घटनाओं को अलग-अलग देखने से अकसर सचाईयाँ छिप जाती हैं। हम घटनाएं तो देख पाते हैं, उनके असर का अंदाज़ा नहीं लगा सकते। यह अनुमान भी नहीं लगा सकते कि दुनिया किस दिशा में जा रही है। इसलिए हमें उन्हें एक-दूसरे से जोड़कर पढ़ना-समझना पड़ता है।
2020 : राष्ट्रोन्माद, निरंकुश प्रवृत्तियों के मज़बूत होने का साल
- विश्लेषण
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- 30 Dec, 2020

स्वतंत्रता, समानता और न्याय पर लगातार प्रहार होने के बावजूद कोई सार्थक हस्तक्षेप कहीं से होता नहीं दिख रहा है। इस साल ये चिंताएं बढ़ गई हैं कि कहीं दुनिया एक बर्बर भविष्य में तो दाखिल नहीं हो रही है। यह बर्बरता बहुराष्ट्रीय कंपनियों की अदम्य भूख का नतीजा है क्योंकि वे अपनी समस्त शक्तियों के साथ निरंकुशता, राष्ट्रोन्माद और हिंसा के साथ खड़ी हैं।
हालाँकि भूमंडलीकरण की तरफ भागती दुनिया ने पीछे मुड़ने का सिलसिला पाँच-सात साल पहले ही शुरू कर दिया था। नवउदारवादी आर्थिक नीतियों से उपजी समस्याओं, पूँजी का भूमंडलीकरण तथा संकेंद्रीकरण (कुछ मुल्क़ों और उद्योगपतियों के पास धन-संपदा का एकत्रित होना) और शक्तिशाली राष्ट्रों के सांस्कृतिक प्रभुत्व के ख़तरे ने दुनिया भर के देशों को यह सोचने के लिए विवश कर दिया था कि क्या वे सही रास्ते पर हैं।
पहचान की राजनीति
अधिकांश देशों में इन कारणों से एक तरह की असुरक्षा का वातावरण बनने लगा था। इसने पहचान की राजनीति को नया मौक़ा और ऊर्जा दे दी और आगे चलकर उसने नस्लवाद को मज़बूत करना शुरू कर दिया।