बिहार में विशेष गहन संशोधन यानी एसआईआर पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को हुई सुनवाई के दौरान एक्टिविस्ट योगेंद्र यादव ने चुनाव आयोग से मांग की कि वह सार्वजनिक करे कि इस प्रक्रिया के बाद कितने व्यक्तियों को विदेशी मानकर वोटर लिस्ट से हटाया गया। उन्होंने बेंच के सामने कहा कि यदि सुप्रीम कोर्ट ईसीआई को इस आँकड़े को बताने का निर्देश देता है तो यह 'देश की महान सेवा' होगी। उन्होंने कहा कि इस बार एसआईआर के दौरान मतदाता सूची में देश के इतिहास में सबसे बड़ी कटौती हुई है, जिसमें 47 लाख नाम हटाए गए।

यह सुनवाई बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एसआईआर की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर हो रही थी। जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जॉयमाला बागची की बेंच ने सुनवाई के दौरान अंतरिम आदेश जारी किया कि वोटर लिस्ट से हटाए गए व्यक्तियों को नि:शुल्क कानूनी सहायता उपलब्ध कराई जाए, ताकि वे अपील दायर कर सकें। मामला अगली सुनवाई 16 अक्टूबर को निर्धारित की गई है।
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कितने विदेशी मिले?

जून 2025 में एसआईआर की घोषणा करते हुए ईसीआई ने मतदाता सूचियों में अवैध प्रवासियों और गैर-नागरिकों की संभावित मौजूदगी पर चिंता जताई थी। बिहार के सीमांचल क्षेत्र को अवैध प्रवासियों का केंद्र बताया जाता है, लेकिन योगेंद्र यादव ने ईसीआई के ही आँकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि पूरे 7.4 करोड़ मतदाताओं में से केवल 1087 आपत्तियाँ नागरिकता के आधार पर दर्ज की गईं, जिनमें से मात्र 390 को सही पाया गया। उन्होंने व्यंग्यपूर्ण लहजे में कहा, "796 लोग तो खुद के खिलाफ आवेदन दाखिल कर कह रहे थे 'मैं विदेशी हूं'! हम किस दुनिया में जी रहे हैं?"

यादव ने बेंच से अनुरोध किया, 'यह अदालत ईसीआई को निर्देश दे सकती है कि गैर-नागरिक होने के आधार पर कितने नाम हटाए गए, इसका खुलासा करे। यह देश के लिए बड़ी सेवा होगी।' 

योगेंद्र यादव ने जोर देकर कहा कि सीमांचल जिले में बहुत कम नाम हटाए गए जो 'विदेशी' प्रवासियों के कथित खतरे के दावों पर सवाल उठाते हैं।

ईसीआई के अनुसार, अंतिम सूची में 7.42 करोड़ नाम हैं, जबकि वयस्क आबादी 8.22 करोड़ अनुमानित है।

'बीपी ठीक हुआ तो शॉक थेरेपी दे दी'

योगेंद्र यादव ने एसआईआर को एक उदाहरण से समझाया। उन्होंने कहा, 'रोगी को बीपी की समस्या थी। समस्या ठीक हो गई। अगले दिन शॉक थेरेपी दे दी, अब लो बीपी हो गया। यही बिहार में हुआ है।' उन्होंने दावा किया कि 47 लाख नामों को हटाया गया। ऐसा सचेत रहने के कारण हुआ कि कम नाम हटाए गए जो सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम हस्तक्षेप के कारण संभव हुआ। उन्होंने कहा कि आधार कार्ड को स्वीकार्य दस्तावेज बनाने का आदेश और बूथ लेवल ऑफिसर्स की सक्रियता ने लाखों लोगों को फॉर्म भरने में मदद की। योगेंद्र यादव का अनुमान था कि बिना कोर्ट के हस्तक्षेप के नाम हटाए जाने वालों की संख्या 2 करोड़ तक पहुंच सकती थी। उन्होंने कहा, 'जब यह अदालत ने ब्रेक लगाना शुरू किया, तभी ईसीआई ने काम करना शुरू किया।'
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'10 साल की प्रगति मिट्टी में मिली'

एसआईआर के बाद बिहार की वोटर लिस्ट में लिंग अनुपात बिगड़ गया। योगेंद्र यादव ने कहा, 'लिंग अंतर 20 लाख से घटकर 7 लाख रह गया था। एसआईआर के बाद यह 16 लाख हो गया। 10 साल की उपलब्धियां मिट गईं।' सितंबर 2025 में लिंग अनुपात 934 था, जो अंतिम सूची में 892 गिर गया। उन्होंने चेतावनी दी कि यह पैटर्न जहां भी एसआईआर लागू होगा, वहीं दोहराया जाएगा। उन्होंने ईसीआई से मांग की कि 12 दस्तावेजों में से कितने प्रतिशत का उपयोग नागरिकों ने गणना फॉर्म भरने में किया, इसका प्रतिशत बताए।

अटपटे नाम, डुप्लिकेट एंट्रीज में गड़बड़ी

अंतिम सूची की सटीकता पर सवाल उठाते हुए योगेंद्र यादव ने आरोप लगाया कि कई वोटर नाम अटपटे हैं, जिनमें खाली एंट्रीज या बिहार की सूची में कन्नड़ और तमिल लिपि में नाम हैं। उन्होंने कहा, 'यदि यह अटपटा नहीं है, तो फिर क्या अटपटा है? 4.21 लाख मामलों में गलत हाउस नंबर हैं, 5.24 लाख डुप्लिकेट नाम हैं। कुछ मामलों में ड्राफ्ट से अंतिम सूची में 3000 ज्यादा नाम हैं।' 

उन्होंने ईसीआई से पूछा कि क्या डी-डुप्लिकेशन सॉफ्टवेयर का उपयोग किया गया? उन्होंने टिप्पणी की, 'मैं हंसूं या रोऊं? भारत आईटी हब है, बेसिक एआई प्रोग्राम फोटो और नाम से डुप्लिकेट पकड़ सकता है।' इसके अलावा, घरों के डेटा में भारी गड़बड़ियाँ हैं। लाइव लॉ के अनुसार उन्होंने कहा, 'एक घर में 100 या इससे ज्यादा नाम संदिग्ध हैं। 2200 ऐसे घर हैं, जिनमें 4.5 लाख लोग हैं।' इस पर जस्टिस बागची ने टिप्पणी की, 'कुछ शुद्धिकरण तो हुआ है क्योंकि एसआईआर से पहले यह संख्या 2900 थी'। यादव ने जवाब दिया, 'फिर तो हमें बधाई देनी चाहिए।'
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खुद को मृत बताने वाले 41 लोग

ईसीआई के दावे के विपरीत कि 21 लाख नए नाम प्रथम बार वोटर हैं, योगेंद्र यादव ने कहा कि इनमें से कम से कम 20% ही 18-19 वर्ष के हैं, जबकि 40% से अधिक 25 वर्ष से ऊपर के हैं, और 6000 से अधिक 80 वर्ष से ऊपर के हैं। उन्होंने कहा, 'लगभग 4 लाख आपत्तियां दर्ज की गईं। 2.42 लाख आपत्तियों में से 1.40 लाख ने खुद के नाम पर आपत्ति की - नाम हटा लो। 41 ने कहा मैं मृत हूं, ईसीआई ने 39 को हटा दिया। यही हाल है।'

कोर्ट का अंतरिम आदेश क्या?

सुनवाई के दौरान बेंच ने ईसीआई से 3.66 लाख हटाए गए वोटरों का विवरण मांगा, जिसमें यह साफ़ किया जाए कि क्या नए नाम मूल रूप से हटाए गए थे या ताजा जोड़े गए। अदालत ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए कहा कि बिहार विधि सेवा प्राधिकरण को निर्देश दिया कि हटाए गए वोटरों को अपील दाखिल करने में नि:शुल्क कानूनी सहायता प्रदान की जाए। अगली सुनवाई अब 16 अक्टूबर को होगी।