डॉ. वेद प्रताप वैदिक भारत के वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक एवं हिंदीप्रेमी हैं। डॉ. वैदिक अनेक भारतीय व विदेशी शोध-संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों में विज़िटिंग प्रोफ़ेसर रहे हैं।
श्रीलंका में हुए संसदीय चुनाव में वहाँ भाई-भाई राज कायम कर हो गया है। अब उस पर मोहर लगा दी है। बड़े भाई महिंदा राजपक्षे तो होंगे प्रधानमंत्री और छोटे भाई गोटाबया राजपक्षे होंगे राष्ट्रपति! इनकी पार्टी का नाम है- ‘श्रीलंका पोदुजन पेरामून’।
पाकिस्तान ने भारतीय कश्मीर को भी नए नक्शे में अपना हिस्सा बता दिया है तो यदि हम पूरे पाकिस्तान को भी नक्शे में अपना हिस्सा बता दें तो क्या होगा?
यदि कश्मीरी पंडितों के पलायन के लिए आज डाॅ. फारुक जगमोहन के विरुद्ध जाँच बिठाने की माँग कर रहे हैं तो उस जाँच की अग्नि-परीक्षा में सबसे पहले ख़ुद डाॅ. फारुक को खरा उतरना होगा।
नई शिक्षा नीति का सबसे पहले तो इसलिए स्वागत है कि उसमें मानव-संसाधन मंत्रालय को शिक्षा मंत्रालय नाम दे दिया गया।
ऐसा लग रहा है कि राजस्थान की राजनीति पटरी पर शीघ्र ही आ जाएगी। राज्यपाल कलराज मिश्र का यह बयान स्वागत योग्य है कि वह विधानसभा का सत्र बुलाने के विरुद्ध नहीं हैं।
अमेरिका ने चीन के विरुद्ध अब बाक़ायदा शीतयुद्ध की घोषणा कर दी है। ट्रंप प्रशासन ने दुनिया के सभी लोकतांत्रिक देशों से आग्रह किया है कि वे चीन के विरुद्ध एकजुट हो जाएँ। भारत से उनको सबसे ज़्यादा आशा है।
इस समय जैसा दृश्य जयपुर के राजभवन में दिखाई पड़ रहा है, भारत के किसी भी प्रांत में पहले नहीं दिखाई पड़ा।
इस समय ट्रंप प्रशासन चीन के घुटने टिकवाने के लिए कमर कसे हुआ है। इसीलिए वह भारत के प्रति ज़रूरत से ज्यादा नरम दिखाई पड़ रहा है।
सचिन पायलट अब क्या करेंगे, सवाल यह है। क्या वह केंद्र की राजनीति में जाएंगे, या अपने समर्थकों के साथ अलग पार्टी बनाएंगे?
भारत में उत्तर प्रदेश हिंदी का सबसे बड़ा गढ़ है लेकिन देखिए कि हिंदी की वहाँ कैसी दुर्दशा है। इस साल दसवीं और बारहवीं कक्षा के 23 लाख विद्यार्थियों में से लगभग 8 लाख विद्यार्थी हिंदी में अनुतीर्ण हो गए।
यदि कुवैत ने सख़्त निर्णय कर दिया तो उसे देखकर बहरीन, यूएई, सउदी अरब, ओमान, कतर आदि देश भी वैसी ही घोषणा कर सकते हैं। यदि ऐसा हो गया तो 40-50 लाख लोगों को भारत में नौकरियाँ कैसे मिलेंगी?
सरकार ने सोनिया-परिवार के तीन ट्रस्टों पर जाँच बिठा दी है और उन पर यह आरोप भी लगाया है कि उन्होंने चीनी सरकार और चीनी दूतावास से करोड़ों रुपए स्वीकार किए हैं। क्या है मामला?
कोरोना और उसका डर इतना फैला हुआ है कि मज़दूर अभी शहर लौटना नहीं चाहते। ऐसी स्थिति में सरकार को तुरंत कोई रास्ता निकालना चाहिए।
चीनी ‘एप्स’ पर लगे प्रतिबंध का लगभग सभी ने स्वागत किया लेकिन हमारी सरकार एक ही दिन में पलट गई।
सरकारी संस्था प्रसार भारती ने कहा है कि पीटीआई राष्ट्र-विरोधी है। वह चीन पर रिपोर्टिंग से नाराज़। पीटीआई को राष्ट्र विरोधी करार देने और धमकाने के पीछे सरकार का क्या मक़सद है?
देश में 45 साल पहले इंदिरा गाँधी आपातकाल लगा चुकी थीं। शास्त्री भवन में बैठे एक मलयाली अफ़सर को दिखाए बिना किसी अख़बार का संपादकीय छप ही नहीं सकता था। बड़े-बड़े तीसरमारखां संपादक नवनीत-लेपन विशारद सिद्ध हो रहे थे।
गलवान घाटी में हुई मुठभेड़ के बाद भारत में सरकार लगातार सफाई दे रही है लेकिन चीन में इसे लेकर पूरी तरह चुप्पी है।
सुरक्षा परिषद में भारत आठ साल बाद फिर आठवीं बार पहुँचा है। सुरक्षा परिषद का सदस्य चुने जाने के बाद 21वीं सदी की दुनिया को भारत चाहे तो नई दिशा दिखाने की कोशिश कर सकता है।
भारत और चीन के सैनिकों की बीच हुई मुठभेड़ और उसके कारण हताहतों की ख़बर ने देश के कान खड़े कर दिए। इस मुठभेड़ में 20 भारतीय फ़ौजी मारे गए और माना जा रहा है कि चीन के चार या पाँच फ़ौजी मारे गए।
कोरोना संकट के दौरान इमरान ख़ान ने नरेंद्र मोदी को सीख दी है कि वे भारत के ज़रूरतमंदों को वैसे ही नक़द रुपये बांटें, जैसे कि उन्होंने बांटे हैं।
भारत-नेपाल सीमा विवाद को लेकर कई अतिवादी तेवर सामने आ गए। क्या नेपाल के पास इतनी ताक़त है कि वह इस क्षेत्र पर अपना फ़ौजी क़ब्ज़ा जमा लेगा?
दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने यह फ़ैसला कर लिया कि दिल्ली के अस्पतालों में बाहरवालों का इलाज नहीं होगा तो उसका यह फ़ैसला कितना सही है?
भारत, जो कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, यहाँ तो उस अश्वेत की नृशंस हत्या पर जू भी नहीं रेंग रही है। हम लोग क्या इतने स्वार्थी और पत्थरदिल लोग हैं?
भारत में कोरोना का प्रकोप एक तरफ़ नई ऊँचाइयों को छू रहा है और दूसरी तरफ़ हमारे अस्पताल लापरवाही और लूटमार में सारी दुनिया को मात दे रहे हैं।
कई लोगों ने राग अलापे कि भारत में हिंदू और मुसलमानों के रिश्ते बेहद ख़राब हो गए हैं और मुसलमानों पर बहुत ज़ुल्म हो रहा है। क्या सच में ऐसा है?
भारत-चीन सीमा विवाद के बीच देश में यह मांग जोर-शोर से उठ रही है कि हम लोग चीनी माल का बहिष्कार कर दें और भारत सरकार उसके साथ व्यापारबंदी का फ़ैसला ले।