भारत एक गणतंत्र है और भारत का राष्ट्रपति इस गणतंत्र का मुखिया है। गणतंत्र का अर्थ उस राज व्यवस्था से है जिसमें राजनीतिक शक्ति ‘जनता’ के पास होती है। जनता की शक्ति का प्रतिबिंब भारत की संसद है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना भारत के लोगों के माध्यम से पर्याप्त तीव्रता से यह घोषणा करती है कि भारत एक ‘लोकतान्त्रिक गणराज्य’ है। ऐसे में जब भारत की संसद पर बात हो और राष्ट्रपति का जिक्र ही न हो तो इसका अर्थ साफ़ है कि लोकतान्त्रिक गणराज्य के मूल्यों के गिरावट का दौर शुरू हो चुका है। परेशानी यह है कि भारत में इन मूल्यों की गिरावट की शुरुआत और उसका उच्चतम स्तर एक साथ एक बिन्दु पर ही खड़ा होने को तैयार है और इस अर्थ में मैं इसे ऐतिहासिक मानती हूँ।