ECI Voter List Controversy: चुनाव आयोग के सीईसी ज्ञानेश कुमार मतदाता सूची और महिलाओं के फोटो को लेकर बहुत चिंतित रहते हैं। लेकिन फिर ये डेटा एक राजनीतिक दल और निजी कंपनियों को कैसे मिल गया। रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने इसकी गहन पड़ताल की है। जानिएः
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार
भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने 17 अगस्त को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इस कॉन्फ्रेंस से पहले नेता विपक्ष और कांग्रेस ने मांग की थी कि कुछ मतदान केंद्रों की सीसीटीवी फुटेज सौंपी जाए। ज्ञानेश कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि "क्या चुनाव आयोग को किसी की माँ, बहू, बहन या किसी और के सीसीटीवी वीडियो साझा करने चाहिए?" लेकिन उन्हीं ज्ञानेश कुमार के नेतृत्व में काम कर रहा चुनाव आयोग असलियत में क्या काम कर रहा है।
ECI देश की मतदाता सूची का संरक्षक है। उसके पास एक केंद्रीय डेटाबेस है जिसमें सभी भारतीय मतदाताओं का विवरण, फोटोग्राफ, पते और फोन नंबर दर्ज हैं। चुनाव आयोग का संविधान कहता है कि इस डेटा का इस्तेमाल केवल पारदर्शी और प्रभावी चुनाव कराने के लिए किया जाना चाहिए।
द रिपोर्टर्स कलेक्टिव की जांच में सामने आया है कि चुनाव आयोग ने कम से कम एक मामले में तेलंगाना की तत्कालीन बीआरएस सरकार के साथ यह डेटा जिसमें मतदाताओं की तस्वीरें भी शामिल हैं, साझा किया। तेलंगाना राष्ट्र समिति (अब भारत राष्ट्र समिति) की उस समय की सरकार ने इस डेटा के साथ काम करने के लिए निजी कंपनियों को ठेका दिया था।
पेंशनर लाइव वेरिफिकेशन सिस्टम से शुरू हुई कहानी
नवंबर 2019 में तेलंगाना सरकार ने "पेंशनर लाइव वेरिफिकेशन सिस्टम" शुरू हुआ। यह एक सॉफ्टवेयर प्रोसेस था, जिसका काम पेंशन पाने वाले लोगों के विवरण और तस्वीरों की पुष्टि करना था। इस सिस्टम को बनाने, अपडेट करने और टेस्ट करने के लिए निजी कंपनियों को अनुबंध पर काम सौंपा गया। यह पहला ज्ञात मामला है, जब चुनाव आयोग- जो एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था है- ने अपना मतदाता डेटा किसी राज्य सरकार को दिया, और उसमें निजी कंपनियां भी शामिल हुईं।
चुनाव आयोग ने किन शर्तों पर यह डेटा तीसरे पक्ष के साथ साझा किया, यह अभी तक सार्वजनिक नहीं है। मतदाता सूची का यह केंद्रीकृत डेटाबेस चुनाव आयोग की अनुमति के बिना किसी और द्वारा एक्सेस नहीं किया जा सकता। द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने चुनाव आयोग से इस पर लिखित सवाल पूछे थे, लेकिन रिपोर्ट लिखे जाने तक आयोग का कोई जवाब नहीं आया।
क्या निजी कंपनियों को भी मिली पहुंच?
प्राइवेसी एक्टिविस्ट एस क्यू मसूद ने 2019 में तेलंगाना के सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभाग से सूचना का अधिकार (RTI) के तहत आवेदन किया था। जवाब में मिले दस्तावेजों से पता चला कि हैदराबाद की टेक कंपनी पोसिडेक्स टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड ने इस पेंशनर लाइव वेरिफिकेशन सिस्टम पर काम किया। मसूद को मिली जानकारी में पोसिडेक्स का एक इनवॉइस भी था, जिसमें लिखा था कि उन्होंने विभिन्न सरकारी सॉफ्टवेयर प्रोजेक्ट्स पर काम किया, जिनमें पेंशनर वेरिफिकेशन सिस्टम भी शामिल था।
इनवॉइस में स्पष्ट रूप से लिखा था कि पोसिडेक्स ने इस मॉड्यूल के लिए "चार वेब सर्विसेज विकसित कीं और उन्हें टी-ऐप, इलेक्शन डिपार्टमेंट (EPIC डेटा) और पेंशन डिपार्टमेंट डेटा से जोड़ा।" EPIC डेटा का मतलब है इलेक्शन फोटो आइडेंटिटी कार्ड डेटा, यानी चुनाव आयोग की मतदाता सूची। टी-ऐप तेलंगाना सरकार का ऐप है, जिसके जरिए पेंशनर्स की पहचान और जीवन-स्थिति की रीयल-टाइम जांच होती है। बाद में इस प्रक्रिया का नाम बदलकर रीयल-टाइम डेटा ऑथेंटिकेशन (RTDAI) कर दिया गया। पेंशन पाने वालों को अपनी सेल्फी अपलोड करनी पड़ती थी, जो पहचान और जीवन-प्रमाण का सबूत मानी जाती थी।
पोसिडेक्स के बयानों में विरोधाभास
द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने पोसिडेक्स से संपर्क कर यह जानने की कोशिश की कि उन्हें किस शर्त पर ECI का डेटा मिला। कंपनी के दो अधिकारियों ने अलग-अलग जवाब दिए। जी.टी. वेंकटेश्वर राव (मैनेजिंग डायरेक्टर, पोसिडेक्स) ने कहा:
“यह प्रोजेक्ट तेलंगाना सरकार का था। डेटा सेट और उसके इस्तेमाल की मंजूरी भी राज्य सरकार ही तय करती है। ऐप राज्य सरकार के डेटा सेंटर में होस्ट किया गया। हमें डेटा की कोई सीधी पहुंच नहीं थी।” वहीं, पोसिडेक्स के सह-संस्थापक और CEO वेंकट रेड्डी ने कहा:
“जहां तक मुझे जानकारी है, इस ऐप में चुनाव आयोग का डेटा इस्तेमाल नहीं होता। यह ऐप हमने नहीं बनाया, किसी और कंपनी ने बनाया है। हमने सिर्फ एक छोटा-सा मॉड्यूल दिया है, जो ऑथेंटिकेशन आसान बनाता है और किसी डेटाबेस से सीधे कनेक्ट नहीं होता।”
हालांकि, पोसिडेक्स का इनवॉइस इन बयानों का खंडन करता है। इसमें साफ लिखा है:
“AWS (Amazon Web Services) का इंटीग्रेशन किया गया, जिससे पेंशनर की लाइव फोटो को EPIC कार्ड फोटो से मिलाया जा सके।”
मतदाता डेटा का अन्य प्रोजेक्ट्स में इस्तेमाल
तेलंगाना सरकार की 2023 की एक प्रस्तुति में साफ बताया गया है कि RTDAI को बाद में कई अन्य योजनाओं में भी लागू किया गया। 2020 में इसे नगर निगम चुनावों के दौरान 10 मतदान केंद्रों पर मतदाताओं की फेशियल ऑथेंटिकेशन के लिए प्रयोग किया गया। इसी साल इसे डिग्री ऑनलाइन सर्विसेज, तेलंगाना (DOST) पोर्टल में भी जोड़ा गया, जहां छात्रों की पहचान की पुष्टि EPIC डेटा से की गई।
गोपनीयता कार्यकर्ताओं की शिकायत
28 अगस्त 2025 को प्राइवेसी एक्टिविस्ट श्रीनिवास कोडाली ने तेलंगाना के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) को शिकायत भेजी। उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग के मतदाता फोटो और नामों को तेलंगाना सरकार ने RTDAI के जरिए अन्य सरकारी विभागों – जैसे परिवहन, शिक्षा आदि में भी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।
कोडाली का कहना है कि यह डेटा शेयरिंग संभवतः 2015 में शुरू हुई थी, जब चुनाव आयोग ने EPIC को आधार से जोड़ने की पहल की थी। 25 अप्रैल 2018 की एक चिट्ठी में तेलंगाना के CEO ने डिप्टी इलेक्शन कमिश्नर को लिखा था कि “CEO ऑफिस ने SRDH एप्लिकेशन के साथ इलेक्ट्रोरल रोल/EPIC डेटाबेस साझा किया।”
SRDH (स्टेट रेज़िडेंट डेटा हब) राज्य सरकार का पोर्टल है, जिसमें नाम, उम्र, लिंग, फोटो और पते जैसे प्रमुख डेमोग्राफिक डेटा होते हैं।
कोडाली ने अपनी शिकायत में चुनाव आयोग से मांग की कि CEO कार्यालय के अलावा सभी बाहरी एजेंसियों से EPIC फोटो हटाए जाएं। उन्होंने कहा:
“ECI ने 2015 में सुप्रीम कोर्ट के आधार-EPIC लिंकिंग पर दिए गए फैसले की अनदेखी की। इसके चलते मतदाता डेटा तेलंगाना सरकार को दिया गया, जिसका अब दुरुपयोग हो रहा है।”
बहरहाल, इस रिपोर्ट ने इस बात की पुष्टि की है कि चुनाव आयोग और मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार जिस पारदर्शिता, गोपनीयता का बार-बार उल्लेख कर रहे हैं, वो दूर दूर तक कहीं नहीं है। किसी के लिए चुनाव आयोग का डेटा आसानी से सुलभ है। फोटो पहचान वाली मतदाता सूची भी कंपनियों के पास है। लेकिन वही चुनाव आयोग विपक्षी दलों को डेटा देने को तैयार नहीं है।