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मतुआ समुदाय के लोग बंगाल में खुशी मनाते।

सीएए ने बंगाल में बदल दिया चुनावी गणित, दलित मतुआ हिन्दुओं को सीधा फायदा

केंद्र सरकार ने सोमवार शाम को नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) लागू करने की घोषणा की। घोषणा होते ही बंगाल में रात को मतुआ समुदाय के लोग ढोल-ताशे बजाते हुए सड़कों पर आए और बाकायदा जुलूस निकालकर इसका स्वागत किया। मतुआ समुदाय बांग्लादेश से आए शरणार्थियों का एक हिंदू समूह है। मतुआ समुदाय लंबे समय से सीएए लागू करने की मांग कर रहा था।

मतुआ अनुसूचित जाति (एससी) के रूप में वर्गीकृत हैं। मतुआ नामशूद्र या निचली जाति के हिंदू रिफ्यूजी हैं जो पड़ोसी बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) से पश्चिम बंगाल में आए हैं। लेकिन इन्हें भारतीय नागरिकता नहीं मिली हुई थी।


सीएए की वजह से बंगाल में इन लोगों को भारतीय नागरिकता मिलती है तो आगामी लोकसभा चुनावों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है। क्योंकि मतुआ पश्चिम बंगाल की दूसरी सबसे बड़ी अनुसूचित जाति आबादी है। यह समुदाय ज्यादातर उत्तर और दक्षिण 24 परगना जिलों और नादिया, हावड़ा, कूच बिहार, उत्तर और दक्षिण दिनाजपुर और मालदा जैसे सीमावर्ती जिलों में रहता है। नागरिकता मिलते ही इनके नाम मतदाता सूची में शामिल होंगे और ये वोट देने के हकदार हो जाएंगे। यह बताने की जरूरत नहीं है कि इनका वोट किसे मिलेगा।

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पश्चिम बंगाल में कुल एससी आबादी में नामशूद्रों की संख्या 17.4 प्रतिशत है, जो उत्तरी बंगाल में राजबंशियों के बाद राज्य में दूसरी सबसे बड़ी आबादी है। बंगाल की 1.8 करोड़ अनुसूचित जाति आबादी में हिंदू (99.96 प्रतिशत) दलित सबसे ज्यादा है। राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से बंगाल में 10 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं, जिनमें से भाजपा ने 2019 में चार - कूचबिहार, जलपाईगुड़ी, बिष्णुपुर और बोनगांव पर कब्जा कर लिया था। जाहिर सी बात बात है कि मतुआ को नागरिकता और मतदान का अधिकार मिला तो भाजपा को सीधा फायदा होगा।

मतुआ लोगों की राजनीतिक पहचान हरिचंद ठाकुर और उनके वंशजों से है, जो उत्तर 24 जिले में रहते हैं। इस परिवार का राजनीति से पुराना नाता है। हरिचंद के पड़पोते प्रमथ रंजन ठाकुर 1962 में कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में पश्चिम बंगाल विधान सभा के सदस्य बने। पीआर ठाकुर की विधवा बीनापानी देवी का शताब्दी वर्ष अभी हाल में मनाया गया था। 

हाल के वर्षों में, ठाकुर परिवार के कई सदस्यों ने मतुआ महासंघ के जरिए राजनीति में अपनी किस्मत आजमाई। बीनापानी देवी के सबसे बड़े बेटे, कपिल कृष्ण ठाकुर, 2014 में बोनगांव से टीएमसी सांसद थे। उनके छोटे भाई मंजुल कृष्णा 2011 में गायघाटा से टीएमसी विधायक बने। मंजुल के बड़े बेटे सुब्रत ठाकुर ने अपने चाचा, टीएमसी सांसद कपिल कृष्ण ठाकुर के आकस्मिक निधन के बाद 2015 में भाजपा के टिकट पर बोनगांव उपचुनाव लड़ा था। उन्हें चुनौती दे रही थीं उनकी चाची ममता बाला ठाकुर, कपिल कृष्ण की विधवा, जिन्होंने अंततः टीएमसी के लिए सीट जीत ली।

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2019 में, मंजुल कृष्ण के बेटे शांतनु ठाकुर ने भाजपा के लिए बोनगांव लोकसभा सीट जीती। वह वर्तमान में मोदी सरकार में केंद्रीय जहाजरानी राज्य मंत्री हैं। मंजुल कृष्ण के एक और बेटे सुब्रत ठाकुर उसी क्षेत्र की गायघाटा विधानसभा सीट से भाजपा विधायक हैं। इस तरह अब शांतनु ठाकुर के नेतृत्व में मतुआ लोगों को एकजुट किया जा रहा है। इनमें हजारों की तादाद में ऐसे लोग हैं जिन्हें नागरिकता नहीं मिली है। 

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क़मर वहीद नक़वी
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