भारत में संवैधानिक नैतिकता का क्षरण अपने चरम पर है। विधेयकों पर राज्यपालों की देरी से लेकर सुप्रीम कोर्ट के समयसीमा संबंधी फैसले और राष्ट्रपति द्वारा उसे चुनौती देने वाले 14 सवाल तो यही बता रहे हैं।
केंद्र सरकार ने हाल ही में राष्ट्रपति की आड़ लेकर सुप्रीम कोर्ट पर राज्यपाल और राष्ट्रपति को तीन महीने में विधेयकों पर फैसला लेने वाले मामले में हमला बोला। लेकिन सच ये है कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की गाइडलाइंस से ही वो निर्देश दिए थे।
केंद्र सरकार के प्रेसिडेंशियल रेफ़रेंस पर विपक्षी दलों ने क्यों जताई आपत्ति? जानिए डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन और अन्य नेताओं ने क्या कहा और इसके पीछे की संवैधानिक बहस क्या है।
पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस मदन लोकुर ने तमिलनाडु के राज्यपाल की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाते हुए उन्हें बर्खास्त करने की मांग की है। जानें इस बयान के पीछे की संवैधानिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि।
क्या होता है जब संविधान की रक्षा करने वालों लोग खुद को उससे ऊपर मानने लगते हैं? मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से कई राज्यपालों पर लोकतांत्रिक नियमों को दरकिनार करने का आरोप लगा है। समझिए पूरे मामले को आशुतोष की बात में प्रो. फैजान मुस्तफा से।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने एक साहसिक कदम उठाया है जो पूरे देश का ध्यान आकर्षित कर रहा है — उन्होंने अधिक राज्य स्वायत्तता के लिए एक समिति का गठन किया है। स्टालिन की नई समिति भारतीय संघवाद को हमेशा के लिए बदल सकती है?
क्या सुप्रीम कोर्ट का हालिया रुख न्यायिक सक्रियता है या यह संविधान की रक्षा के प्रति उसका कर्तव्य? जानिए वक्फ बिल, राज्यपाल विवाद जैसे मामलों में अदालत के फैसलों का विश्लेषण और उनके लोकतंत्र पर प्रभाव।
वक़्फ़ संशोधन और राज्यपाल की शक्तियों पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसलों ने राजनीतिक बहस को तेज़ कर दिया है। जानिए क्यों देश की सर्वोच्च अदालत पर सवाल उठ रहे हैं और ऐसा करने वाले कौन हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के गवर्नर द्वारा 10 विधेयकों पर लगाई गई रोक को असंवैधानिक करार दिया है। अदालत ने इसे ‘गैरकानूनी और अलोकतांत्रिक’ बताया। जानिए इस ऐतिहासिक फ़ैसले का असर राज्य और केंद्र के संबंधों पर।
जानिए उस ऐतिहासिक राजनीतिक संकट के बारे में जब यूपी में एक समय दो मुख्यमंत्री बन गए थे और तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी की क्या भूमिका थी। पढ़ें पूरी कहानी।
तमिलनाडु में स्टालिन सरकार और राज्य के राज्यपाल के बीच तनातनी इस हद तक पहुँच गई कि राज्यपाल ने विधानसभा में पारंपरिक अभिभाषण तक नहीं पढ़ा। जानिए, आख़िर क्या मामला है।
विपक्ष शासित राज्यों में राज्यपालों द्वारा विधेयकों पर तरह-तरह का अड़ंगा लगाए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फिर से तमिलनाडु के राज्यपाल की अलोचना की है? जानिए, सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा।
विपक्ष शासित राज्यों में आख़िर राज्यपालों द्वारा विधेयकों को वर्षों तक रोके जाने के मामले क्यों सामने आ रहे हैं? जानिए, सुप्रीम कोर्ट एक के बाद एक राज्यपालों को फटकार क्यों लगा रहा है।
विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों में सत्ताधारी पार्टी और राज्यपाल के बीच की तनातनी अब पंजाब में भी शुरू हो गई है। जानिए, सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ।
तमिलनाडु के मौजूदा राज्यपाल आर एन रवि ने हाल ही में जो विवाद खड़ा किया, उसने इस पद की गरिमा को जबरदस्त ठेस पहुंचाई है। ताज्जुब है कि क्या बीजेपी ने ऐसे ही लोगों को राज्यपाल के पद के लिए चुना है जो संविधान की भावना और मर्यादा को तार-तार करते रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार वंदिता मिश्रा का यह लेख तमाम सवालों को उठाता हुआः
तमिलनाडु की सत्तारूढ़ डीएमके और राज्यपाल आर एन रवि की लड़ाई अब पुलिस तक भी पहुंच गई है। एक डीएमके नेता के बयान की शिकायत गवर्नर दफ्तर ने पुलिस में की है और एफआईआर की मांग की है।
केसरीनाथ त्रिपाठी और जगदीप धनखड़ जब पश्चिम बंगाल के राज्यपाल थे तो उनके ममता सरकार के साथ रिश्ते टकराव वाले रहे थे। आनंद बोस के साथ क्या ऐसा टकराव नहीं होगा?
केरल और तमिलनाडु की सरकारों के रूख से पता चलता है कि उनका राज्यपालों के साथ घमासान बढ़ सकता है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि तमाम विपक्षी दलों की सरकारों वाले राज्यों में आखिर इस तरह का घमासान क्यों है और यह घमासान कैसे थमेगा।
विपक्ष शासित राज्यों केरल और तमिलनाडु में राज्य सरकारों के राज्यपालों के साथ चल रहे टकराव के बाद सवाल यह खड़ा होता है कि तमाम विपक्षी दलों की सरकारों वाले राज्यों में आखिर इस तरह की तनातनी क्यों है? कौन से हैं ऐसे राज्य और वहां कौन हैं राज्यपाल?
संविधान और लोकतंत्र की धज्जियाँ उड़ाने वाले राज्यपालों से कैसे निपटा जा सकता है? आरिफ़ मोहम्मद ख़ान, भगत सिंह कोशियारी, वी.के. श्रीवास्तव जैसे कठपुतली राज्यपालों के साथ क्या सलूक किया जाना चाहिए? क्या विपक्षी दल साझी रणनीति बनाकर राज्यपालों को मर्यादा में रहने को विवश कर सकते हैं?
केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद ख़ान आख़िर अपनी किस ज़िद पर अड़े थे कि हाई कोर्ट को दखल देना पड़ा? पश्चिम बंगाल और पंजाब में भी राज्यपालों से क्यों तनातनी है? उद्धव व शिंदे सरकारों में क्या बदला कि महाराष्ट्र में भी अब सब ठीक हो गया?
तमाम विपक्षी शासित राज्यों में वहां के राज्यपाल राजनीति पर उतरे हुए हैं। उन्होंने वहां की सरकारों को किसी न किसी तरह परेशान कर रखा है। अरुणाचल प्रदेश के संदर्भ में 2016 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला बताता है कि एक राज्यपाल की क्या भूमिका होना चाहिए। जिन्हें नहीं पता है, वो सुप्रीम कोर्ट का फैसला जरूर पढ़ें और जानें कि ऑपरेशन लोटस को अनैतिक रूप से कामयाब करने के लिए तमाम राज्यपाल किस स्तर पर उतरे हुए हैं।
राज्यों में राज्यपालों की भूमिका अब बेहद विवादस्पद क्यों हो गई है? महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड जैसे राज्यों में राज्यपाल के फ़ैसले पर सवाल क्यों उठते हैं?
पश्चिम बंगाल में कुछ महीनों बाद विधानसभा का चुनाव होना है। इस युद्ध में बीजेपी के सेनापति गृहमंत्री अमित शाह हैं, इसलिए राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने भी ख़ुद को इस युद्ध में झोंक रखा है। क्या राज्यपालों का यही काम है?
महाराष्ट्र में भले ही शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस की सरकार बनने जा रही है, लेकिन बीजेपी को सरकार बनाने का न्यौता देने के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के फ़ैसले की पड़ताल सुप्रीम कोर्ट में अभी भी जारी रहेगी।