15 अप्रैल 2014 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा थर्ड जेंडर के रूप में मान्यता दिए जाने के बावजूद हिजड़े भारतीय समाज के लिए अभी पराये ही हैं। साफ़ तौर पर अगर कहूँ तो इस लेख का उद्देश्य हिजड़ों की जीवन-शैली पर किसी तरह का इन्वेस्टिगेशन करना नहीं है, और न ही यह स्थापित करना है कि अपने अस्तित्व के लिए अपने हिस्से की जमीन या इलाके के मालिक होने की उनकी मान्यता पूरी तरह निर्दोष या बहुत आसान है। बल्कि यहाँ मेरा उद्देश्य जमीन या इलाके के मालिक होने की उस मान्यता को रेखांकित करने की है जिसकी उत्त्पत्ति शोषण और लगातार हाशिये पर धकेल दिए जाने के कारण हुई है।
हिजड़े और संपत्ति का अधिकारः पलट चुकी है उपेक्षा की बिसात
- विश्लेषण
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- 29 Mar, 2025
ब्रिटिश शासन के सौ-दो सौ सालों के दौरान हिजड़े संपत्ति के ज्यादातर अधिकारों और उपयोगों से वंचित किये जा चुके हैं, जहाँ अब वे हमारे समाज में हाशिए पर रहकर उपेक्षित जीवन जीने को अभिशप्त हैं। जिसका नतीजा यह हुआ कि वे जिन शहरों और इलाक़ों में रहते हैं वहाँ उनके द्वारा अपने लिए बनाई गयी एक व्यवस्था ही अब उनके संपत्ति के उपयोगों और अधिकारों को बनाती और बचाती है। ये अधिकार उनके गुरु द्वारा तय किये गये एक इलाके में घूमने और आशीर्वाद के एवज में मिला हुआ दान है। इस आलेख में आप लोगों के सामने यह प्रस्थापना रखी गई है कि संपत्ति के अधिकारों के परम्परागत स्वरुप की जगह यदि किसी जमीन या इलाके के उपयोग पर आधारित अधिकारों को देखें, तब जमीन अथवा इलाके का मालिकाना स्वरूप कैसा होगा।
