इस मामले से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि कश्मीर के भीतरी इलाकों से सेना हटाने के प्रस्ताव पर लगभग दो साल से चर्चा हो रही है। यह प्रस्ताव अब रक्षा मंत्रालय, गृह मंत्रालय, जम्मू-कश्मीर पुलिस पास है। इस प्रस्ताव में कहा गया है कि सेना को हटाकर उसकी जगह सीआरपीएफ को तैनात किया जाएगा। सीआरपीएफ कानून व्यवस्था के अलावा आतंकवाद के हालात को भी संभालेगी।
एक वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि मामला कई मंत्रालयों के पास है, जिस पर गंभीर चर्चा हो रही है। समझा जाता है कि एक तरह से इस पर फैसला लिया जा चुका है। लेकिन इसे कब घोषित किया जाता है, यह देखने वाली बात है। अब जो कुछ भी होना है वो राजनीतिक स्तर पर होना है यानी बीजेपी सरकार को फैसला लेना है। इस संबंध में इंडियन एक्सप्रेस ने सीआरपीएफ, जम्मू-कश्मीर पुलिस और सेना से बात करने की कोशिश की लेकिन किसी ने फोन या मैसेज का जवाब नहीं दिया।
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार जम्मू-कश्मीर में सेना के लगभग 1.3 लाख जवान तैनात हैं, जिनमें से लगभग 80,000 सीमा पर तैनात हैं। राष्ट्रीय राइफल्स के लगभग 40,000-45,000 कर्मियों के पास कश्मीर के भीतरी इलाकों में आतंकवाद विरोधी घटनाओं को संभालने की जिम्मेदारी है।
सीआरपीएफ के पास जम्मू-कश्मीर में करीब 60,000 कर्मियों की ताकत है, जिनमें से 45,000 से अधिक कश्मीर घाटी में तैनात हैं। जम्मू-कश्मीर पुलिस में 83,000 जवान हैं। इसके अलावा, अन्य केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) की कुछ कंपनियां घाटी में तैनात रहती हैं। घाटी में सुरक्षा स्थिति के आधार पर सीएपीएफ के आंकड़ों में उतार-चढ़ाव होता है।
इंडियन एक्सप्रेस को गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि सेना हटाने के प्रस्ताव पर विचार करने का मकसद यही है कि वहां न सिर्फ सामान्य हालात का दावा करना है, बल्कि उसे दिखाना भी है। केंद्र सरकार का दावा है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी हिंसा की घटनाओं और सुरक्षाकर्मियों की हत्याओं में 5 अगस्त, 2019 से पहले के मुकाबले लगभग 50 फीसदी की कमी आई है। अधिकारी ने कहा कि केंद्र सरकार ने जो फैसले लिए उस वजह से 5 अगस्त, 2019 के बाद से घाटी में हिंसा लगातार कम हुई है। पथराव लगभग खत्म है। कानून-व्यवस्था की स्थिति काफी हद तक नियंत्रण में है। ऐसे में अगर सामान्य हालत का दावा किया जाएगा तो वहां सेना की बड़ी मौजूदगी की बात अजीब लगेगी। एक अन्य सरकारी अधिकारी का कहना है कि आदर्श स्थिति तो यह होगी कि जम्मू-कश्मीर पुलिस को भीतरी इलाकों में आतंकवादरोधी अभियानों की कमान सौंप दी जाए। इस प्रस्ताव पर चर्चा हो रही है।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक उस अधिकारी ने यह भी कहा कि फिलहाल केंद्र शासित प्रदेश का पुलिस बल इसके लिए तैयार नहीं दिख रहा है। इसलिए यह विचार किया जा रहा है कि क्यों न जम्मू-कश्मीर पुलिस को केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के साथ तैनात कर दिया जाए। श्रीनगर में वर्षों से पुलिस और सीआरपीएफ ने अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है, जहां सेना मौजूद नहीं है। लेकिन अगर दोनों की तैनाती पूरे राज्य में तैनाती की जाती है तो कमांड स्ट्रक्चर कैसे काम करेगा, इसका ब्योरा तैयार किया जा रहा है।