जोसेफ स्टोरी की 200 साल पहले कही गयी बात सही साबित हो रही है। पार्टी में आ जाएँ तो सात खून माफ़ लेकिन सरकार के ख़िलाफ़ जाएँगे तो ‘देशद्रोह’। संदेश साफ़ है ‘पाला बदलो या सीबीआई को झेलो और जेल भोगो’। क्या इस सन्देश का तार्किक विस्तार यह नहीं हो सकता कि ‘हमारे ख़िलाफ़ होने का मतलब सीबीआई/ एन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट या इनकम टैक्स की चाबुक झेलने को तैयार रहो।
1980 के मध्य में कांग्रेस सरकार ने सिंगल डायरेक्टिव के तहत सीबीआई के लिए किसी भी जॉइंट सेक्रेटरी और उसके ऊपर के अधिकारी के ख़िलाफ़ लगे भ्रष्टाचार के आरोप पर जाँच के पहले सरकार की अनुमति लेने की बाध्यता कर दी। बाद में दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के सेक्शन 6(1) में ‘सिंगल डायरेक्टिव’ जोड़ते हुए सीबीआई (जो इसी क़ानून के तहत अस्तित्व में आया था) इसे और पुख्ता कर दिया। उधर संशोधन के तहत धारा 19 भ्रष्टाचार निरोधक क़ानून में भी यही प्रावधान लाया गया। इसे दो-दो बार सुप्रीम कोर्ट की खंड (दिसम्बर, 1997) और संविधान पीठों ने समानता के अधिकार के ख़िलाफ़ बताते हुए निरस्त किया लेकिन 2003 में वाजपेयी सरकार ने इसे फिर से सीवीसी एक्ट में भी शामिल किया और मोदी सरकार ने न केवल इसे भ्रष्टाचार निरोधक क़ानून के प्रावधान के रूप में प्रतिष्ठापित किया बल्कि सिंगल डायरेक्टिव पूरी ताक़त से प्रयोग किया जाने लगा।
यहाँ सोचने की बात है कि राज्यपाल अभियोग चलाने की मंजूरी दे देता है लेकिन बीजेपी में शामिल लोगों के ख़िलाफ़ वही अभियोग नहीं चलाया जा सकेगा क्योंकि स्पीकर उस पर कोई फ़ैसला नहीं ले रहा है या सीबीआई ने अनुशंसा का पत्र ही नहीं भेजा है।
सीबीआई के अधिकारी, स्पीकर, राज्यपाल, मंत्री और सांसद संविधान में निष्ठा या रक्षा की शपथ लेते हैं लेकिन कौन आरोपी/अभियुक्त/अपराधी एक ग़लत क़ानून की आड़ में संसद में बैठ कर स्वयं क़ानून बनाएगा, कौन जेल जाएगा (क्योंकि पाला नहीं बदला), और किस पर सीबीआई की दयादृष्टि ‘आका’ के इशारे पर होगी, यह संविधान नहीं तय करेगा।
जोसेफ स्टोरी की 200 साल पहले कही गयी बात सही साबित हो रही है। पार्टी में आ जाएँ तो सात खून माफ़ लेकिन सरकार के ख़िलाफ़ जाएँगे तो ‘देशद्रोह’। संदेश साफ़ है ‘पाला बदलो या सीबीआई को झेलो और जेल भोगो’। क्या इस सन्देश का तार्किक विस्तार यह नहीं हो सकता कि ‘हमारे ख़िलाफ़ होने का मतलब सीबीआई/ एन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट या इनकम टैक्स की चाबुक झेलने को तैयार रहो। क्या हम आदिम सभ्यता, जिसमें ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ हुआ करती थी, में फिर से वापस नहीं जा रहे हैं?