जानेमाने अभिनेता नसीरुद्दीन शाह की एक चर्चित फ़िल्म - ‘अल्बर्ट पिंटो को ग़ुस्सा क्यों आता है’ - के शीर्षक में उनके निभाये गये पात्र की जगह पर्दे के बाहर की उनकी शख़्सियत को रख दें तो बहुत व्यापक अर्थ वाला एक सवाल बन जाता है - नसीरुद्दीन शाह को ग़ुस्सा क्यों आता है? पिछले कुछ समय से यह देखा जा सकता है कि नसीरुद्दीन शाह अपनी फ़िल्मी दुनिया के अलावा मौजूदा राजनीति और समाज के ढर्रे पर भी बहुत मुखर होकर अपनी नाख़ुशी या नाराज़गी जताते रहते हैं। वो समाज में बढ़ती असहिष्णुता की बहस हो, अल्पसंख्यकों के मसले हों, भीड़ की हिंसा का मामला हो, धर्म आधारित राजनीति की आलोचना हो, नसीरुद्दीन शाह खुल कर बोले हैं और उस वजह से उन्होंने मुख्यधारा के मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक काफ़ी हमले भी झेले हैं। लेकिन इन हमलों से डरकर वो चुप बैठ गये हों, ऐसा भी नहीं दिखता।

पिछले छह-सात सालों में नसीर खुल कर राजनीतिक सामाजिक व्यवस्था से अपनी नाराज़गी जता रहे हैं जिसे उनके मुसलमान होने, बीजेपी के विरोध से जोड़ कर देखा जाता है। इस वजह से नसीर लगातार दक्षिणपंथी राजनीति के निशाने पर हैं। इस काम में राजनीतिक दलों के नेताओं और उनके सोशल मीडिया समर्थकों के साथ-साथ फ़िल्म इंडस्ट्री के उनके कुछ पुराने साथी भी शामिल हैं।