आयोजन आयोजकों और अधिकारियों में जनता का विश्वास कम कर दिया है। फोरम  आईएएस विश्लेषण के अनुसार, 1954 से 2012 तक भारत में 79% भगदड़ धार्मिक समारोहों में हुईं, जो अक्सर हाशिए पर रहने वाले समुदायों को प्रभावित करती हैं, जिससे आर्थिक कठिनाई और सामाजिक पूंजी की हानि होती है। सुप्रीम कोर्ट ने उपहार सिनेमा त्रासदी मामले में ऐसी आपदाओं में राज्य की जवाबदेही को संबोधित करने वाली कानून की आवश्यकता पर जोर दिया, फिर भी कोई व्यापक कानून मौजूद नहीं है।

इन उपायों की फौरन जरूरत है

कानून और प्रवर्तन: भीड़ प्रबंधन प्रोटोकॉल लागू करने और आयोजकों को जवाबदेह ठहराने के लिए एक राष्ट्रीय कानून।
प्रौद्योगिकी एकीकरण: सीसीटीवी, ड्रोन और एआई-आधारित भीड़ निगरानी का इस्तेमाल वास्तविक समय में भीड़ का पता लगाने और प्रबंधन के लिए।
क्षमता योजना: आयोजन स्थलों की क्षमता का अनिवार्य मूल्यांकन और उपस्थित लोगों की संख्या पर प्रतिबंध।
पेशेवर प्रशिक्षण: सुरक्षा कर्मियों और आयोजन कर्मचारियों के लिए बड़े भीड़ को संवेदनशीलता से संभालने के लिए विशेष प्रशिक्षण।
जन जागरूकता: उपस्थित लोगों को सुरक्षा प्रोटोकॉल और व्यवस्थित व्यवहार के बारे में शिक्षित करने के लिए अभियान।

सोशल मीडिया पर भगदड़ को लेकर लोगों की प्रतिक्रिया थम नहीं रही है। लोग भारत में भगदड़ को अपर्याप्त बुनियादी ढांचे और खराब योजना जैसे व्यवस्थागत मुद्दों को बता रहे हैं। केंद्रीय मंत्री प्रल्हाद जोशी और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई सहित राजनीतिक नेताओं ने बेंगलुरु घटना को राज्य की जिम्मेदारी बता रहे हैं। लेकिन इस कार्यक्रम के आयोजकों को जवाबदेही से बचाया जा रहा है।
देश में बेंगलुरु भगदड़ को लेकर लोग गमजदा हैं। प्रयागराज और हाथरस की भगदड़ में तो कुछ मौतों को तो मान्यता ही नहीं मिली। उन खोए लोगों के परिजन आज भी उनका इंतजार कर रहे हैं। सवाल यह बना हुआ है: स्थायी बदलाव लागू करने के लिए और कितनी त्रासदियों की आवश्यकता होगी? सिर्फ जुमले उछालने से ऐसी त्रासदियों को रोका नहीं जा सकता।