सीमेंट डीलरों ने जीएसटी के नए स्लैब लागू होने से पहले रेट बढ़ा दिए हैं। दक्षिण भारत में जहां 20-30 रुपये की बढ़ोतरी की गई है, वहीं उत्तर भारत में 40 से 50 रुपये की बढ़ोतरी हुई है। मार्केट में रेट बढ़ोतरी की पुष्टि होने के बावजूद सीमेंट कंपनियां इसका खंडन नहीं कर रही हैं। 
जीएसटी परिषद ने अपनी 56वीं बैठक में, 3-4 सितंबर 2025 को, सीमेंट पर जीएसटी दर को 28% से घटाकर 18% कर दिया, जीएसटी स्लैब 22 सितंबर 2025 से प्रभावी होंगे। यह उपभोक्ताओं की लंबे समय से चली आ रही मांग थी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को तमाम कंपनियों से कहा है कि वो जीएसटी घटने का फायदा आम जनता को दें। लेकिन बाज़ार का जो हाल है, उसमें सीमेंट पर जीएसटी घटने का बहुत फायदा खरीदारों को नहीं मिलने वाला है। 
सेबी से रजिस्टर्ड एनालिस्ट साहिल भदविया ने शुक्रवार को एक्स पर लिखा- मेरे एक रिश्तेदार का सीमेंट वितरण का कारोबार है। उन्होंने बताया कि सीमेंट कंपनियाँ सीमेंट की कीमतें 30 रुपये प्रति बोरी बढ़ा रही हैं। इससे अंतिम उपभोक्ता को मिलने वाला जीएसटी लाभ खत्म हो जाएगा। जीएसटी में कटौती का एकमात्र लाभ सीमेंट कंपनियों को होगा, जिन्हें अपनी लागत में विभिन्न मदों में 10% अतिरिक्त लाभ होगा। बता दें कि सीमेंट कंपनियों पर इंश्योरेंस कंपनियों की तरह कोई इनपुट कॉस्ट नहीं बढ़ने जा रही है। जबकि सीमेंट कंपनियों की लागत में उन्हें कच्चे माल पर जीएसटी का फायदा होगा।
जीएसटी कटौती से सीमेंट की कीमतें ₹25-30 प्रति बैग कम होने की उम्मीद है, जिससे अखिल भारतीय औसत कीमत ~₹365-372 से ~₹335-345 प्रति बैग हो सकती है। इससे निर्माण लागत में 1-1.5% की कमी आ सकती है, क्योंकि सीमेंट आवास निर्माण लागत का 12-14% हिस्सा है।

क्या सीमेंट डीलर बढ़ा सकते हैं रेट

सभी सीमेंट कंपनियों का विशाल नेटवर्क है और वे डीलरों के जरिए अपना सीमेंट मार्केट में बेचती हैं। यानी डीलर अपना मुनाफा और ट्रांसपोर्ट खर्च निकालकर रेट तय करते हैं। लेकिन इसकी जानकारी सीमेंट कंपनी को होती है। ऐसा करना डीलर के लिए अनिवार्य है। ताकि रेट के मामले में एकरूपता बनी रहे। लेकिन डीलर 40-50 रुपये ज्यादा रेट वसूलने लगे और सीमेंट कंपनियों को इसकी जानकारी न हो, ऐसा नामुमकिन है। लेकिन अभी तक किसी भी सीमेंट कंपनी ने स्थिति स्पष्ट नहीं की है। उनकी चुप्पी ही इस सारे मामले को रहस्यमय बना रही है। अभी तक किसी भी सीमेंट कंपनी ने आधिकारिक बयान इस संबंध में जारी नहीं किया है। 
कंपनियों के लिए जीएसटी लाभ उपभोक्ताओं तक पहुँचाना अनिवार्य है। हालाँकि राष्ट्रीय मुनाफाखोरी रोधी प्राधिकरण (Anti-Profiteering Authority) दिसंबर 2022 में मोदी सरकार भंग कर चुकी है। जिसका काम था कि उपभोक्ताओं तक सरकार की समय-समय पर घोषणाओं का लाभ पहुंच रहा है या नहीं। इस अथॉरिटी का काम था इस बात नज़र रखना कि कंपनियाँ कीमतें कम करती हैं या मार्जिन बढ़ाने के लिए अपने मुनाफे को इधर-उधर एडजस्ट करती हैं। खबरें बता रही हैं कि जीएसटी लागू होने से पहले या बाद में कंपनियाँ कीमतें बढ़ाकर जीएसटी कटौती को निष्प्रभावी कर सकती हैं। 

सीमेंट बाज़ार पर किसका कब्जा

अभी सीमेंट बाज़ार में सबसे ज्यादा कब्जा आदित्य बिरला समूह का है। अडानी समूह नंबर 1 पर पहुंचने के लिए तमाम सीमेंट कंपनियों का अधिग्रहण करता जा रहा है। उसने सरकार की कंपनियों का भी अधिग्रहण किया है।

अडानी समूह की सीमेंट कंपनियां


अंबुजा सीमेंट और एसीसी: सितंबर 2022 में होल्सिम से अंबुजा सीमेंट और एसीसी का अधिग्रहण करके अडानी समूह ने सीमेंट बाज़ार में प्रवेश किया था। इसके बाद, 2023 में सांघी इंडस्ट्रीज का भी अधिग्रहण किया। उसने 2023 में ही पेन्ना सीमेंट का अधिग्रहण किया। 2024 में, अडानी समूह ने सीके बिड़ला समूह की ओरिएंट सीमेंट का अधिग्रहण पूरा किया। इन अधिग्रहणों के ज़रिए, अडानी समूह का लक्ष्य भारत की नंबर 1 सीमेंट कंपनी बनने का है, जो वर्तमान में अल्ट्राटेक सीमेंट है। 

आदित्य बिरला ग्रुप का दबदबा

आदित्य बिरला समूह की मुख्य सीमेंट कंपनी अल्ट्राटेक सीमेंट है, जो भारतीय सीमेंट बाज़ार में सबसे आगे है। हाल ही में, अल्ट्राटेक ने इंडिया सीमेंट में हिस्सेदारी हासिल की है। 2023 में, अल्ट्राटेक ने केसोराम इंडस्ट्रीज की सीमेंट यूनिट का भी अधिग्रहण किया था। अल्ट्राटेक सीमेंट अपनी क्षमता का विस्तार कर रही है और वित्त वर्ष 27 तक 20 करोड़ टन प्रति वर्ष की क्षमता हासिल करने की योजना बना रही है। 

सीमेंट का कारोबार अब मुख्य रूप से अडानी समूह और आदित्य बिरला ग्रुप के पास है। यह स्थिति मोनोपली की है यानी बाज़ार पर एकाधिकार। ऐसे में ये कंपनियां मनमाने रेट तय कर सकती हैं। सरकार को अपनी जीएसटी से मतलब है। जिन अथॉरटीज को इस पर नज़र रखना है, उन्हें कंपनियों के एकाधिकार से मतलब नहीं है। नेता विपक्ष राहुल गांधी अक्सर इस मुद्दे को उठाते रहे हैं और उनका कहना है कि एकाधिकार छोटे उद्योगों को तबाह कर देगा।