दिल्ली की सत्ता का रास्ता भले ही उत्तर प्रदेश से होते हुए गुजरता हो, लेकिन दक्षिण भारत की पार्टियों को साथ लिए बिना किसी के लिए भी केंद्र की सत्ता हासिल करना आसान नहीं है। दक्षिण में अब भी क्षेत्रीय पार्टियों का ही दबदबा है और इनका साथ लिए बिना बीजेपी और कांग्रेस, दोनों के लिए ही केंद्र में सरकार बनाना बेहद मुश्किल काम है।
दक्षिण में पुराने साथी बीजेपी से दूर, नये मिल नहीं रहे
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- 6 Feb, 2019
दक्षिण भारत में लोकसभा की 130 सीटें हैं, बीजेपी और कांग्रेस के लिए अकेले दम पर यहाँ ज़्यादा सीटें जीतना आसान नहीं है। इसलिए उन्हें क्षेत्रीय दलों का साथ लेना ही होगा।

हिंदी पट्टी के तीन राज्यों – राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सत्ता गँवाने के बाद बीजेपी की मुश्किलें बढ़ गई हैं। कांग्रेस के नेतृत्व में मजबूत होते महागठबंधन, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के मिलकर चुनाव लड़ने की कोशिश, एक के बाद एक कर खिसकते सहयोगी दलों ने बीजेपी के रणनीतिकारों की नींद ख़राब कर दी है।
बीजेपी के लिए दक्षिण से भी अच्छी ख़बर नहीं है। दक्षिण के पाँचों राज्यों – आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल में बीजेपी अलग-थलग पड़ती जा रही है। कोई भी असरदार और ताक़तवर क्षेत्रीय पार्टी लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी से गठजोड़ करने की इच्छुक नहीं दिखाई दे रही है।