अब 45 साल बाद वह दिन फिर याद आया है। उन दिनों मैं नवभारत टाइम्स का सह-संपादक था। गर्मियों की छुट्टियों में अपने शहर इंदौर में था। 26 जून की सुबह-सुबह मैं अपने मित्र कुप्प सी. सुदर्शन से मिलने गया, सियागंज के पास एक अस्पताल में। वे बाद में आरएसएस के सरसंघचालक बने। सुदर्शनजी का पाँव टूट गया था। मेरे जाते ही सुदर्शनजी ने अपना ट्रांजिस्टर चलाया। पहली ख़बर सुनते ही रोंगटे खड़े हो गए।
आपातकाल: जब पत्रकारों से दस्तख़त करने को कहा तो हाॅल खाली हो गया
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- 27 Jun, 2020

तीसरे दिन कुलदीप नय्यरजी ने दिल्ली के प्रेस क्लब में पत्रकारों की एक सभा बुलाई। कुलदीपजी और मैंने आपातकाल की भर्त्सना की। उसके बाद मैंने कहा कि यहाँ रखे रजिस्टर पर सभी पत्रकार दस्तख़त करें। देखते ही देखते हाॅल खाली हो गया। मेरे सहपाठी और जनसत्ता के संपादक प्रभाष जोशी का शायद उस रजिस्टर में पहला दस्तख़त था। अगले दो-चार दिनों में भारतीय पत्रकारिता की दुनिया ही बदल गई।
25 जून 1975 की रात को ही आपातकाल की घोषणा हो गई थी और सूर्योदय के पहले जयप्रकाशजी समेत कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था। सुदर्शनजी से मिलने के बाद मैं सीधे ‘नई दुनिया’ के कार्यालय पहुँचा। उसके मालिक लाभचंदजी छजलानी, तिवारीजी, प्रधान संपादक राहुलजी बारपुते, अभयजी छजलानी आदि हम सब लोग एक साथ बैठे और यह तय हुआ कि इस मप्र के सबसे लोकप्रिय अख़बार के संपादकीय की जगह खाली छोड़ दी जाए।