चुनाव मैदान से लेकर टीवी चैनलों पर यह बहस चल रही है कि प्रधानमंत्री नीच हैं या नीची जाति के हैं, पर क़ायदे से यह बहस होनी चाहिए थी कि क्या देश आर्थिक मंदी की चपेट में आ चुका है या आने वाला है। बीते एक पखवाड़े से लगभग हर रोज़ एकाधिक ख़बरें आर्थिक बदहाली और गिरावट की आ रही हैं पर वित्त मंत्री भी जब बोलते हैं तो दिखावटी चुनावी मुद्दों पर ही। ये ख़बरें बीते चार महीनों से आ रही थीं, पर एक एक करके लेकिन अब चौतरफ़ा गिरावट की ख़बरें हैं। अमेरिका और चीन के टकराव में हम पिसें न पिसें, यदि मानसून के ख़राब रहने की भविष्यवाणी ही सच हो जाएगी तो हाहाकार मच जाएगा और दुनिया की सबसे तेज़ विकास वाली या छठे नम्बर की अर्थव्यवस्था होने का दावा कहीं काम नहीं आएगा। जी हाँ, अब आर्थिक विकास दर से लेकर महँगाई जैसे आँकड़े भी गिरावट दिखा रहे हैं। पिछले एक साल से खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फ़ीति ऊपर की ओर जा रही है।
आर्थिक मंदी आ चुकी है या आने वाली है?
- अर्थतंत्र
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- 16 May, 2019

चुनाव मैदान से लेकर टीवी चैनलों पर यह बहस चल रही है कि प्रधानमंत्री नीच हैं या नीची जाति के हैं, पर क़ायदे से यह बहस होनी चाहिए थी कि क्या देश आर्थिक मंदी की चपेट में आ चुका है या आने वाला है।