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क्या इस बार भी मोदी की सरकार बना पाएगी मैडीसन मीडिया?

राजनीति सचाई से ज़्यादा इमेज का खेल है। सचाई कैसी भी हो उसे मीडिया के ज़रिये तोड़ा-मरोड़ा भी जा सकता है और एक हद तक मन मुताबिक जनता को अपने पक्ष में किया भी जा सकता है। इस बात को प्रधानमंत्री मोदी से बेहतर कौन जानता है? गुजरात दंगों का कलंक झेलने वाले बने रहे मोदी लंबे समय तक एक तबके की नज़र में खलनायक बने रहे। वही मोदी 2014 के बाद एक ‘हीरो’ बन कर उभरे, एक ऐसे शख्स के रूप में जो भारत की तक़दीर बदल सकता है।
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उन्हें दूसरे नेताओं की तरह नेता नहीं, बल्कि मसीहा के रूप में देखा गया। यह कमाल काफ़ी हद मीडिया में उनकी नयी छवि गढ़ने वाली टीम का था। चुनाव के बाद भी उनकी कल्ट इमेज काफी हद तक बरक़रार रही। पिछले दिनों इनकी लोकप्रियता में कमी आयी है। उनकी छवि पर रफाल जैसे गंभीर दाग भी लगे हैं। ऐसे में 2019 के चुनाव के लिये उन्हें फिर एक ऐसी मीडिया टीम की ज़रूरत है जो उनको न केवल जीत दिलाये बल्कि एक ऐसे नेता के तौर पर पेश करे जिसके बग़ैर देश नहीं चल सकता।
इस इमेज मेकओवर के लिये एक बार फिर उन्होंने मैडीसन मीडिया एजेंसी को ही चुना है। 2014 में भी सैम बलसारा द्वारा संचालित इसी एजेंसी पर मोदी ने अपने चुनाव कैंपेन के लिए भरोसा जताया था। कहा जा रहा है कि बीजेपी ने इस एजेंसी को अपने साथ रखने के लिए 500 करोड़ से ज्यादा रकम दी है।
याद हो कि पिछले लोकसभा चुनाव में सैम बलसारा की मैडीसन मीडिया के अलावा पियूष पाण्डे द्वारा संचालित ओगलिवी और माथेर से भी बीजेपी ने करार किया था जिसने ‘अबकी बार, मोदी सरकार’ का एक ऐसा नारा दिया जो हर किसी की ज़ुबान पर बैठ गया था। यही नहीं बीजेपी ने सोहो स्कॉयर और प्रसून जोशी की मैकन एजेंसी के साथ भी करार किया था।
2014 का चुनाव देश के इतिहास में एक मिशाल है। जिसमें बीजेपी ने 13 सितंबर 2013 को नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित किया। मई 2014 तक पूरे देश में रैलियाँ, चुनावी कार्यक्रम, थ्री-डी रैलियाँ और चाय पर चर्चा को मिलाकर 5,827 कार्यक्रम आयोजित किए। इन बीच बीजेपी की मीडिया एजेंसियों ने मोदी को देश का सबसे चर्चित चेहरा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

ओबामा की तर्ज़ पर

बराक ओबामा पहले अश्वेत अमेरिकी राष्ट्रपति तो थे, वह पहले ऐसे अमेरिकी राष्ट्रपति थे जिन्होंने चुनावी कैंपेन को डिजिटली ज़्यादा तरजीह दी। वह अपने प्रतिद्वंदी मिट रोमनी को फ़ेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब पर व्यूज़, लाइक्स, और पिन्स में हर जगह बुरी तरह पछाड़ रहे थे। फेसबुक पर ओबामा को अपने प्रतिद्वंदी से दो गुना ज्यादा लाइक्स और लगभग बीस गुना ज़्यादा री ट्वीट्स भी मिले थे।

जहाँ ओबामा  2,12,54,754 ट्विटर पर फ़ॉलोअर के साथ दबदबा बनाए हुए थे वहीं रोमनी के 15,59,035 ही फॉलोअर थे। सोशल मीडिया की ताक़त का अनुमान इसी बात से पता लगा लिया जा सकता है कि पत्रकारों ने दोनों उम्मीदवारों के बारे में किस प्रकार के ट्वीट हो रहे हैं, उससे ही चुनाव का मूँड भाँप लिया था। रोमनी के लिए जहाँ 17 फ़ीसदी सकारात्मक और 59 फीसदी उनके विरोध में ट्वीट्स थे तो ओबामा का यह ग्राफ़ 25 और 44 फीसदी का था। ओबामा ने कैंपेन के लिए नेताओं पर नहीं बल्कि तकनीकी और आँकड़ों पर भरोसा किया था और उसी हिसाब से डिजिटल टीम रखी। उसका फ़ायदा भी उनको मिला था।
वहीं अगर भारत की राजनीति की बात करें तो 2014 में भारत में भी कुछ ऐसा ही हुआ था। भारत में बीजेपी पहली पार्टी बनी जिसने सोशल मीडिया, इंटरनेट पर चुनावी कैंपेन को काफी तरजीह दी।मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की विचारधारा में ज़मीन आसमान का फ़र्क हो सकता है, लेकिन दोनों के चुनावी प्रचार में काफी समानता थी।
कहा तो यह भी जाता है कि मोदी की प्रचार टीम ने ओबामा की पूरी कैंपेन रणनीति की हू बहू नकल की थी। यही नहीं मोदी ने हैदराबाद में एक रैली के दौरान तो ओबामा का ‘येस वी कैन, येस वी विल डू’ नारा तक दोहराया था।
कहीं न कहीं मोदी और ओबामा की पृष्ठभूमि भी एक जैसी थी। और उसको भी दोनों ने खूब जमकर भंजाया भी और फ़ायदा भी उठाया। मोदी टीम ने भी ओबामा की तरह ही 2014 के चुनाव में इंटरनेट या सोशल मीडिया का इस्तेमाल बखूबी किया था। बराक ओबामा ने भी 2012 के चुनावों में अपने प्रचार में डिजिटल प्रचार पर काफी ज़ोर दिया था।
एक अनुमान के मुताबिक़ ओबामा टीम ने 1.1 बिलियन डॉलर की रकम केवल प्रचार में ही खर्च कर दी थी। भारत में भी साल 2014 में फ़ेसबुक से लेकर ट्विटर पर ख़ूब जमकर चुनाव लड़ा गया। ट्विटर पर बेइंतहा चुनाव प्रचार के कारण लोगों ने इसको #twitterElection तक कहा गया।
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सेल्फ़ी ट्रेंड को भी पकड़ा

मोदी ने तब वक़्त की हवा को बखूबी भाँपा था और दुनिया में चल रहे सेल्फ़ी ट्रेन्ड को भी अपनाया था। वड़ोदरा में वोट डालने के बाद खींची गई मोदी की सेल्फ़ी को लोगों ने वायरल कर दिया। इकलौते मोदी ही बीजेपी में सबसे ज़्यादा सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने वाले नेता बने। 16 मई को जीत के बाद डाली गई मोदी की सेल्फ़ी को लाखों लाइक्स भी मिले।
देश के इतिहास में पहली बार वर्चुअल थ्री डी विडियो से मोदी ने देश के कई भागों में एक साथ भाषण दिए। डिजिटल प्रचार के नये तरीक़ों को अपनाते हुये मोदी के नाम से ‘मोदी रन’, ‘मोदी 272+’ जैसे ऑनलाइन गेम तक लॉन्च किये गये थे। जिसमें मोदी देश के राज्यों में दौड़ते थे,और जितने ज़्यादा राज्यों में वह दौड़ते थे, खेलने वाले को उतने अंक मिलते थे।

सबसे आगे बीजेपी

बीजेपी का सोशल मीडिया पर कितना फ़ोकस रहता है, यह फ़ेसबुक पर उसके ख़र्च से पता चलता है। फ़ेसबुक के मुताबिक इस साल फरवरी में जितने राजनीतिक प्रचार सोशल मीडिया पर किए गए हैं उनमें से आधे से ज़्यादा बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टियों ने किए हैं। जिसमें कांग्रेस तीसरे नंबर पर रही। कांग्रेस से ज़्यादा प्रचार क्षेत्रीय पार्टियों ने किया।
पिछले साल के अंत में हुए पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों के वक़्त ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल (बार्क) ने एक आंकड़ा जारी किया था, जिसमें बीजेपी देश का सबसे ज़्यादा टीवी पर विज्ञापन देने वाला ब्रांड बना था। जिसने नेटफ्लिक्स, त्रिवैगो, डेटॉल जैसे ब्रांड को विज्ञापन के मामले में पीछे छोड़ दिया था।

किसका नारा कितना मजबूत

पिछली बार मोदी सरकार के नारों ने भी उसकी जीत में एक बड़ी भूमिका निभाई थी जिसमें ‘जनता माफ़ नहीं करेगी’ ‘अबकी बार, मोदी सरकार’, जो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के ‘अबकी बारी अटल बिहारी’ से काफी मिलता है, ‘अच्छे दिन आने वाले हैं, हम मोदी जी को लाने वाले हैं’ जैसे नारों ने जनता में काफी कामयाबी हासिल की थी। वहीं कांग्रेस के ‘हर हाथ शक्ति  हर हाथ तरक्की’ जैसे नारे जनता को प्रभावित करने में असफल रहे थे।

14 के चुनाव की मीडिया एजेंसियाँ

2014 कांग्रेस ने डेन्सू जैसी एजेंसी पर भरोसा जताया था। डेन्सू जापान में विज्ञापन की सबसे बड़ी एजेंसी है और विश्व की पाँचवें नम्बर की कंपनी मानी जीती है। लेकिन इस सबके बाद भी वह कांग्रेस को सफलता हासिल नहीं करा पाई। जिसके बाद कांग्रेस की तरफ से डेन्सू के कैंपेन पर सवाल भी उठाए गए थे। पिछले लोकसभा चुनाव प्रचार के ख़र्चे में भी बीजेपी कांग्रेस से आगे रही। एक आँकड़े के मुताबिक़ जहाँ बीजेपी ने 714 करोड़ रुपए से ज़्यादा खर्च किए तो कांग्रेस ने लगभग 516 करोड़ रुपए की रकम चुनावी खर्चों पर लगाई।

सोशल मीडिया का होगा फिर अहम किरदार

अगर आगामी लोकसभा चुनाव की बात करें तो मोदी सरकार अपनी महत्वपूर्ण योजनाओं पर जमकर कैंपेन क़राने की योजना पर काम कर रही है। इन योजनाओं में मुद्रा योजना, उज्जवला योजना, आयुष्मान भारत योजना जैसी स्कीमों को शामिल किया जाएगा, जिनको बीजेपी अपनी सरकार की सफल योजना के रूप में पेश करती रही है।
वहीं इस बार भी सोशल मीडिया का भरपूर या कहें और बड़े स्तर पर इस्तेमाल होगा। बीजेपी ने इसके लिए  क्षेत्रवार साइबर विशेषज्ञों की टीम तैयार की है, जो पिछली मनमोहन सरकार की कमियों को उजागर करने और मोदी सरकार की खूबियों को लोगों तक पहुँचाने का काम करेगी।
लेकिन मोदी के लिये इस बार चुनाव आसान नहीं होगा जैसा पहले हुआ था। अब विपक्ष के एकजुट होने के साथ ही वह इंटरनेट पर भी अपनी पैठ मजबूत कर रहा है। इस बार डिजिटल इंजीनियरिंग दोनों ओर से होगी। विपक्ष की कोशिशों के बावजूद अभी भी विपक्ष बीजेपी से सोशल मीडिया कैंपेन में पीछे ही नज़र आ रहा है।  
जहाँ बीजेपी ने मीडिया मैनेजमेंट एजेंसियों के साथ क़रार करना शुरू कर दिया हैं वहीं कांग्रेस ने अभी तक किसी भी एजेंसी के साथ कोई क़रार नहीं किया है। पर एक अभी बाकी है । सवाल ये है कि 2014 में कांग्रेस को जवाब देने थे, इस बार जवाब मोदी को देने होंगे। ऐसे में मीडिया कैंपेन कितने कामयाब होगे ये देखने वाली बात होगी।
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क़मर वहीद नक़वी
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