दक्षिण भारत के राज्यों में बहुभाषा की वकालत क्यों की जा रही है? हिंदी भाषी राज्यों को लेकर ऐसा क्यों नहीं है? वह भी तब जब हिंदी भाषी राज्यों में 90% से ज़्यादा लोग एकभाषी हैं। कई राज्यों में तो यह 95 फ़ीसदी तक है। जबकि दक्षिण भारत के राज्यों में एक भाषी लोगों का अनुपात हिंदी राज्यों की तुलना में कम है। इसका मतलब है कि दक्षिण के राज्यों में दो या दो से ज़्यादा भाषा बोलने वाले लोगों का अनुपात हिंदी भाषी राज्यों से ज़्यादा है। तो सवाल है कि बहुभाषा को लागू करने की ज़रूरत दक्षिण भारत में है या हिंदी भाषी राज्यों में?
हिंदी पट्टी में 90% लोग एकभाषी तो दक्षिण पर बहुभाषा का दबाव क्यों?
- विश्लेषण
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- 5 Mar, 2025
तीन भाषा नीति को लेकर केंद्र और तमिलनाडु के बीच विवाद क्यों है? हिंदी भाषी राज्यों में 90% लोग एकभाषी हैं, जबकि बाक़ी देश में दो भाषाएँ जानने वाले लोग ज़्यादा। इसके क्या मायने, पढ़िए विश्लेषण।

यह सवाल इसलिए क्योंकि तमिलनाडु और केंद्र सरकार के बीच तीन भाषा नीति को लेकर विवाद बना हुआ है। ताज़ा टकराव ने एक बार फिर भाषा के पुराने विवाद को हवा दे दी है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने हिंदी थोपने के ख़िलाफ़ राज्य के रुख को दोहराया। उन्होंने दो-भाषा नीति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई है। दो भाषा नीति में तमिल और अंग्रेजी शामिल हैं।