प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अपनी जापान यात्रा के दौरान वहां प्रवासी भारतीयों के एक कार्यक्रम में आत्ममुग्ध अंदाज में कहा, ''मैं मक्खन पर नहीं, पत्थर पर लकीर खींचता हूँ।’’ मोदी की पत्थर पर खींची गई लकीर का तो नहीं मालूम लेकिन दुनिया जानती है कि मोदी लकीर खींचने में माहिर हैं, बल्कि यूं कहें कि उनकी समूची राजनीति ही लकीरें खींचने पर आधारित है। उन्हें प्रधानमंत्री बने आठ साल पूरे हो चुके हैं। इन आठ सालों में उन्होंने और उनकी सरकार ने लकीरें खींचने के काम को ही प्राथमिकता के आधार पर किया है।

पिछले सात-आठ वर्षों में देश में जातीय और सांप्रदायिक नफरत, तनाव और हिंसा की कैसी स्थिति है? क्या लोगों के बीच खाई और चौड़ी नहीं हुई है? आर्थिक हालात कैसे हैं और विदेश नीति का क्या हाल है?
मोदी ने भारतीय समाज में धर्म, जाति, संप्रदाय, भाषा, क्षेत्र आदि के स्तर पर लकीरें खींची हैं। गुजरात में क़रीब साढ़े बारह साल तक मुख्यमंत्री रहते हुए भी उन्होंने यही काम किया था। इसीलिए तीन साल पहले अमेरिका की मशहूर पत्रिका 'द टाइम’ ने अपने कवर पृष्ठ पर उन्हें 'डिवाइडर इन चीफ’ का खिताब अता किया था। इसके अलावा भी अंतरराष्ट्रीय स्तर के कई प्रतिष्ठित संस्थानों और पत्र-पत्रिकाओं ने भी भारत के अंदरुनी हालात पर चिंता जताते हुए मोदी सरकार की विभाजनकारी नीतियों की आलोचना की है।