तालिबान विदेश मंत्री जयशंकर के साथ
दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के तहत हतप्रभ करने वाली तालिबानी प्रेस वार्ता का आयोजन किया गया, जहाँ मिट्टी में लिखा है - यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
वहाँ नारी को दरवाज़े से लौटा दिया गया, सरकार के सामने, सरकार की सहमति से? या बिना बताये?
जिस धरती पर "मातृदेवो भव" का उद्घोष होता है, उसी दिल्ली में तालिबान के मंत्री ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और सभी महिला पत्रकारों को बाहर कर दिया। यह केवल एक कूटनीतिक चूक नहीं थी, यह भारतीय संविधान, संस्कृति और आत्मा पर सीधा प्रहार था। और यह सब उस सरकार के शासन में हुआ जो स्वयं को हिंदू राष्ट्रवादी और संस्कृति रक्षक कहती है? यह विडंबना नहीं, त्रासदी है।
तालिबान का महिला-विरोधी शासन
दुनिया ने देखा है कि किस तरह तालिबान ने अगस्त 2021 में सत्ता में आते ही अफगान महिलाओं पर अभूतपूर्व प्रतिबंधों की बौछार कर दी थी, जो आज भी लागू है। कुछ बानगी देखिए:
- छठी कक्षा के बाद लड़कियों की शिक्षा पर रोक।
- महिलाओं को NGO, मीडिया, सरकारी सेवा से बाहर।
- पार्क, जिम, ब्यूटी पार्लर तक में प्रवेश वर्जित।
- बिना पुरुष अभिभावक के यात्रा पर रोक।
- विरोध करने पर जेल, मारपीट, गायब कर देना आम।
पूरी दुनिया में नारियों के साथ इस भेदभाव की भरपूर आलोचना हुई। यहाँ तक कि संयुक्त राष्ट्र ने इसे "Gender Apartheid" यानी लैंगिक रंगभेद कहा है—जो पहले केवल दक्षिण अफ्रीका के नस्लीय भेदभाव के लिए प्रयुक्त होता था।
ध्यान देने वाली बात यह है कि आज की तारीख में दुनिया में संयुक्त राष्ट्र के तहत सूचीबद्ध कुल 193 देशों में से एक भी (0 मान्यता) देश ने अफगानिस्तान के तालिबान शासन को कोई मान्यता नहीं दी है। कुछ देशों ने रणनीतिक तौर पर इस शासन के साथ संपर्क रखे भी हैं, उन देशों में से एक भी देश ने तालिबान को आधिकारिक मान्यता नहीं दी है।
यहाँ तक कि मुस्लिम बहुल देश, कम्युनिस्ट चीन और तालिबान के पुराने समर्थक पाकिस्तान ने भी इसे मान्यता नहीं दी। और भारत? दिल्ली में स्वागत कर रहा है?
भारतीय संविधान की मूल संरचना पर हमला
इस तरह के ऐतिहासिक भेदभावपूर्ण प्रेस कॉन्फ्रेंस की इजाजत देना भारतीय संविधान की अवमानना है और भारत, जिसे हम माँ भारती कहते हैं, उसकी मूल संरचना पर हमला और अपमान है।
हमारे संविधान की आत्मा कहती है:
- अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता।
- अनुच्छेद 15: लिंग के आधार पर भेदभाव वर्जित।
- अनुच्छेद 19(1)(a): अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।
- अनुच्छेद 21: जीवन और गरिमा का अधिकार।
याद रहे कि संविधान सभा में डॉ. भीमराव आंबेडकर ने नारी सम्मान और समानता को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए कहा था- “किसी समाज की प्रगति का मापदंड उसकी महिलाओं की स्थिति से होता है।”
हंसा मेहता ने लिंग समानता के लिए संघर्ष किया, ताकि भारत की बेटियाँ कभी परदे के पीछे न रहें। और आज? दिल्ली में तालिबानी मंत्री महिला पत्रकारों को दरवाज़े से लौटा देता है, और सरकार चुप?
भारत का सनातन धर्म
हमारे धर्मनिरपेक्ष भारत के सभी धर्मों, समाजों और संविधान में भी नारी का पूरा सम्मान और समानता का अधिकार दिया गया है। भाजपा नीत एनडीए सरकार जिस सनातन धर्म का झंडा उठाने की बात करती है, वह तो नारी को शक्ति मानने और पूजने वाली संस्कृति है। भारत की संस्कृति में नारी को मातृशक्ति, सरस्वती, दुर्गा, और लक्ष्मी के रूप में पूजा जाता है:
- "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:" — जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं।
- "मातृदेवो भव" — माँ को देवता मानो (तैत्तिरीय उपनिषद)।
और शास्त्र कहते हैं कि जहाँ नारी का अपमान होता है, वहाँ देवता भी नहीं ठहरते।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः॥
- ऋग्वेद (10.85.46): "जहाँ नारी का सम्मान नहीं, वहाँ विनाश निश्चित है।"
स्वामी विवेकानंद ने कहा: “जब तक नारी की स्थिति सुधरेगी नहीं, तब तक समाज का कल्याण असंभव है।”
तो फिर, सनातन धर्म की दुहाई देने वाली सरकार, नारी को अदृश्य मानने वाले तालिबान के सामने नतमस्तक क्यों? क्या कूटनीतिक मजबूरियाँ इस कदर बयान करने योग्य नहीं कि समस्त नारी समाज का अपमान स्वीकार कर लें?
भाजपा-आरएसएस समर्थक भी स्तब्ध
यह घटना केवल विपक्ष नहीं, भाजपा और आरएसएस के समर्थकों को भी चौंका गई। सोशल मीडिया पर सवाल उठे: “क्या यही हिंदुत्व है?”
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह नीति परिवर्तन नहीं, असली चेहरा है- जहाँ राजनयिक लाभ के लिए नैतिकता को गिरवी रख दिया गया है।
कुछ मासूम उदाहरण, कुछ क्रूर सच्चाइयाँ
तालिबानी शासन की सच्चाइयाँ मीडिया में छन छन कर आती हैं, जहाँ एक अफगान लड़की कहती है: “मैं किताबें बिस्तर के नीचे छुपाती हूँ। अगर मिल गईं, तो अब्बू को मारेंगे।” और एक महिला पत्रकार कहती है: “हम छद्म नाम से रिपोर्टिंग करते हैं। हम अपने देश में भूत बन चुके हैं।”
इसके विपरीत एक अन्य इस्लामी देश सऊदी अरब में महिलाएँ अब गाड़ी चला सकती हैं, वोट दे सकती हैं, और काम कर सकती हैं। तालिबान अकेला है अपनी मध्ययुगीन मानसिकता में। और भारत? उसे दिल्ली में मंच दे रहा है।
विदेश मंत्रालय की सफाई और नीति परिवर्तन?
जब यह विवाद उठा, तो भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने कहा कि यह प्रेस कॉन्फ्रेंस अफगान दूतावास द्वारा आयोजित थी, और भारत सरकार की कोई भूमिका नहीं थी। क्या अफगान दूतावास ने पूछा भी नहीं और बताया भी नहीं। दिल्ली में तो किसी सभागार में म्यूजिक कार्यक्रम करने से पहले भी दिल्ली पुलिस की इजाज़त लेनी पड़ती है।
क्या यह वही MEA नहीं है जिसने 2021 में तालिबान के महिला विरोधी रवैये की आलोचना की थी। अब चुप्पी? क्या यह नीति में बदलाव है?
UN में भारत की महिला अधिकारों की वकालत
भारत ने हाल ही में महिला आरक्षण विधेयक पारित कर UN में इसे "महिला नेतृत्व वाले विकास" का प्रतीक बताया।
और जब भारत ने G20 की शानदार अध्यक्षता की तो लैंगिक समानता को प्राथमिकता देते हुए महिला सशक्तिकरण से आगे बढ़ कर महिला नीत सशक्तिकरण की बात कही और UNICEF और UN Women के साथ मिलकर भारत ने महिला सशक्तिकरण के लिए वैश्विक मंचों पर नेतृत्व भी किया। और अब दिल्ली में तालिबान को मंच देना, क्या इन सब प्रयासों का मज़ाक नहीं उड़ाता? भारत विश्व समुदाय को क्या सफाई देगा?
यह कूटनीति नहीं, आत्मसमर्पण है
यह वाम या दक्षिण की बात नहीं। यह धर्म और अधर्म, संविधान और अपमान, माँ भारती और तालिबानी मानसिकता के बीच के चुनाव का प्रश्न है।
भारत को महिला पत्रकारों के सम्मान की रक्षा करना चाहिए था और कम से कम इसका विरोध व खुलेआम निंदा करना चाहिए था।
यह भी घोषित करना चाहिए कि वह ऐसे किसी भी विदेशी प्रतिनिधिमंडल को आइंदा प्रवेश नहीं देगा, जो भारतीय संविधान का अपमान करें।
वरना भारत UN और G20 में महिला अधिकारों के लिए वैश्विक नेतृत्व का नैतिक अधिकार खो देगा। विदेश नीति में नैतिकता और संवैधानिक मूल्यों की प्राथमिकता अनिवार्य है।
भारत की आत्मा रणनीतिक चुप्पी से नहीं, बल्कि धर्म, गरिमा और न्याय से परिभाषित होती है।
देश सोच भी नहीं पा रहा कि बात बात पर लोगों को पाकिस्तान भेजने वाली भाजपा के नेता अब क्या कहेंगे? लोग दांतों तले उंगली दबा रहे हैं - भाजपा और तालिबान?
और विपक्ष कह रहा है - माँ भारती का अपमान, नहीं सहेगा हिंदुस्तान।