अमिताभ श्रीवास्तव वरिष्ठ पत्रकार हैं।
एनडीटीवी के वरिष्ठ पत्रकार कमाल ख़ान के साथ कर चुके वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ जानिए उन्हें कैसे याद करते हैं...।
सावरकर को ‘वीर’ कहने और अंग्रेजों से उनकी माफ़ी का मुद्दा जब राष्ट्रवादी विमर्श के बहाने गरमाया हुआ है, इसी बीच शूजीत सरकार की फ़िल्म सरदार उधम आई हुई है। पढ़िए, फ़िल्म समीक्षा कैसे उन्होंने माफ़ी की सलाह ठुकरा फाँसी के फंदे पर झूल गए थे।
ऐसे समय जब पूरी दुनिया में हिंसा के साथ-साथ उपभोक्तावाद भी बढ़ता जा रहा है और बाज़ार की पकड़ मजबूत होती जा रही है, महात्मा गांधी पहले से भी ज़्यादा प्रासंगिक हैं।
पंजाब कांग्रेस में नवजोत सिंह सिद्धू को क्या अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने ग़लती कर दी थी? आख़िर सिद्धू विवाद से कांग्रेस को कितना नुक़सान हुआ?
‘द फ़ादर’ डिमेंशिया के मरीज़ और उनकी बेटी के रिश्ते की कहानी है। इनके किरदार में आपको किसी परिचित बुज़ुर्ग की झलक दिखाई दे यह बहुत मुमकिन है। पढ़िए ‘द फ़ादर’ फ़िल्म की समीक्षा।
एक ऐसे समय में जब राजनीति का मक़सद किसी भी तरह से सत्ता हासिल करना रह गया हो और समाज में सब तरफ़ पैसे की ताक़त का बोलबाला हो, महात्मा गांधी के विचार आज कितने प्रासंगिक हैं?
बेलबॉटम के निर्माताओं ने फ़िल्म को सच्ची घटना से प्रेरित बताया है। लेकिन फ़िल्म के दृश्यों में ऐसे तथ्य दिखाए गए हैं जो सच नहीं लगती हैं। पढ़िए फ़िल्म की समीक्षा की आख़िर कैसी है यह फ़िल्म।
कृष्णभक्त कवि सूरदास ने मुग़ल सम्राट अकबर को एक पत्र लिखा था। सूरदास के पत्र को पढ़ कर काशी के हाकिम के ऊपर अकबर को अत्यंत क्रोध आया और उन्होंने उसे बदल दिया...।
कहानी नागपुर की एक दलित बस्ती राही नगर की महिलाओं की है। फ़िल्म की शुरुआत अदालत में बल्ली चौधरी नाम के एक बदमाश की हत्या से होती है।
दिलीप कुमार की अदाकारी उस अनुभव को जितनी सघनता से दिखाती है, शायद ही हिंदी सिनेमा में कोई दूसरा अभिनेता कर पाया हो।
जॉली एलएलबी वाले सुभाष कपूर हुमा क़ुरैशी को बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी से मिलते-जुलते किरदार में ढाल कर लाये हैं सोनी लिव पर बिहार की राजनीति पर बनी वेब सीरीज़ महारानी में।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी विपक्ष के नेता होने के बावजूद इस कोरोना काल में सरकार की नीतियों के प्रति तीखा आलोचनात्मक रवैया और हमलावर तेवर रखने के बजाय लगातार सहयोग का रुख़ दिखा रहे हैं।
2021 साहिर लुधियानवी का जन्म शताब्दी वर्ष है। आज अगर वह हमारे बीच होते तो सौ साल के हो गए होते। साहिर लुधियानवी का ये शेर एक तरह से उनकी समूची रचनात्मकता, उनकी शायरी, उनके तमाम फ़िल्मी नग्मों का निचोड़ है और बुनियाद भी।
मंगलेश डबराल हमारे समय के बहुत महत्वपूर्ण प्रतिष्ठित कवि, लेखक, पत्रकार तो थे ही, मौजूदा निज़ाम के ख़िलाफ़ लगातार बुलंद रहने वाली एक प्रमुख आवाज़ थे।
पत्रकारिता की साख और सम्मान को गिराने में टीवी न्यूज़ मीडिया ने प्रिंट के मुक़ाबले बहुत तेज़ी से शर्मनाक योगदान दिया है और इसकी क़ीमत पूरी इंडस्ट्री को चुकानी पड़ेगी।
आयुष्मान को हाल ही में टाइम मैगज़ीन ने दुनिया की सौ सबसे महत्वपूर्ण हस्तियों की सूची में जगह दी है। डोनल्ड ट्रम्प, शी जिनपिंग और नरेंद्र मोदी सरीखे राष्ट्रप्रमुखों के बीच आयुष्मान खुराना की मौजूदगी है।
कृष्ण के अनन्य उपासक पंडित जसराज के देहावसान से मथुरा, वृन्दावन, गोकुल और नाथद्वारा की गलियां सूनी हो गयी हैं। अब उनका आलाप अनंत में गूंजता रहेगा।
राहत इंदौरी नहीं रहे। अब वह बुलंद आवाज़ खामोश हो गयी है। कोरोना की महामारी ने हमसे हमारे समय का एक बहुत तेज़तर्रार, सक्रिय रचनाकार छीन लिया।
फ़िल्म संगीतकार जयदेव की जन्म शतवार्षिकी के मौके पर सत्य हिन्दी की विशेष पेशकश। आख़िर उन्हें वह जगह क्यों नहीं मिली, जिसके हक़दार वे थे, बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ।
पिछले कुछ समय से यह देखा जा सकता है कि नसीरुद्दीन शाह अपनी फ़िल्मी दुनिया के अलावा मौजूदा राजनीति और समाज के ढर्रे पर भी बहुत मुखर होकर अपनी नाख़ुशी या नाराज़गी जताते रहते हैं।
14 जुलाई 1917 को पैदा हुए संगीतकार रोशन की जन्म शताब्दी तीन साल पहले आकर चुपचाप गुज़र भी गयी लेकिन उनके परिवार के अलावा फ़िल्मी दुनिया में शायद ही उन्हें किसी आयोजन के ज़रिये याद किया गया हो।
बॉलीवुड के दिग्गज निर्देशक और अभिनेता गुरु दत्त का आज जन्मदिन है। जानिए उनकी ज़िंदगी से जुड़े कुछ बेहद रोचक क़िस्से।
देश सत्यजित राय जन्म शताब्दी वर्ष मना रहा है। विश्व प्रसिद्ध पाथेर पांचाली के अलावा अपराजितो, अपूर संसार, प्रतिद्वंद्वी और सीमाबद्ध जैसी कई सर्वश्रेष्ठ फ़िल्में बनाईं।
क्या दौलत और शोहरत के बीच फ़िल्म अभिनेता सुशांत सिह राजपूत अकेले थे? क्या उन्होंने इस वजह से ही आत्महत्या की?
पत्रकारिता आज़ादी के दौर में मिशन थी, बाद में प्रोफ़ेशन बन गयी और अब टीवी चैनलों के शोर के दौर में प्रहसन हो चुकी है। इस पत्रकारिता का सूत्र वाक्य है - सनसनी सत्यं, ख़बर मिथ्या।
‘पाताल लोक’ में इंस्पेक्टर हाथीराम चौधरी और उनके जूनियर इमरान अंसारी ने शानदार अभिनय किया है। ‘पाताल लोक’ से अल्पसंख्यकों के मसले पर समाज की सोच कैसी है, इसका भी पता चलता है।