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नेहरू - मोदीः इतिहास कैसे मिट सकता है।

बीजेपी बुचर पेपर्स पढ़े और कश्मीर पर नेहरू को बदनाम करना बंद करेः रिपोर्ट

द गार्जियन की इस रिपोर्ट के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को उनकी जम्मू कश्मीर नीति के लिए कोसना बंद किया जाना चाहिए। यह जवाहर लाल नेहरू ही थे, जिनकी कश्मीर नीति से वहां शांति लौटी थी। हालांकि भारत-पाकिस्तान के बीच जम्मू कश्मीर को लेकर तीन युद्ध हो चुके हैं। आज कश्मीरियों का दिल जीतना सबसे बड़ी चुनौती है। जम्मू कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा छीने जाने से समस्या का हल नहीं निकल सकता।



क़मर वहीद नक़वी
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को क्या कश्मीर की स्थिति पर 1948 में सेना के टॉप अफसरों ने अंधेरे में रखा था। जिस वजह से नेहरू ने जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया था और जिसे 2019 में मोदी सरकार ने छीन लिया। दरअसल, द गार्जियन अखबार ने 8 मार्च को कुछ गोपनीय दस्तावेजों के हवाले से एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसमें यह बात कही गई है। गार्जियन का कहना है कि बहुत लंबे समय से कश्मीर पर कुछ दस्तावेज गोपनीय हैं, लेकिन गार्जियन का दावा है कि उसने उन गोपनीय दस्तावेजों को खुद देखा है। भारत में इतिहासकार इन्हें बुचर पेपर्स भी कहते हैं।

द गार्जियन के मुताबिक जवाहरलाल नेहरू, को उनके सबसे वरिष्ठ जनरल ने 1948 में पाकिस्तान के साथ युद्ध विराम के लिए सहमत होने का आग्रह किया था। कुछ गोपनीय दस्तावेजों में पत्राचार को देखने के बाद गार्जियन ने यह बात कही।  
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भारत में मोदी सरकार कश्मीर समस्या के लिए पहले पीएम नेहरू को समय-समय पर जिम्मेदार ठहराती रही है। लेकिन द गार्जियन के मुताबिक 1948 में तत्कालीन कमांडर-इन-चीफ, जनरल सर फ्रांसिस रॉबर्ट रॉय बुचर का पत्राचार कुछ और बताता है। इससे नए घटनाक्रम से भारत की मौजूदा राष्ट्रवादी सरकार पर महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रभाव पड़ेगा। क्या मोदी सरकार अब नेहरू के समय की कश्मीर नीति पर फिर से विचार करेगी। मोदी सरकार ने नेहरू की कमजोर कश्मीर नीति के तर्क का इस्तेमाल 2019 में कश्मीर से विशेष दर्जा छीनने और उस क्षेत्र पर अपनी पकड़ मजबूत करने के समय किया था।

मोदी सरकार ने 1948 के इस खत-ओ-किताबत को गोपनीय श्रेणी में रखा हुआ है। इन पत्रों में साफ कहा गया है कि नेहरू वाकई में सेना में अपने सबसे भरोसेमंद सलाहकार की सलाह पर काम कर रहे थे, जिन्होंने चेतावनी दी थी कि भारत लंबे समय तक कश्मीर में जारी सैन्य अभियान का सामना नहीं कर पाएगा, और वहां एक राजनीतिक समझौते की जरूरत थी।
द गार्जियन के मुताबिक 28 नवंबर 1948 को नेहरू को अपने संदेश में, बुचर ने कश्मीर में भारतीय सैनिकों के थके होने की चेतावनी देते हुए कहा कि समग्र सैन्य कार्रवाई अब संभव नहीं है। उन्होंने लिखा था - सेना के जवानों ने दो कमजोरियों को उजागर किया, जूनियर अफसरों में ट्रेनिंग की कमी, अन्य रैंकों में थकान और उत्साह की कमी ... संक्षेप में, सेना को छुट्टी, प्रशिक्षण और जीवन शक्ति के लिए राहत की जरूरत है।

इसके जवाब में, नेहरू ने उन रिपोर्टों पर चिंता जताई थी, जिनमें कहा गया था कि पाकिस्तान का इरादा कुछ हफ्तों के भीतर आसमान से भारतीय ठिकानों पर बमबारी करने का है। इस बीच, पाकिस्तान अपनी स्थिति को बनाए रखने और आगे बढ़ाने के लिए सड़कों का निर्माण कर रहा था।

मुझे यह स्पष्ट है कि हम पाकिस्तान के डिफेंसिव बने रहने पर भरोसा नहीं कर सकते। पाकिस्तान द्वारा लगातार गोलाबारी और आक्रामक अभियान जारी रखने और हमारे वहां इसे रोकने में सक्षम नहीं होने की स्थिति में, पाकिस्तान के साथ युद्ध होने की पूरी संभावना है।


-जवाहर लाल नेहरू, 23 दिसंबर 1948 को बुचर को भेजे गए एक पत्र में, सोर्सः द गार्जियन

28 दिसंबर के बाद के एक पत्र में, बुचर ने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी। बुचर ने लिखा - 

मुझे डर है कि हम पाकिस्तान द्वारा सड़क निर्माण के हर अभियान को रोकने के लिए सैन्य कार्रवाई नहीं कर सकते। क्या मैं इस समस्या के लिए एक राजनीतिक समझौता सुझा सकता हूं।


-जनरल सर फ्रांसिस रॉबर्ट रॉय बुचर, तत्कालनी सैन्य चीफ, नेहरू को जवाब, सोर्सः द गार्जियन

भारत के हिस्से वाले कश्मीर में भारत-पाकिस्तान युद्ध 1 जनवरी 1949 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित युद्ध विराम के साथ समाप्त हुआ और बाद में उसी वर्ष नेहरू ने जम्मू और कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा प्रदान किया था।
द गार्जियन ने लिखा है - भारत और पाकिस्तान कई दशक से कश्मीर मुद्दे पर टकराते रहे हैं। आज भी दोनों देशों के बीच कश्मीर एक मसला बना हुआ है। दोनों देशों ने सीमा विवाद को लेकर तीन युद्ध लड़े हैं। हालाँकि, नेहरू द्वारा प्रदान किए गए अनुच्छेद 370 के उपायों को कश्मीरियों ने मुस्लिम-बहुल राज्य में धीरे-धीरे स्वीकार कर लिया था। इससे पाकिस्तान के साथ तनाव भी कम होता गया। लेकिन 2019 में मोदी के नेतृत्व में बीजेपी सरकार ने औपचारिक रूप से जम्मू कश्मीर की संवैधानिक स्वायत्तता को भारत में पूरी तरह से एकीकृत करने के प्रयास में रद्द कर दिया। इस फैसले ने इस क्षेत्र पर सरकार की पकड़ को मजबूत तो कर दिया लेकिन जम्मू कश्मीर में गुस्सा भड़का गया।
द गार्जियन ने लिखा है - सत्तारूढ़ बीजेपी ने नेहरू पर पाकिस्तानी सेना से अधिक क्षेत्र हड़पने की मांग नहीं करने का आरोप लगाते हुए यह सुझाव देकर अपने फैसले को सही ठहराया। भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने 2019 में कहा था कि संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता से समझौता करने का निर्णय नेहरू की "सबसे बड़ी गलती" थी। अमित शाह ने इसे नेहरू की "हिमालयी भूल" यानी बहुत बड़ी भूल बताया था। अमित शाह ने सवाल किया था - "जब हम युद्ध जीतने ही वाले थे तो युद्धविराम की घोषणा करने की क्या आवश्यकता थी?"  

जम्मू कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता से समझौता करने का निर्णय नेहरू की सबसे बड़ी गलती थी। हिमालयी भूल थी।


-अमित शाह, गृह मंत्री, 2019 में, सोर्सः द गार्जियन

द गार्जियन के मुताबिक हालाँकि, बुचर पेपर्स, जैसा कि उन्हें भारत में जाना जाता हैं, सुझाव देते हैं कि नेहरू अपने सैन्य अधिकारियों की सूचित सलाह पर काम कर रहे थे। 
बुचर, जो एक ब्रिटिश अधिकारी थे, को आजादी के बाद भारत ने भारतीय सैन्य अभियानों से परिचित होने और ब्रिटिश और भारतीय सैन्य कर्मियों के बीच की खाई को पाटने की उनकी क्षमता के कारण भारतीय सेना का कमांडर-इन-चीफ बनने के लिए चुना गया था। उन्होंने अपनी रिटायरमेंट तक 1948 और 1949 के बीच सेवा की और सबसे बड़े सैन्य पद पर पहुंचने वाले अंतिम गैर-भारतीय थे। 
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द गार्जियन ने पिछले महीने खुलासा किया था कि मोदी सरकार कुछ बुचर पेपरों को "संवेदनशील" बताते हुए उन्हें सार्वजनिक करने से रोकने की कोशिश कर रही है। गार्जियन द्वारा देखे गए विदेश मंत्रालय के एक हालिया दस्तावेज़ में कहा गया है कि दस्तावेज के कटेंट को अभी अवर्गीकृत नहीं किया जाना चाहिए। इसमें कहा गया है कि बुचर पेपर्स ने व्यापक रूप से भारत-पाकिस्तान युद्ध (1947-48) की पृष्ठभूमि में कश्मीर में तैनात भारतीय सशस्त्र बलों की राज्य की तैयारियों" और "नेहरू द्वारा पाकिस्तान की आक्रामक सैन्य कार्रवाइयों के बारे में व्यक्त की गई चिंताओं" से अवगत कराया है। 
कई दशक से नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और पुस्तकालय में ये दस्तावेज रखे हुए हैं। वर्षों से, इन पेपर्स को सार्वजनिक करने की कई नाकाम कोशिशें की गईं हैं। बुचर के पत्राचार के कुछ हिस्सों की कुछ प्रतियां लंदन के राष्ट्रीय सेना संग्रहालय में भी रखी गई हैं। गार्जियन ने इस मुद्दे पर भारतीय विदेश मंत्रालय से संपर्क किया था। लेकिन रिपोर्ट लिखे जाने तक भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस पर कुछ नहीं कहा था।

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