कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता रद्द होने के बाद यह सवाल उठ रहा है कि एक जैसे मामलों में बीजेपी के विधायक की सदस्यता क्यों बरकरार रही? क्या कानून सभी के लिए समान है या राजनीति में दोहरे मापदंड हैं?
क्या एक देश में एक जैसे केसों के लिए दो अलग क़ानून हो सकते हैं? नहीं न? यदि ऐसा है तो फिर ऐसा कैसे हुआ कि सजा मिलने के तुरंत बाद ही राहुल गांधी की संसद की सदस्यता रद्द कर दी गई थी जबकि राजस्थान के बीजेपी विधायक की विधायकी सजा मिलने के हफ़्तों बाद भी बरकरार है? मामला राजस्थान के अंता से बीजेपी के विधायक कंवर लाल मीणा को हाल ही में 20 साल पुराने एक आपराधिक मामले में तीन साल की सजा सुनाई गई है। इसके बावजूद उनकी विधानसभा सदस्यता अभी तक बरकरार है। दूसरी ओर, कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता 2023 में एक मानहानि मामले में दो साल की सजा मिलने के तुरंत बाद रद्द कर दी गई थी। इन दोनों मामलों की तुलना ने भारतीय राजनीति में क़ानून के समक्ष समानता और न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
कंवर लाल मीणा राजस्थान के झालावाड़ जिले की अंता विधानसभा सीट से बीजेपी विधायक हैं। उनको एक पुराने आपराधिक मामले में निचली अदालत ने तीन साल की सजा सुनाई थी। इस फ़ैसले को राजस्थान हाईकोर्ट ने बरकरार रखा और सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी याचिका खारिज कर दी। क़ानून के अनुसार किसी सांसद या विधायक को दो साल या उससे अधिक की सजा होने पर उनकी सदस्यता तत्काल रद्द हो जानी चाहिए। ऐसा सुप्रीम कोर्ट के 2013 के लिली थॉमस बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया केस में साफ़ किया गया था। हालाँकि, कँवर लाल मीणा की सदस्यता अभी तक रद्द नहीं की गई है, इसके लिए राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष पर सवाल उठ रहे हैं। कांग्रेस ने इसे असंवैधानिक करार दिया है। राजस्थान के नेता प्रतिपक्ष टीका राम जूली ने विधानसभा सचिव और राज्यपाल हरिभाऊ बागडे से मिलकर मीणा की सदस्यता रद्द करने की मांग की है। उनका तर्क है कि हाईकोर्ट के फ़ैसले की प्रमाणित प्रति विधानसभा को मिलने के बाद भी कार्रवाई में देरी संविधान के ख़िलाफ़ है।
मीणा ने कोर्ट में सरेंडर कर दिया है और उन्होंने कहा कि वे न्यायपालिका पर पूरा भरोसा करते हैं। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि यदि राज्यपाल उनकी सजा को कम करते हैं या सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलती है तो उनकी सदस्यता बरक़रार रह सकती है।
दूसरी ओर, राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता का मामला एकदम विपरीत है। 2019 में एक चुनावी सभा के दौरान 'मोदी सरनेम' पर की गई टिप्पणी को लेकर उनके ख़िलाफ़ गुजरात की एक अदालत में मानहानि का मुक़दमा दर्ज हुआ था। 2023 में सूरत की एक अदालत ने उन्हें दो साल की सजा सुनाई। इसके तुरंत बाद उनकी लोकसभा सदस्यता रद्द कर दी गई। यह कार्रवाई इतनी तेज थी कि फ़ैसले के कुछ ही घंटों बाद लोकसभा सचिवालय ने अधिसूचना जारी कर दी। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में राहुल गांधी को राहत दी और उनकी सदस्यता बहाल हुई। इन दोनों मामलों की तुलना कई सवाल खड़े करती है। कंवर लाल मीणा को तीन साल की सजा मिलने के बावजूद उनकी विधायकी बरकरार है, जबकि राहुल गांधी की सदस्यता दो साल की सजा पर तुरंत रद्द कर दी गई। यह अंतर कानून के समान लागू होने की धारणा को कमजोर करता है।राहुल गांधी के मामले में क्या हुआ था?
राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष पर आरोप है कि उन्होंने हाईकोर्ट के फ़ैसले की प्रति मिलने के बावजूद कार्रवाई नहीं की। दूसरी ओर, लोकसभा सचिवालय ने राहुल गांधी के मामले में त्वरित कार्रवाई की। यह देरी बीजेपी पर पक्षपात के आरोपों को बल देती है।
विपक्ष का दावा है कि बीजेपी अपनी सत्ता और प्रभाव का उपयोग कर मीणा की सदस्यता को बचाने की कोशिश कर रही है। वहीं, राहुल गांधी के मामले में केंद्र सरकार और बीजेपी पर त्वरित कार्रवाई के लिए दबाव डालने के आरोप लगे थे।
लिली थॉमस केस में सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ किया था कि जनप्रतिनिधि कानून, 1951 की धारा 8(3) के तहत दो साल या उससे अधिक की सजा पाने वाले सांसद या विधायक की सदस्यता तत्काल प्रभाव से रद्द हो जानी चाहिए। इस नियम का अपवाद तभी संभव है, जब उच्चतर कोर्ट सजा पर स्थगन आदेश दे। कंवर लाल मीणा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी, जिसका मतलब है कि कोई स्थगन आदेश नहीं है। फिर भी, विधानसभा अध्यक्ष की ओर से कोई कार्रवाई न होना संवैधानिक प्रक्रिया पर सवाल उठाता है। इस विवाद ने राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस के बीच तनाव को और बढ़ा दिया है। कांग्रेस ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया है और इसे बीजेपी की दोहरी नीति का उदाहरण बताया। टीका राम जूली और गोविंद सिंह डोटासरा जैसे नेताओं ने इसे लोकतंत्र पर हमला करार दिया है। दूसरी ओर, बीजेपी का तर्क है कि मामला अभी कोर्ट में है और यदि राज्यपाल या सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलती है तो मीणा की सदस्यता बरकरार रह सकती है।सुप्रीम कोर्ट ने क्या दिया था फ़ैसला
राहुल गांधी के मामले ने भी उस समय विपक्ष को एकजुट किया था और उनकी सदस्यता बहाली को कांग्रेस ने अपनी नैतिक जीत के रूप में पेश किया था। कंवर लाल मीणा का मामला अब विपक्ष के लिए एक नया हथियार बन गया है, जिसका उपयोग वे बीजेपी पर हमला करने के लिए कर रहे हैं। कंवर लाल मीणा की विधायकी और राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता के मामलों की तुलना भारतीय राजनीति में कानून के लागू होने में कथित असमानता को उजागर करती है। जहां राहुल गांधी की सदस्यता रद्द करने में त्वरित कार्रवाई हुई, वहीं मीणा के मामले में देरी ने न केवल बीजेपी की मंशा पर सवाल उठाए हैं, बल्कि विधानसभा अध्यक्ष की निष्पक्षता पर भी आक्षेप लगाए हैं। यह मामला न केवल कानूनी, बल्कि राजनीतिक रूप से भी संवेदनशील है, और इसका निपटारा आने वाले दिनों में राजस्थान की राजनीति पर गहरा असर डाल सकता है।