कलकत्ता हाईकोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली में पश्चिम बंगाल के प्रवासी मजदूरों की कथित अवैध हिरासत के मामले में दिल्ली सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है। दो बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं (हैबियस कॉर्पस) पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने दिल्ली प्रशासन को यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया कि क्या इन श्रमिकों को हिरासत में लिया गया है। याचिकाकर्ताओं, जो कथित तौर पर हिरासत में लिए गए लोगों के रिश्तेदार हैं, ने इन श्रमिकों की रिहाई और कोर्ट के समक्ष उनकी पेशी की मांग की है।

क्या है पूरा मामला

दोनों याचिकाओं में दावा किया गया है कि स्वीटी बीबी, कुर्बान शेख, उनके नाबालिग बेटे, सुनाली खातून, दानिश और उनके नाबालिग पोते को दिल्ली में अवैध रूप से हिरासत में लिया गया है। याचिकाकर्ताओं के वकील ने कोर्ट में तर्क दिया कि बंगाली भाषा बोलने वाले लोगों को बिना उनकी पहचान की जांच किए, बांग्लादेशी नागरिक होने के संदेह में हिरासत में लिया गया है। कोर्ट ने दिल्ली सरकार से यह भी पूछा कि क्या इन लोगों को हिरासत के आधारों की जानकारी दी गई थी और क्या उनकी हिरासत किसी पुलिस जांच या सरकारी कार्रवाई से संबंधित है। इसके अलावा, कोर्ट ने दिल्ली और पश्चिम बंगाल सरकारों के बीच इस मामले में किसी पत्राचार (कम्युनिकेशन) की जानकारी भी मांगी।

कलकत्ता हाई कोर्ट का निर्देश

जस्टिस तपब्रत चक्रवर्ती और जस्टिस रीतोब्रोतो कुमार मित्रा की बेंच ने पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव को दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के मुख्य सचिव के साथ तालमेल करने का निर्देश दिया ताकि इस आदेश का पालन कराया जा सके। कोर्ट ने दिल्ली सरकार को 16 जुलाई तक इस मामले पर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया है, जब इस मामले की अगली सुनवाई होगी।
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ओडिशा में भी ठीक ऐसा ही मामला    

कलकत्ता हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक ऐसे ही मामले में ओडिशा सरकार को भी निर्देश जारी किया था, जिसमें पश्चिम बंगाल के दो प्रवासी श्रमिकों, सैनुर इस्लाम और रकिबुल इस्लाम, की कथित अवैध हिरासत का आरोप था। कोर्ट ने ओडिशा सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा कि क्या ये श्रमिक ओडिशा पुलिस द्वारा जगतसिंहपुर जिले में हिरासत में हैं। ओडिशा और दिल्ली में बीजेपी सरकार है।

राजनीतिक विवाद 

  • इस मुद्दे ने पश्चिम बंगाल में राजनीतिक विवाद को जन्म दिया है। तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने आरोप लगाया है कि बीजेपी शासित राज्यों में बंगाली भाषी प्रवासी श्रमिकों को "बांग्लादेशी" करार देकर निशाना बनाया जा रहा है। टीएमसी सांसद और प्रवासी श्रमिक कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष समीरुल इस्लाम ने इसे "अवैध, असंवैधानिक और अपराध" करार देते हुए कहा कि ममता बनर्जी के नेतृत्व में उनकी पार्टी बंगाली श्रमिकों के अधिकारों के लिए लड़ाई जारी रखेगी।
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कलकत्ता हाईकोर्ट का यह कदम बंगाली प्रवासी श्रमिकों के साथ कथित अन्याय के खिलाफ एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप माना जा रहा है। कोर्ट का यह निर्देश न केवल दिल्ली और ओडिशा सरकारों पर दबाव बनाएगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगा कि प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों का उल्लंघन बांग्लादेशी बताकर न हो। इस मामले की अगली सुनवाई 16 जुलाई को होगी, जिसमें दिल्ली सरकार की रिपोर्ट महत्वपूर्ण होगी।