गुरुदत्त की फ़िल्म ‘साहब, बीवी और ग़ुलाम’ को हिंदी सिनेमा में क्लासिक का दर्जा हासिल है। लेकिन क्या कोई सोच सकता है कि एक वक़्त गुरुदत्त फ़िल्म के त्रासदी भरे अंत को सुखांत में बदलने के बारे में सोचने लगे थे।

आज गुरुदत्त का जन्मदिन है। नकलीपन से भरी दुनियादारी से एक खामोश लेकिन तीखा परहेज़, दुनियादारी और कामयाबी के सब पैंतरे समझते हुए भी ख़ुद को सारे तमाशे से अलग कर लेने की एक आत्मघाती क़िस्म की ज़िद और अवसाद ‘प्यासा’ और ‘काग़ज़ के फूल’ के किरदारों का ही नहीं, कहीं न कहीं उनकी निजी शख्सियत का भी हिस्सा था। यह अकारण नहीं है कि इन दोनों फ़िल्मों में निभाए गए गुरुदत्त के किरदारों को उनकी ज़िन्दगी और सोच का अक्स भी माना जाता है।
ऐसी सलाह गुरुदत्त को दी थी एक और बहुत मशहूर फ़िल्मकार ने जिनका शाहकार भी हिंदी सिनेमा में मील का पत्थर माना जाता है।
यह फ़िल्मकार थे ‘मुग़ल-ए-आज़म’ के निर्देशक के. आसिफ़।
क़िस्सा यूँ है कि गुरुदत्त ने बांग्ला साहित्यकार बिमल मित्र के चर्चित उपन्यास ‘साहब, बीवी और ग़ुलाम’ पर इसी नाम से फ़िल्म बनाई और जिस दिन फ़िल्म रिलीज़ हुई तो गुरुदत्त प्रीमियर की गहमागहमी से फ़ारिग़ होकर रात में के. आसिफ़ से मिलने पहुँचे। बिमल मित्र उनके साथ थे। ‘मुग़ल-ए-आज़म’ हाल ही में रिलीज़ हुई थी और उसने बॉक्स ऑफ़िस पर झंडे गाड़ दिये थे। सलीम-अनारकली की बेपनाह मोहब्बत और उनके बीच दीवार बन कर खड़े मुग़ल शहंशाह अकबर की बेहद दिलकश दास्तान। दिलीप कुमार, मधुबाला, पृथ्वीराज कपूर की अदाकारी के चौतरफ़ा चर्चे हो रहे थे। तारीफ़ और पैसा दोनों के. आसिफ़ के आँगन में बरस रहा था। महफ़िलों के बादशाह थे ही वो।