‘महाभोज’ लिखने की प्रेरणा के मूल में आपातकाल के बाद सत्ता परिवर्तन के दौर में 1977 में बिहार के बेलछी गाँव का वह सामूहिक दलित हत्याकांड था, जिसने इंदिरा गांधी की वापसी और राजनीतिक पुनर्जीवन का द्वार खोला था।
मुक्तिबोध की जाति पर विवाद क्यों है? पूछने वाले को खलनायक साबित करने में कुछ लोग क्यों जुटे हैं? क्या ऐसा कभी होगा कि मुक्तिबोध की जाति का सवाल बिल्कुल अप्रासंगिक हो जाए?
निर्मल वर्मा के कालजयी उपन्यास 'एक चिथड़ा सुख' पर वरिष्ठ पत्रकार प्रियदर्शन ने एक बेहद सारगर्भित टिप्पणी 'कथादेश' के लिए लिखी थी। रेणु की 'परती परिकथा' को साथ में याद करते हुए। अर्थ और व्यर्थ के बीच जीवन का मर्म तलाशने की कोशिश।
जानी-मानी लेखिका अरुंधति रॉय की नयी क़िताब 'आज़ादी' आई है। यह 2018 से लेकर 2020 तक लिखे गए उनके लेखों या दिए गए व्याख्यानों का संकलन है। पढ़िए इसकी समीक्षा कि इसमें आख़िर क्या ख़ास है।
साहित्यकार वीरेंद्र यादव के इस पोस्ट पर विवाद हो गया है कि कौन सा आधुनिकता बोध आज प्रासंगिक है प्रेमचंद का या निर्मल वर्मा का? आख़िर निर्मल वर्मा पर उस पोस्ट से कुछ लोगों की भावनाएँ आहत क्यों हो गईं।
वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश के संस्मरणों की किताब ‘ग़ाज़ीपुर में क्रिस्टोफर कॉडवेल’ की किताब आ चुकी है। नवारुण प्रकाशन ने इसका प्रकाशन किया है। पढ़िए, प्रसिद्ध आलोचक वीरेंद्र यादव से इसकी समीक्षा।
आखिर क्या वजह है कि चीन रह रह कर भारतीय सीमा में घुसपैठ करता है। इसका खुलासा सामरिक मामलों के टिप्पणीकार रंजीत कुमार ने अपनी ई-बुक 'ड्रैगन ने हाथी को क्यों डसा ( भारत- चीन रिश्तों की कहानी)' में काफी गहराई से किया है।
प्रसिद्ध नारीवादी निवेदिता मेनन की किताब 'सीइंग लाइक अ फेमिनिस्ट' का हिंदी अनुवाद 'नारीवादी निगाह से' नाम से हाल ही में प्रकाशित हुआ है। किताब बड़ी सरलता से हमे मौजूदा व्यवस्था, जेंडर अवधारणाओं और व्यवहारिक प्रयोगों के विरोधाभासों से रूबरू करती हैं।
बिहार के दलित आंदोलन में हीरा डोम की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण एवं सराहनीय है। इस सन्दर्भ में चर्चित कथाकार मधुकर सिंह की कहानी ‘दुश्मन’ का विशेष स्थान है।
एक तबका गांधी की हत्या को सही ठहराने की भौंडी और वीभत्स कोशिश कर रहा है। तब एक बार फिर गांधी की हत्या पर नये सिरे से पड़ताल की ज़रूरत थी। अब यह नई कोशिश एक किताब- ‘उसने गांधी को क्यों मारा’ की शक्ल में सामने आयी है।