loader

 पुण्य तिथि पर विशेष- ख़्वाजा अहमद अब्बास : जब मैं मर जाऊँगा…   

उनके दादा ख़्वाज़ा ग़ुलाम अब्बास 1857 स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख सेनानियों में से एक थे और वह पानीपत के पहले क्रांतिकारी थे, जिन्हें तत्कालीन अंग्रेज़ हुक़ूमत ने तोप के मुँह से बाँधकर शहीद किया था। उनकी पुण्य तिथि पर पढें यह लेख।
ख़्वाज़ा अहमद अब्बास मुल्क़ के उन गिने चुने लेखकों में शामिल हैं जिन्होंने अपने लेखन से पूरी दुनिया को मुहब्बत, अमन और इंसानियत का पैग़ाम दिया। अब्बास ने न सिर्फ फ़िल्मों, बल्कि पत्रकारिता और साहित्य के क्षेत्र में भी नए मुक़ाम कायम किए। तरक्क़ीपसंद तहरीक से जुड़े हुए कलमकारों और कलाकारों की फ़ेहरिस्त में ख़्वाज़ा अहमद अब्बास का नाम बहुत अदब से लिया जाता है।

विरासत में मिला था देश प्रेम का जज्बा

ख़्वाज़ा अहमद अब्बास का जन्म 7 जून, 1914 को हरियाणा के पानीपत में हुआ था। उनके दादा ख़्वाज़ा ग़ुलाम अब्बास 1857 स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख सेनानियों में से एक थे और वह पानीपत के पहले क्रांतिकारी थे, जिन्हें तत्कालीन अंग्रेज़ हुक़ूमत ने तोप के मुँह से बाँधकर शहीद किया था।
इस बात का भी शायद ही बहुत कम लोगों को इल्म हो कि ख़्वाज़ा अहमद अब्बास, मशहूर और मारूफ़ शायर मौलाना अल्ताफ हुसैन हाली के परनवासे थे। यानी वतन के लिए कुछ करने का जज्बा और जोश उनके ख़ून में ही था। अदब से मुहब्बत की तालीम उन्हें विरासत में मिली थी।
श्रद्धांजलि से और खबरें
ख़्वाज़ा अहमद अब्बास की शुरूआती तालीम हाली मुसलिम हाई स्कूल में और आला तालीम अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय में हुई। उनके अंदर एक रचनात्मक बैचेनी नौजवानी से ही थी। 

पत्रकारिता की शुरुआत

अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अब्बास जिस सबसे पहले अख़बार से जुड़े, वह ‘बॉम्बे क्रॉनिकल’ था। इस अखबार में बतौर संवाददाता और फ़िल्म समीक्षक उन्होंने साल 1947 तक काम किया।
अपने दौर के मशहूर साप्ताहिक ‘ब्लिट्ज’ से उनका नाता लंबे समय तक रहा। इस अखबार में प्रकाशित उनके कॉलम ‘लास्ट पेज’ ने उन्हें देश भर में काफी शोहरत प्रदान की।
तेज़ी से काम करना, लफ्फाजी और औपचारिकता से परहेज, नियमितता और साफ़गोई ख़्वाजा अहमद अब्बास के स्वभाव का हिस्सा थे। विनम्रता उनकी शख्सियत को संवारती थी। कथाकार राजिंदर सिंह बेदी, अब्बास की शख्सियत का खाका खींचते हुए लिखतें हैं-

‘एक चीज जिसने अब्बास साहब के सिलसिले में मुझे हमेशा विर्त-ए-हैरत (अचंभे का भंवर) में डाला है, वह है उनके काम की हैरतअंगेज ताकतो-कूव्वत। कहानी लिख रहे हैं और उपन्यास भी। कौमी या बैनुल-अकवामी (अंतरराष्ट्रीय) सतह पर फिल्म भी बना रहे हैं और सहाफत को भी संभाले हुए हैं।


राजिंदर सिंह बेदी, साहित्यकार

वह इसके आगे लिखते हैं,  ‘फिर पैंतीस लाख कमेटियों का मेंबर होना समाजी जिम्मेदारियों का सबूत है और यह बात मेंबरशिप तक ही महदूद नहीं। हर जगह पहुंचेंगे भी, तकरीर भी करेंगे। पूरे हिंदुस्तान में मुझे इस किस्म के तीन आदमी दिखाई देते हैं-एक पंडित जवाहर लाल नेहरू, दूसरे बंबई के डॉक्टर बालिगा और तीसरे ख्वाजा अहमद अब्बास। जिनकी यह कूव्वत और योग्यता एक आदमी की नही।’

इप्टा

अपनी स्थापना के कुछ ही दिन बाद, इप्टा का सांस्कृतिक आंदोलन जिस तरह से पूरे मुल्क़ में फैला, उसमें ख़्वाजा अहमद अब्बास का अहम हाथ है। अब्बास ने इप्टा के लिए खूब नाटक भी लिखे, कई नाटकों का निर्देशन भी किया। ‘यह अमृता है’, ‘बारह बजकर पांच मिनिट’, ‘जुबैदा’ और ‘चौदह गोलियां’ उनके मक़बूल नाटक हैं। उनके नाटकों के बारे में बलराज साहनी ने लिखा है,

‘अब्बास के नाटकों में एक मनका होता है, एक अनोखापन, एक मनोरंजक सोच, जो मैंने हिंदी-उर्दू के किसी और नाटककार में कम ही देखा है।’


बलराज साहनी, अभिनेता

‘धरती के लाल’

इप्टा द्वारा साल 1946 में बनाई गई पहली फिल्म ‘धरती के लाल’ ख्वाजा अहमद अब्बास ने ही निर्देशित की थी। कहने को यह फिल्म इप्टा की थी, लेकिन इस फ़िल्म में मुख्य भूमिका अब्बास ने ही निभाई थी। बंगाल के अकाल पर बनी यह फिल्म कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में समीक्षकों द्वारा सराही गई।
इस फिल्म में जो प्रमाणिकता दिखलाई देती है, वह अब्बास की कड़ी मेहनत का ही नतीजा है। बंगाल के अकाल की वास्तविक जानकारी इक्कट्ठा करने के लिए उन्होंने उस वक़्त बाकायदा अकालग्रस्त इलाक़ों का दौरा भी किया। इस फ़िल्म की कहानी और संवाद ख्वाजा अहमद अब्बास ने ही लिखे थे। 

‘धरती के लाल’ ऐसी फ़िल्म थी जिसमें देश की मेहनतकश अवाम को पहली बार केन्द्रीय हैसियत में पेश किया गया है। पूरे सोवियत यूनियन में यह फिल्म दिखाई गई और कई देशों ने अपनी फ़िल्म लाइब्रेरियों में इसे स्थान दिया है।
इंग्लैंड की प्रसिद्ध ग्रंथमाला पेंग्विन ने अपने एक अंक में उसे फिल्म-इतिहास में एक महत्वपूर्ण फिल्म कहा। सच बात तो यह है ‘धरती के लाल’ फिल्म से प्रेरणा लेकर ही विमल राय ने अपनी फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ और सत्यजीत रॉय ने ‘पाथेर पांचाली’ में यथार्थवाद का रास्ता अपनाया।  

नया संसार

साल 1945 में फिल्म ‘धरती के लाल’ से ख़्वाजा अहमद अब्बास का कैरियर एक निर्देशक के रूप में शुरु हुआ। साल 1951 में उन्होंने ‘नया संसार’ नाम से अपनी खुद की फ़िल्म कंपनी खोल ली। ‘नया संसार’ के बैनर पर उन्होंने कई उद्देश्यपूर्ण और सार्थक फ़िल्में बनाईं। मसलन ‘राही’ (1953), मशहूर अंग्रेजी लेखक मुल्क राज आनंद की एक कहानी पर आधारित थी, जिसमें चाय के बागानों में काम करने वाले श्रमिकों की दुर्दशा को दर्शाया गया था। मशहूर निर्देशक वी. शांताराम की चर्चित फिल्म ‘डॉ. कोटनिस की अमर कहानी’ अब्बास के अंग्रेजी उपन्यास ‘एंड वन डिड नॉट कम बैक’ पर आधारित है।
‘अनहोनी’ (1952) सामाजिक विषय पर एक विचारोत्तेजक फिल्म थी। फिल्म ‘शहर और सपना’ (1963) में फुटपाथ पर जीवन गुजारने वाले लोगों की समस्याओं का वर्णन है, तो ‘दो बूँद पानी’ (1971) में राजस्थान के रेगिस्थान में पानी की विकराल समस्या को दर्शाया गया है।

'सात हिन्दुस्तानी'

गोवा की आजादी पर आधारित ‘सात हिंदुस्तानी’ भी उनकी एक उल्लेखनीय फिल्म है। मशहूर निर्माता-निर्देशक राज कपूर के लिए ख्वाजा अहमद अब्बास ने जितनी भी फिल्में लिखी, उन सभी में हमें एक मजबूत सामाजिक मुद्दा मिलता है। चाहे यह ‘आवारा’ हो, ‘जागते रहो’ (1956), या फिर ‘श्री 420’। 

पैंतीस वर्षों के अपने फ़िल्मी करियर में अब्बास ने तेरह फिल्मों का निर्माण किया। लगभग चालीस फिल्मों की कहानी और पटकथाएँ लिखीं, जिनमें ज़्यादातर राज कपूर की फ़िल्में हैं। अब्बास को भले ही फ़िल्मकार के रुप में अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली हो लेकिन बुनियादी तौर पर वे एक अफ़सानानिगार थे। अब्बास एक बेहतरीन अदीब थे। उन्होंने साहित्य की लगभग सभी विधाओं कहानी, उपन्यास, नाटक, रिपोर्ताज में जमकर लिखा। अब्बास की कहानियों की तादाद कोई एक सैंकड़े से ऊपर है। उन्होंने अंग्रेजी, उर्दू और हिंदी तीनों भाषाओं में जमकर लिखा।  

अब्बास उर्दू में भी उतनी ही रवानी से लिखते थे जितना कि अंग्रेजी में। दुनिया की तमाम भाषाओं में उनकी कहानियों के अनुवाद हुए। अब्बास की कहानियों में वे सब चीजें नजर आती हैं, जो एक अच्छी कहानी में बेहद जरूरी हैं। सबसे पहले एक शानदार मानीखेज कथानक, किरदारों का हकीक़ी चरित्र-चित्रण और ऐसी किस्सागोई कि कहानी शुरू करते ही, खत्म होने तक पढ़ने का जी करे। एक अहम बात और, उनकी कहानियों में कई बार ऐसे मोड़ आते हैं, जब पाठकों को लाजवाब कर देते हैं। वह एक दम हक्का-बक्का रह जाता है। 

लेखक, समीक्षक, पत्रकार

कहानी संग्रह ‘नई धरती नए इंसान’ की भूमिका में अब्बास लिखते हैं, ‘‘साहित्यकार और समालोचक कहते हैं, ख्वाजा अहमद अब्बास उपन्यास या कहानियां नहीं लिखता। वह केवल पत्रकार है। साहित्य की रचना उसके बस की बात नहीं। फ़िल्म वाले कहते हैं, ख्वाजा अहमद अब्बास को फ़िल्म बनाना नहीं आता। उसकी फ़ीचर फ़िल्म भी डाक्यूमेंटरी होती है। वह कैमरे की मदद से पत्रकारिता करता है, कलम की रचना नहीं। और ख्वाजा अहमद अब्बास खुद क्या कहता है ? वह कहता है-‘‘मुझे कुछ कहना है..’’ और वह मैं हर संभावित ढंग से कहने का प्रयास करता हूं। कभी कहानी के रूप में, कभी ‘ब्लिट्ज’ या ‘आखिरी सफा’ और ‘आजाद कलम’ लिखकर। कभी दूसरी पत्रिकाओं या समाचार-पत्रों के लिए लिखकर। कभी उपन्यास के रूप में, कभी डाक्यूमेंटरी फिल्म बनाकर। कभी-कभी स्वयं अपनी फिल्में डायरेक्ट करके भी।’’
अब्बास की कहानियां अपने दौर के उर्दू के चर्चित रचनाकारों कृश्न चंदर, इस्मत चुगताई, राजेन्द्र सिंह बेदी और सआदत हसन मंटो के साथ छपतीं थीं।
हालांकि उनकी कहानियों में कहानीपन से ज्यादा पत्रकारिता हावी होती थी, लेकिन फिर भी पाठक उन्हें बड़े शौक से पढ़ा करते थे। अब्बास का अफ़साना ‘जिंदगी’ पढ़ने के बाद पाठक बखूबी उनकी सोच के दायरे और नज़रिए तक पहुंच सकते हैं। ख्वाजा अहमद अब्बास के कई कहानी संग्रह प्रकाशित हुए। जिनमें ‘एक लड़की’, ‘जाफरान के फूल’, ‘पांव में फूल’, ‘मैं कौन हूं’, ‘गेंहू और गुलाब’, ‘अंधेरा-उजाला’, ‘कहते हैं जिसको इश्क’, ‘नई धरती नए इंसान’, ‘अजंता की ओर’, ‘बीसवीं सदी के लैला मजनू’, ‘आधा इंसान’, ‘सलमा और समुद्र’, और ‘नई साड़ी’ प्रमुख कहानी संग्रह हैं।

 ‘इंकलाब’, ‘चार दिन चार राहें’, ‘सात हिंदुस्तानी’, ‘बंबई रात की बांहों में’ और ‘दिया जले सारी रात’ उनके प्रमुख उपन्यास हैं। ख्वाजा अहमद अब्बास के समस्त लेखन को यदि देखें, तो यह लेखन स्वछन्द, स्पष्ट और भयमुक्त दिखलाई देता है। 
इस बारे में खुद अब्बास का कहना था कि ‘‘मेरी रचनाओं पर लोग जो चाहें लेबल लगाएं मगर वो वही हो सकती हैं जो मैं हूं, और मैं जो भी हूं, वह जादू या चमत्कार का नतीजा नहीं है। वह एक इंसान और उसके समाज की क्रिया और प्रतिक्रिया से सृजित हुआ है।’’ यही वजह है कि अब्बास की कई कहानियां विवादों की शिकार भी हुईं। विवादों की वजह से उन्हें अदालतों के चक्कर भी काटने पड़े लेकिन फिर भी उन्होंने अपने लेखन में समझौता नहीं किया।
उनका साफ-साफ कहना था कि 'वह किसी राजनीतिक विचारधारा से प्रेरित होकर नहीं बल्कि इंसान को इंसान की तरह देखकर लिखते और संबंध गांठते हैं।'

अबाबील

उनकी कहानियों का दायरा पांच दशक तक फैला हुआ है। अब्बास की पहली कहानी ‘अबाबील’ साल 1935 में छपी और उसके बाद यह सिलसिला बीसवी सदी के आठवे दशक तक चला। जब अब्बास ने अपनी पहली कहानी लिखी, तो उस वक्त उनकी उम्र महज उन्नीस साल थी। उन्नीस साल कोई अधिक उम्र नहीं होती लेकिन जो कोई भी इस कहानी को एक बार पढ़ लेगा, वह अब्बास के जेहन और उनके कहन का दीवाना हुए बिना नहीं रहेगा। इस एक अकेली कहानी से अब्बास रातों-रात देश-दुनिया में मशहूर हो गए।
कई जबानों में इस कहानी के अनुवाद हुए। अंग्रेजी, रूसी, जर्मन, स्वीडिश, अरबी, चीनी वगैरह-वगैरह। जर्मन ज़ुबान में दुनिया की बेहतरीन कहानियों का जब एक संकलन निकला, तो उसमें ‘अबाबील’ को शामिल किया गया।

गाँव-किसान

कहानी में अब्बास ने किसान की जिंदगी का जिस तरह से खाका खींचा है, वह बिना गांव और किसानों की जिंदगी को जिये बिना मुमकिन नहीं। ताज्जुब की बात यह है कि अब्बास को गांव और किसान की जिंदगी का कोई जाती तजुर्बा नहीं था। कहानी लिखते समय किसानों के बारे में उनका इल्म न के बराबर था। एक इंटरव्यू में जब कृश्न चंदर ने इसके मुतआल्लिक उनसे पूछा, तो अब्बास का बेबाक जवाब था, 

'कोई ज़रूरी नहीं कि हर कहानी अनुभव पर आधारित हो। जिस प्रकार क़ातिल के विषय में लिखने से पहले क़त्ल करना ज़रूरी नहीं। या एक वेश्या के जीवन का वर्णन करने के लिए यह ज़रूरी नहीं है कि लेखक स्वयं भी किसी वेश्या के साथ सो चुका हो।'


ख़्वाजा अहमद अब्बास, पत्रकार, फ़िल्मकार

शहर और महानगरों के कड़वा यथार्थ अब्बास की कई कहानियों में सामने आया है। ‘अलिफ लैला 1956’ और ‘सुहागरात’ ऐसी ही संघर्षों और उसके बीच चल रही जिंदगी की कहानियां हैं। इन्हीं कहानियां का विस्तार उनकी फिल्म ‘शहर और सपना’ है। जो उस वक्त कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में सराही गई थी।  

सच्चा सेक्युलर

अब्बास एक सच्चे वतनपरस्त और सेक्युलर इंसान थे। उनके सबसे करीबी दोस्तों में शामिल थे, इन्दर राज आनन्द, मुनीष नारायण सक्सेना, वी.पी. साठे, आर. के. करंजिया, राज कपूर, कृश्न चंदर, अली सरदार जाफ़री आदि। अपनी वसीयत में उन्होंने लिखा था,
‘मेरा जनाजा यारों के कंधों पर जुहू बीच स्थित गांधी के स्मारक तक ले जाएं, लेजिम बैंड के साथ। अगर कोई खिराज-ए-अकीदत पेश करना चाहे और तकरीर करे तो उनमें सरदार जाफ़री जैसा धर्मनिरपेक्ष मुसलमान हो, पारसी करंजिया हों या कोई रौशनख्याल पादरी हो वगैरह, यानी हर मजहब के प्रतिनिधि हों।’  

ख़्वाजा अहमद अब्बास ने अपनी आखिरी सांस माया नगरी मुंबई में ली। 1 जून, 1987 को वे इस दुनिया से जिस्मानी तौर पर दूर चले गए। उन्होंने अपनी वसीयत में लिखा, ‘जब मैं मर जाऊॅंगा तब भी मैं आपके बीच में रहूॅंगा। अगर मुझसे मुलाक़ात करनी है तो मेरी किताबें पढ़ें और मुझे मेरे ‘आखिरी पन्नों’, ‘लास्ट पेज’ में ढ़ूॅढ़ें, मेरी फिल्मों में खोजें। मैं और मेरी आत्मा इनमें है। इनके माध्यम से मैं आपके बीच, आपके पास रहूँगा, आप मुझे इनमें पायेंगे।’
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
जाहिद ख़ान
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

पाठकों के विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें