पिछले लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक रैली में दावा किया था कि उनकी सरकार अस्सी करोड़ लोगों को मुफ़्त अनाज देती है, ऐेसे में जो उन्हें वोट नहीं देगा उसे पुण्य नहीं मिलेगा। पुण्य-पाप की बात अपनी जगह लेकिन पीएम मोदी ने स्वीकार किया था कि उनके शासन के दसवें साल भी अस्सी करोड़ लोग सरकार से मिलने वाले मुफ़्त अनाज पर निर्भर हैं। 


इस ग़रीबी ने बड़े पैमाने पर असमानता पैदा की है जिसकी बात विपक्ष ही नहीं, नितिन गड़करी जैसे केंद्रीय मंत्री भी कर रहे हैं। लेकिन प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) ने वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए दावा किया कि भारत आय असमानता को कम करने में दुनिया का चौथा ‘सबसे समान देश’ बन गया है। क्या ये दोनों बातें एक साथ सच हो सकती हैं?

भारत की स्थिति: गरीबी और भुखमरी

ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2024 के अनुसार, भारत 129 देशों में 105वें स्थान पर है। इसका मतलब है कि भारत में भुखमरी की स्थिति गंभीर है। पड़ोसी देश जैसे श्रीलंका, नेपाल, और बांग्लादेश इस मामले में भारत से बेहतर स्थिति में हैं। वर्ल्ड बैंक के अनुसार, भारत की प्रति व्यक्ति आय $2,880 है, लेकिन यह औसत आंकड़ा है। अगर शीर्ष 1% की आय को हटा दें, तो यह $1,670 तक गिर जाता है, जो ज्यादातर भारतीयों की कम आय को दर्शाता है।

गरीबी के आंकड़े भी चिंताजनक हैं। भारत ने अपनी आधिकारिक गरीबी रेखा को 2011 के बाद अपडेट नहीं किया, जिसके कारण गरीबी में कमी के दावे भ्रामक हो सकते हैं।

नितिन गडकरी का बयान: संपत्ति का केंद्रीकरण 

5 जुलाई 2025 को केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने नागपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा, “गरीबों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है और धन कुछ अमीर लोगों के हाथों में सिमटता जा रहा है। ऐसा नहीं होना चाहिए और धन का विकेंद्रीकरण जरूरी है।” यह बयान 6 जुलाई को मीडिया में सुर्खियां बना। 

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी

गडकरी का यह बयान सीधे-सीधे सरकार के उन दावों पर सवाल उठाता है, जो भारत को आर्थिक समानता की मिसाल बताते हैं। उन्होंने नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह की आर्थिक सुधारों की तारीफ भी की, लेकिन साथ ही यह भी माना कि इन सुधारों के बाद असमानता बढ़ी है।

PIB का दावा और हक़ीक़त 

6 जुलाई 2025 को PIB ने एक प्रेस रिलीज जारी की, जिसमें दावा किया गया कि वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के आधार पर भारत का जिनी इंडेक्स 25.5 है, जो 2011-12 में 28.8 था। PIB ने कहा कि भारत दुनिया का चौथा सबसे समान देश है, और केवल स्लोवाक रिपब्लिक, स्लोवेनिया, और बेलारूस ही भारत से बेहतर हैं। इस दावे को इंडियन एक्सप्रेस, द हिंदू, बिजनेस स्टैंडर्ड, और दैनिक भास्कर जैसे बड़े अखबारों ने बिना जांचे-परखे छाप दिया। दावा किया गया कि भारत ने चीन (35.7), अमेरिका (41.8), और G7 व G20 देशों को पीछे छोड़ दिया है।

लेकिन ये वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के साथ फर्जीवाड़ा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का कंजम्पशन यानी खपत आधारित जिनी इंडेक्स 25.5 है, लेकिन इसे अन्य देशों के आय-आधारित जिनी इंडेक्स से तुलना नहीं किया जा सकता। यह सेब और संतरे की तुलना जैसा है। भारत का आय-आधारित जिनी इंडेक्स 61 है (2019 और 2023 के आंकड़े), जो भारत को अत्यधिक असमान देशों की सूची में 216 देशों में 176वें स्थान पर रखता है।

वर्ल्ड बैंक ने यह भी चेतावनी दी कि 2022-23 के कंजम्पशन सर्वे में डेटा की सीमाओं और पद्धति में बदलाव के कारण असमानता को कम करके आंका गया हो सकता है। 2011-12 के सर्वे के साथ इसकी तुलना भी अविश्वसनीय है। यानी PIB ने न केवल गलत तुलना की, बल्कि वर्ल्ड बैंक की सावधानियों को भी नजरअंदाज किया।

जिनी इंडेक्स क्या है? 

जिनी इंडेक्स एक सांख्यिकीय माप है, जिसे इटली के सांख्यिकविद कोराडो जिनी ने विकसित किया था। यह किसी देश में आय या संपत्ति की असमानता को मापता है। इसका मान 0 से 100 के बीच होता है:

0: पूर्ण समानता, जहां सभी की आय बराबर हो। 

100: पूर्ण असमानता, जहां सारी आय एक व्यक्ति के पास हो। 
भारत का कंजम्पशन-आधारित जिनी इंडेक्स 25.5 हो सकता है, लेकिन आय-आधारित जिनी इंडेक्स 61 है, जो गंभीर असमानता को दर्शाता है। PIB ने कंजम्पशन और आय-आधारित इंडेक्स को मिलाकर गलत निष्कर्ष निकाला। उदाहरण के लिए, एक मजदूर चार रोटी खा सकता है और एक अरबपति दो, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मजदूर अमीर है। अरबपति अपनी आय का बड़ा हिस्सा निवेश या बचत में लगाता है, जिसे कंजम्पशन सर्वे में नहीं देखा जाता।

असमानता के वास्तविक आंकड़े 

वर्ल्ड इनइक्वलिटी डेटाबेस (2022-23) और ऑक्सफैम इंडिया (2023) के आंकड़े भारत में असमानता की कड़वी सच्चाई बयान करते हैं:

वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब के अनुसार, 2014 में BJP सरकार के सत्ता में आने के बाद असमानता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 2022-23 में शीर्ष 1% की आय और संपत्ति का हिस्सा ऐतिहासिक रूप से सबसे ऊंचे स्तर पर है। भारत में असमानता की स्थिति ब्रिटिश राज से भी बदतर हो गई है।

आंकड़ों में हेरफेर 

मोदी सरकार पर पहले भी आंकड़ों में हेरफेर के आरोप लगते रहे हैं। जनवरी 2019 में राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (NSC) के कार्यवाहक प्रमुख पीसी मोहनन और सदस्य जे वी मीनाक्षी ने इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार बेरोजगारी के आँकड़े दबा रही थी। NSC ने 5 दिसंबर 2018 को नेशनल सैंपल सर्वे का डेटा मंजूर कर सरकार को सौंप दिया था, लेकिन इसे जारी नहीं किया गया। एक समय NSC की रिपोर्टें सरकार के लिए आईना और दुनिया के लिए भारत की सच्ची तस्वीर हुआ करती थीं। लेकिन आज आंकड़ों की निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं।

मीडिया की गलती या दबाव? 

PIB के दावे को जिस तरह बड़े अखबारों और चैनलों ने बिना जांचे-परखे छापा, वह पत्रकारिता के लिए शर्मनाक है। द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस, और बिजनेस स्टैंडर्ड जैसे अखबारों ने PIB की प्रेस रिलीज को जस का तस छाप दिया। क्या यह संपादकीय गलती थी, या सरकारी दबाव और विज्ञापनों के पैसे का असर? यह संयोग नहीं हो सकता कि सभी बड़े मीडिया संस्थानों ने एक साथ वही गलती की। यह वही स्थिति है, जब सरकार समर्थक ट्वीट कई पत्रकारों के अकाउंट से एक साथ पोस्ट होते हैं।

मीडिया की स्वतंत्रता पर सवाल उठ रहे हैं। एक समय था जब मीडिया सरकार के झूठ की पोल खोलता था, लेकिन आज उसकी अपनी विश्वसनीयता संकट में है। किसी चौराहे पर खड़े व्यक्ति से मीडिया की राय पूछिए, जवाब निराशाजनक होगा।

भारत एक उभरती आर्थिक शक्ति है, लेकिन इसका फायदा कुछ मुट्ठीभर लोगों तक सीमित है। PIB का दावा न केवल गलत है, बल्कि यह गडकरी के बयान के बाद जानबूझकर भ्रम फैलाने की कोशिश भी हो सकता है। वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट को गलत तरीके से पेश किया गया, और मीडिया ने इसे बिना जांचे छापकर अपनी विश्वसनीयता पर सवाल उठाए। वर्ल्ड इनइक्वलिटी डेटाबेस बताता है कि भारत में असमानता ब्रिटिश राज से भी बुरी हालत में है। इस स्थिति का सामना करने की ज़रूरत है न कि आँकड़ों का फ़र्जीवाड़ा करके इस हक़ीक़त पर पर्दा डालने की।