Secularism- socialism Debate: बीजेपी और आरएसएस बहुत जोरशोर से देश के संविधान से धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद शब्द हटाने की मुहिम चला रहे हैं। लेकिन बीजेपी पार्टी के खुद के संविधान में यही लिखा हुआ है। हैरानी की बात है।
भारतीय जनता पार्टी का संविधान
बीजेपी के संविधान में Socislism यानी कि समाजवाद और Secularism यानी कि धर्म निरपेक्ष जैसे शब्द हैं जबकि बीजेपी के दिग्गज नेता और RSS इन शब्दों के खिलाफ है। यह कैसे हो सकता है। अगर आप लोगों का ध्यान constitution की स्पेलिंग पर गया होगा तो आप समझ ही गए होंगे कि बीजेपी का क्या हाल है कि अपनी पार्टी के संविधान में constitution की स्पेलिंग तक गलत लिखी है। पर सच्चाई तो यही है जो आपके सामने है ।
RSS के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले के बाद अब केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी संविधान से “धर्मनिरपेक्ष” और “समाजवाद” शब्द हटाने की मांग कर दी है । लेकिन सवाल ये है- ये दोनों शब्द तो BJP के अपने संविधान में भी लिखे हैं, फिर इन्हें दिक्कत क्यों? इस मामले पर विपक्ष ने बीजेपी को घेरना शुरु कर दिया है।
ये मामला शुरु होता है 26 जून 2025 को, जब आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर एक किताब विमोचन समारोह में RSS के दत्तात्रेय होसबाले ने बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि 1975 में आपातकाल के दौरान 42वें संशोधन से संविधान की प्रस्तावना में “समाजवादी” और “धर्मनिरपेक्ष” शब्द जोड़े गए। ये शब्द बाबासाहेब आंबेडकर के मूल संविधान में नहीं थे। होसबाले ने सवाल उठाया, “क्या इन शब्दों को संविधान में रखना चाहिए? इस पर खुली बहस होनी चाहिए।”
होसबाले ने ये भी कहा कि आपातकाल सत्ता का दुरुपयोग था, जब नागरिकों की आजादी कुचली गई थी। इन शब्दों को जबरदस्ती जोड़ा गया और बाद में इन्हें हटाने की कोशिश भी नहीं हुई। अगले दिन, 27 जून को, केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वाराणसी में इस बात का समर्थन किया। उन्होंने कहा, “भारत में समाजवाद की जरूरत नहीं है, और धर्मनिरपेक्षता हमारी संस्कृति का मूल नहीं है। इन शब्दों को हटाने पर विचार करना चाहिए।”
उपराष्ट्रपति धनखड़ बचाव में उतरे
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले के शब्दों को दोहराते हुए, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को आपातकाल के दौरान संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवादी', 'धर्मनिरपेक्ष' और 'अखंडता' जैसे शब्दों को शामिल करने के लिए कांग्रेस की आलोचना की और इसे 'न्याय का मजाक' और 'सनातन की भावना का अपमान' बताया। जोड़े गए शब्दों को नासूर (घाव) कहते हुए, उन्होंने कहा कि इन बदलावों ने "अस्तित्व संबंधी चुनौतियां" पैदा की हैं और राष्ट्र से संविधान के निर्माताओं की मूल मंशा पर विचार करने का आह्वान किया।
राहुल ने कहा, “RSS ये सपना देखना बंद करे। हम इसे कभी कामयाब नहीं होने देंगे। हर देशभक्त भारतीय अपने आखिरी सांस तक संविधान की रक्षा करेगा।” राहुल ने संसद में पहले भी सावरकर का जिक्र करते हुए कहा था कि RSS के कुछ नेता चाहते थे कि मनुस्मृति को संविधान की जगह देश का मार्गदर्शक दस्तावेज बनाया जाए। राहुल गांधी के मुताबिक, RSS और बीजेपी का असली मकसद संविधान को कमजोर कर दलितों, आदिवासियों, और गरीबों के अधिकार छीनना है।
कांग्रेस ने होसबाले के बयान को “संविधान की आत्मा पर हमला” बताया। पार्टी प्रवक्ता जयराम रमेश ने कहा, “RSS ने कभी संविधान को स्वीकार नहीं किया। ये बयान बाबासाहेब आंबेडकर के भारत के दृष्टिकोण को खत्म करने की उनकी पुरानी साजिश का हिस्सा है। RSS को लगता है कि संविधान मनुस्मृति से प्रेरित नहीं है, और यही उनकी असली दिक्कत है।”
कांग्रेस ने ये भी याद दिलाया कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक याचिका खारिज की थी, जिसमें संविधान की प्रस्तावना से “समाजवादी”, “धर्मनिरपेक्ष” और “अखंडता” शब्द हटाने की मांग थी। कोर्ट ने कहा था कि संसद को प्रस्तावना में संशोधन का अधिकार है, और 1949 में संविधान के अपनाए जाने से ये अधिकार खत्म नहीं होता।
विपक्षी दल जैसे CPI(M) और RJD ने भी RSS की निंदा की। केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा, “आपातकाल का हवाला देकर धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद को बदनाम करना छल है। RSS ने तो आपातकाल के समय इंदिरा गांधी सरकार से अपनी सुरक्षा के लिए साठगांठ की थी।”
जानकारी के मुताबिक साल 1975 में इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी की सरकार ने संविधान में एक बड़ा बदलाव किया। पहले संविधान की प्रस्तावना में भारत को सिर्फ ‘संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य’ कहा गया था। लेकिन फिर उसमें तीन शब्द और जोड़ दिए गए—‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता’।" अब RSS का कहना है कि ये शब्द जबरदस्ती जोड़े गए थे, जब देश में इमरजेंसी लगी थी, मौलिक अधिकार बंद थे, और संसद व कोर्ट जैसी संस्थाएं ठीक से काम नहीं कर रही थीं।"
वहीं विपक्ष कहता है कि ये शब्द भारत की असली पहचान दिखाते हैं। ‘धर्मनिरपेक्ष’ का मतलब है कि सब धर्मों को बराबर सम्मान मिले। और ‘समाजवाद’ का मतलब है कि अमीर-गरीब सबको बराबरी का हक मिले।" "अब सवाल ये उठ रहा है कि जब BJP के अपने संविधान में भी ये बातें लिखी हैं, तो फिर RSS और बीजेपी के नेता इन शब्दों पर सवाल क्यों उठा रहे हैं? क्या ये संविधान को कमज़ोर करने की कोई कोशिश है? या बीजेपी और RSS को बार-बार संविधान को लेकर बहस छेड़ने की आदत लग गई है ?
लेकिन, सवाल ये है- जब BJP का अपना संविधान इन सिद्धांतों को मानता है, साफ-साफ अक्षरों में आपने अभी खुद इन शब्दों को बीजेपी के संविधान में देखा। तो फिर बीजेपी की इस दोहरी नीति पर सवाल क्यों नहीं उठाए जाएं? होसबाले और चौहान के बयानों ने सियासत में तूफान ला दिया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने X पर तीखा हमला बोला। उन्होंने लिखा, “RSS का नकाब फिर से उतर गया। संविधान इन्हें चुभता है, क्योंकि ये समानता, धर्मनिरपेक्षता और न्याय की बात करता है। RSS-बीजेपी को संविधान नहीं, मनुस्मृति चाहिए। ये बहुजनों और गरीबों के अधिकार छीनकर उन्हें फिर से गुलाम बनाना चाहते हैं।”