बिहार के दलित आंदोलन में हीरा डोम की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण एवं सराहनीय है। वह आज भी उतनी ही मज़बूती लिए हुए है। हीरा डोम ने दलितों की पीड़ा एवं संवेदना को (अपनी कविता) ‘अछूत की शिकायत’ से अभिव्यक्ति दी। भोजपुरी में लिखी यह कविता ‘सरस्वती’ पत्रिका के 1914 के अंक में प्रकाशित हुई थी। इस कविता में उस समय जो दलितों की पीड़ा थी, समाज में भेदभाव था, दलितों को लेकर जो अमानवीय व्यवहार था उसे सशक्त अभिव्यक्ति दी है।
बिहार के साहित्य में क्यों ग़ायब होता जा रहा है दलित आंदोलन!
- साहित्य
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- 17 Jul, 2021

प्रतीकात्मक तसवीर
बिहार के दलित आंदोलन में हीरा डोम की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण एवं सराहनीय है। इस सन्दर्भ में चर्चित कथाकार मधुकर सिंह की कहानी ‘दुश्मन’ का विशेष स्थान है।
इस कविता से हीरा डोम ने सरकार और भगवान को घेरने की बहुत सार्थक कोशिश की थी। साथ ही, समाज को भी कठघरे में लाकर खड़ा किया था। हीरा डोम ने दलितों के साथ ग़ैरबराबरी के व्यवहार को इतनी मज़बूती से उठाया था कि उसके लिखे शब्द आज भी नितांत प्रासंगिक हैं। वे दलित आंदोलन से जुड़े लोगों के समक्ष सवाल भी खड़े करते हैं। सरकार बदली, व्यवस्थाएँ बदलीं, लोग बदले, समाज और देश बदला लेकिन समाज के अंदर ग़ैरबराबरी का दंश नहीं मिटा। दलितों की पीड़ा आज भी चौतरफा घट रही घटनाओं में साफ़ झलकती है। दलितों के साथ बलात्कार, उत्पीड़न आदि जुल्म जारी हैं।