ग़ज़ा पट्टी में बीते लगभग दो सालों से आसमान से बारूद बरस रहा है और ज़मीन भूख की आग में झुलस रही है। इसराइल के रात-दिन हमले का शिकार हुआ यह इलाक़ा एक अभूतपूर्व मानवीय संकट से जूझ रहा है। लंबे समय तक इसराइल के अमानवीय व्यवहार को नज़रंदाज़ कर रहा अंतरराष्ट्रीय मीडिया भी अब इस संकट पर बात करने को मजबूर हो गया है। इसराइल की सारी तरफ़दारी के बावूजद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भी स्वीकार करना पड़ा कि ग़ज़ा का संकट वास्तविक है न कि झूठ जैसा कि पीएम नेतन्याहू दावा करते हैं। हालत ये है कि ग़ज़ा में भूख से मरने वालों की तादाद बढ़ रही है और सहायता पहुँचाने की कोशिश करने वाली स्वयंसेवी संस्थाएँ भी हमलों का शिकार बन रही हैं।

ग़ज़ा का भयावह मंजर

ग़ज़ा की तस्वीरें दिल दहलाने वाली हैं। बारूदी गंध के बीच भूख से बिलबिलाते लोग, कचरे में खाना तलाशते बच्चे, और खतरनाक रास्तों पर भोजन की तलाश में जान गँवाते परिवार— यह ग़ज़ा की हकीकत है। संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध संगठन इंटीग्रेटेड फूड सिक्योरिटी फेज़ क्लासिफिकेशन (IPC) ने 29 जुलाई 2025 को चेतावनी जारी की कि ग़ज़ा में "सबसे खराब स्थिति वाला अकाल" सामने आ रहा है। ग़ज़ा की 21 लाख की आबादी में से एक तिहाई लोग कई दिनों तक बिना भोजन के रह रहे हैं। ग़ज़ा सिटी में कुपोषण का स्तर मई 2025 में 4.4% से बढ़कर जुलाई 2025 में 16.5% तक पहुँच गया है, जो अकाल की स्थिति को पार करता है।
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विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी ऐसी ही चेतावनियाँ दी हैं। आँकड़े बताते हैं कि 2025 में अब तक 74 लोग, जिनमें 63 बच्चे शामिल हैं, कुपोषण से मर चुके हैं। कुल मिलाकर, कुपोषण से मरने वालों की संख्या 147 तक पहुँच चुकी है, जिनमें 88 बच्चे हैं। बच्चे, बुजुर्ग और बीमार लोग इस संकट की सबसे ज्यादा मार झेल रहे हैं।

वैश्विक मीडिया की नज़र

लंबे समय तक नज़र फेरे रखने वाला अंतरराष्ट्रीय मीडिया अब इस संकट पर खुलकर बोलने लगा है। CNN ने 29 जुलाई 2025 को बताया कि ग़ज़ा में "अकाल का सबसे खराब परिदृश्य" सामने आ रहा है। NBC न्यूज़ ने इसे "मानव निर्मित भुखमरी" करार दिया, जबकि The New York Times ने लिखा कि ग़ज़ा "अराजकता की ओर बढ़ रहा है"। बीबीसी ने भी इस बात पर जोर दिया कि ग़ज़ा में भुखमरी "वास्तविक" है और इसे नकारा नहीं जा सकता। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इसे "ऐतिहासिक स्तर की मानवीय आपदा" बताया, और The Guardian ने इसे "बेरोकटोक मानवीय आपदा" कहा।

मीडिया की इन रिपोर्ट्स में एक बात साफ है— ग़ज़ा में भोजन, दवाइयाँ और बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है। 

इसराइल की नाकेबंदी और सैन्य कार्रवाइयों ने इस संकट को और गहरा किया है। मार्च से मई 2025 तक इसराइल ने ग़ज़ा में सभी खाद्य आपूर्ति को रोक दिया था, जिसके बाद स्थिति और बिगड़ गई।

ट्रंप का बयान

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी इस संकट पर चिंता जताई है। 28 जुलाई 2025 को स्कॉटलैंड में ट्रंप ने कहा, "ग़ज़ा में वास्तविक भुखमरी है। मैंने टीवी पर बच्चों को देखा, वे भूखे दिखते हैं। इसे नकली नहीं कहा जा सकता।" उन्होंने घोषणा की कि अमेरिका ग़ज़ा में "खाद्य केंद्र" स्थापित करेगा, हालाँकि इस योजना का कोई विस्तृत ब्योरा नहीं दिया गया। ट्रंप ने इसराइल से "हर औंस खाना" ग़ज़ा में पहुँचाने की माँग की, जो इसराइल की नीतियों पर अप्रत्यक्ष रूप से सवाल उठाता है।

मानवाधिकार संगठनों का आरोप

ग़ज़ा में इसराइल की बमबारी अक्टूबर 2023 से, यानी करीब 21 महीनों से, जारी है। IPC और संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्टों के अनुसार, इसराइल की नाकेबंदी और सैन्य कार्रवाइयों ने ग़ज़ा में खाद्य और मानवीय सहायता की पहुँच को लगभग खत्म कर दिया है। मानवाधिकार संगठनों ने इसराइल पर "भोजन को युद्ध के हथियार के रूप में उपयोग" करने का आरोप लगाया है। इसराइल के अपने मानवाधिकार संगठन, जैसे B’Tselem और Physicians for Human Rights Israel, ने भी कड़े शब्दों में इसराइल की नीतियों की आलोचना की है। B’Tselem ने कहा कि इसराइल की नीतियाँ "फिलिस्तीनी समाज को नष्ट करने" की मंशा दिखाती हैं, जबकि PHRI ने आरोप लगाया कि इसराइल ग़ज़ा के स्वास्थ्य ढांचे को "जानबूझकर नष्ट" कर रहा है।

इसराइल इन आरोपों को खारिज करता है और दावा करता है कि वह सहायता की अनुमति देता है। उसका कहना है कि हमास सहायता चुरा रहा है, लेकिन अमेरिकी सरकार की एक आंतरिक जाँच में हमास द्वारा सहायता चोरी के कोई ठोस सबूत नहीं मिले।
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सहायता संगठनों पर हमले

ग़ज़ा में सहायता संगठनों के लिए काम करना बेहद खतरनाक हो गया है। ग़ज़ा ह्यूमैनिटेरियन फाउंडेशन (GHF), जिसे अमेरिका और इसराइल का समर्थन प्राप्त है, ने 26 मई 2025 से सहायता वितरण शुरू किया था। तब से अब तक, सहायता लेने की कोशिश कर रहे 1100 से ज्यादा फिलिस्तीनी मारे गए हैं, जिनमें से 70% GHF के वितरण केंद्रों के पास हुए हमलों में मारे गए। एक घटना में चार बच्चों समेत 25 फिलिस्तीनी सहायता ट्रकों के पास इसराइली गोलीबारी में मारे गए। संयुक्त राष्ट्र ने 22 जुलाई 2025 को इन हमलों को "अस्वीकार्य" बताया। ग़ज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, युद्ध शुरू होने से अब तक 60,034 लोग मारे जा चुके हैं, जिनमें अधिकतर महिलाएँ और बच्चे हैं।

सोनिया गाँधी की आलोचना

दुनिया जहाँ इस संकट से बेचैन है, वहीं भारत का रुख इस मुद्दे पर अस्पष्ट रहा है। भारत ने ऐतिहासिक रूप से फिलिस्तीन का साथ दिया है। महात्मा गाँधी ने भी इसराइल के गठन का विरोध किया था। लेकिन मौजूदा मोदी सरकार ने ग़ज़ा संकट पर सीमित बयान दिये हैं। सरकार ने मानवीय सहायता की आवश्यकता पर जोर दिया है और संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से कुछ सहायता भेजी है, लेकिन इसका प्रभाव सीमित रहा है। विपक्ष, खासकर कांग्रेस, ने सरकार के इस रुख की तीखी आलोचना की है।
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कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने हाल ही में एक अख़बार में प्रकाशित अपने लेख में ग़ज़ा में इसराइल के सैन्य अभियानों को "नरसंहार" करार दिया। उन्होंने मोदी सरकार की चुप्पी को "मानवता के खिलाफ अपराध" और "भारत के संवैधानिक मूल्यों के साथ कायरतापूर्ण विश्वासघात" बताया। सोनिया ने लिखा कि ग़ज़ा में इसराइल की कार्रवाइयों ने 55,000 से अधिक फिलिस्तीनी नागरिकों की जान ली है, जिनमें 17,000 बच्चे शामिल हैं। उन्होंने कहा कि ग़ज़ा में अधिकांश आवासीय इमारतें और अस्पताल नष्ट हो चुके हैं, और मानवीय सहायता को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की रणनीति ने ग़ज़ा के लोगों को भूख और बीमारी के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है।

सोनिया गाँधी का गुस्सा जायज़ है। भारत सरकार का इसराइल-परस्त रुख इस संकट में भी नहीं बदला। यहाँ तक कि भारत में फिलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शनों की इजाज़त तक नहीं दी जाती, जबकि पूरी दुनिया में इसराइल के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो हर मुद्दे पर बोलने के लिए जाने जाते हैं, इस संकट पर चुप हैं। क्या यह चुप्पी भारत की उस विरासत को धोखा दे रही है, जो मानवता और न्याय के लिए जानी जाती है? यह सवाल हर भारतीय के सामने है।