पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू जैसे घनघोर महत्वाकांक्षी, सत्तालोलुप, आत्मकेंद्रित और तुनुकमिज़ाज यानी ‘क्षणे तुष्टा क्षणे रुष्टा’ टाइप नेता को सिर चढ़ा कर कांग्रेस नेतृत्व ने जो भयंकर नासमझी की, उसका नतीजा सामने है। चुनावी गणित में कांग्रेस की हालत पहले ही बीजेपी के आगे बहुत पतली है, ऐसे में पंजाब के इस तमाशे से सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और उनके दरबारियों को सिरदर्द, जगहँसाई और छीछालेदर के सिवाय हासिल क्या हुआ? लोकतांत्रिक होने का मतलब उदार और सहिष्णु होना तो है लेकिन क्या इतना ढीलाढाला होना भी है कि दुनिया की निगाह में कमज़ोर, हास्यास्पद और बेचारे दिखने लगें? न सिद्धू संभाले जा रहे हैं, न अमरिंदर।

सत्तारूढ़ कांग्रेस ख़ुद को बहुत मज़बूत मान रही थी और अगले चुनावों में उसकी सत्ता में वापसी के बारे में विश्लेषकों को संदेह नहीं था। पार्टी के समर्थक इतनी भयंकर आपसी सिरफुटौवल के बाद भी दावे कर रहे हैं कि राज्य में विपक्ष कमज़ोर है और विकल्पहीनता की स्थिति में पंजाब के मतदाता फिर से कांग्रेस को ही चुनेंगे।