Bihar SIR controversy: बिहार में मतदाता सूची में विशेष बदलाव प्रक्रिया विवादों में उलझ गई है। वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम ने पटना में मतदाता सूची धोखाधड़ी का पर्दाफ़ाश किया है। विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव और राहुल गांधी की आशंकाएं सही साबित हो रही हैं।
बिहार में चुनाव आयोग द्वारा चलाए जा रहे विशेष गहन संशोधन (SIR) प्रक्रिया को लेकर विवाद चरम पर है। वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम और बिहार के अन्य वीडियो पत्रकारों ने
इस प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर अनियमितताओं को उजागर किया है। विपक्षी दल आरजेडी और कांग्रेस इसे पहले से ही वोट चोरी की साजिश कह रहे थे।
अजीत अंजुम के ताजा वीडियो में पटना के एक ब्लॉक कार्यालय में ‘SIR’ फॉर्म्स में फर्जीवाड़े के सबूत पेश किए गए हैं। जहां मतदाताओं को यह कहते देखा और सुना जा सकता है कि उनकी सहमति या हस्ताक्षर के बिना उनके नाम से फॉर्म जमा किए गए। इस खुलासे ने चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठा दिए हैं।
अजीत अंजुम के वीडियो में दस मतदाताओं ने बताया: उनकी मुलाकात किसी बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) से नहीं हुई। उन्हें कोई फॉर्म नहीं दिया गया। उन्होंने किसी फॉर्म पर हस्ताक्षर नहीं किए। फिर भी, उनके नाम से फर्जी दस्तखत कर ‘SIR’ फॉर्म जमा किए गए। पत्रकार अजीत अंजुम ने बेगूसराय के एक प्रखंड में भी ऐसी अनियमितताओं का जिक्र किया, जहां उनके खुलासे के बाद
स्थानीय प्रशासन ने उनके खिलाफ FIR दर्ज कराई है। उन्होंने इसे सच्चाई को दबाने की कोशिश बताया। इसके अलावा, तेजस्वी यादव ने जमुई में एक जेली विक्रेता के पास हजारों फॉर्म मिलने और पटना के गांधी मैदान के पास फ्लाईओवर पर फेंके गए फॉर्म्स के वीडियो का हवाला दिया, जो फर्जीवाड़े की गंभीरता को दर्शाता है।
फौजी अफसर के साथ धोखाधड़ी
अजीत अंजुम ने एक वीडियो में एक फौजी अफसर की कहानी पेश की है। 'SIR' का फॉर्म भरने फौजी अफसर छुट्टी लेकर जोधपुर से जहानाबाद आए। BLO ने FORM उनके घर पर छोड़ दिया था . फौजी अफसर ने अपना, अपनी पत्नी और मां का फॉर्म भरकर दस्तावेजों के साथ BLO को अप्रोच किया। तीन दिन तक BLO उनसे मिले नहीं। चौथे दिन यानी 18 जुलाई को ये फौजी अफसर खुद BLO के घर पहुंच गए। BLO ने कहा कि मैंने आपके सारे फॉर्म को अपलोड कर दिया है। फौजी अफसर ने नाराजगी जताई। पूछा - मेरा FORM मेरे पास है तो आपने कैसे जमा कर दिया? BLO ने कहा - एक्नॉलेजमेंट वाला फॉर्म डाउनलोड करके उसे भरकर जमा कर दिया। खुद को फंसते देख BLO ने अपना माफीनामा लिखकर दिया। फौजी अफसर के किसी साथी ने BLO के फर्जीवाड़े का सबूत रिकॉर्ड किया। BLO ने कहा कि ऊपर के अधिकारियों के दबाव में ये सब करना पड़ा। फौजी अफसर अब सवाल उठा रहे हैं कि मेरा फर्जी दस्तखत करके FORM क्यों जमा किया गया? अजीत अंजुम का यह वीडियो आए कई घंटे हो चुके हैं। चुनाव आयोग का मुंह सिल उठा है। उसने इस फर्जीवाड़े पर कोई जवाब नहीं दिया, खंडन नहीं किया, स्पष्टीकरण नहीं दिया।
एक शख्स की मां का निधन छह साल पहले हो गया था। पिता का निधन सात महीने पहले हो गया था। लेकिन उनके मृत माता -पिता का फॉर्म अपलोड कर दिया गया? खुद वो शख्स परेशान है कि आखिर उनका और बाकी लोगों का फॉर्म कैसे जमा हो गया ? यह सरेआम धांधली है। लेकिन चुनाव आयोग मानेगा नहीं। अजीत अंजुम ने पटना के डीएम को यह वीडियो टैग करते हुए उनकी टिप्पणी मांगी है।
इंडिया गठबंधन (RJD, कांग्रेस, CPI(ML), CPI, शिवसेना (UBT), JMM) ने ‘SIR’ को “राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) का बैकडोर” और “NDA के पक्ष में मतदाता सूची में हेरफेर” की साजिश करार दिया है। विपक्षी नेता, जैसे
RJD के तेजस्वी यादव और कांग्रेस के राहुल गांधी, ने आरोप लगाया कि ‘SIR’ के कड़े दस्तावेजीकरण नियम (जैसे 2003 की मतदाता सूची या माता-पिता के जन्म प्रमाण) के कारण गरीब, दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक और प्रवासी मतदाताओं को मतदाता सूची से हटाया जा सकता है।
इस अभियान के शुरू होते ही
तेजस्वी यादव ने X पर लिखा था, “लोकतंत्र की जननी बिहार में मतदाता अधिकारों का चीरहरण हो रहा है। फर्जी फॉर्म और असंवैधानिक कार्यप्रणाली लोकतंत्र के लिए घातक है।” इस मुद्दे पर नेता विपक्ष
राहुल गांधी ने पटना रैली में कहा था- “महाराष्ट्र चुनावों में जिस तरह मत चोरी हुई, वैसी ही कोशिश बिहार में हो रही है। क्या चुनाव आयोग अब BJP का ‘चुनाव चोरी’ विंग बन गया है?”
विपक्ष का दावा है कि बिहार के 4 करोड़ प्रवासी मजदूरों, ग्रामीण और गरीब आबादी के लिए आयोग के 11 दस्तावेजों को जुटाना मुश्किल है, जिससे उनका वोटिंग अधिकार छिन सकता है।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा है कि “BJP ने चुनाव आयोग के सहयोग से बिहार में करोड़ों लोगों का वोटिंग अधिकार छीनने का मास्टर प्लान बनाया था।” TMC नेता महुआ मोइत्रा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर ‘SIR’ को “लोकतंत्र पर हमला” बताया, जिसमें उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया BJP के इशारे पर शुरू की गई ताकि गरीब और प्रवासी मतदाताओं को वोट से वंचित किया जाए।
ECI ने दावा किया कि मतदाता सूची में नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार के नागरिकों के नाम पाए गए, जिन्हें 1 अगस्त के बाद नागरिकता जांच के बाद हटाया जाएगा।
पत्रकारों की खोजी रिपोर्ट से यह साफ हो गया कि बिहार एसआईआर प्रक्रिया में उन लोगों को विदेशी नागरिक मान लिया गया, जो तय दस्तावेजों को जमा नहीं करा सके। ऐसे लोगों के फॉर्म इसीलिए स्वीकार ही किए गए थे, ताकि उनको फर्जी घोषित किया जा सके। जिन मृत लोगों के फॉर्म जमा या अपलोड किए गए, आखिर उनके दस्तावेज किसने दिए होंगे। यह सवाल तो किया ही जाएगा। तेजस्वी यादव ने कहा, “ECI ऐसी खबरें (विदेशी नागरिक) फैलाकर अपनी गलतियों को छिपाने की कोशिश कर रहा है।” उन्होंने फर्जी फॉर्म्स के सबूत पेश किए, जैसे जेली विक्रेता और सड़कों पर फेंके गए फॉर्म्स।
यही वजह है कि राहुल गांधी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों से बिहार की तुलना की है। उन्होंने 41 लाख अतिरिक्त मतदाताओं और 76 लाख वोटों की गड़बड़ी की बात उठाई थी। उन्होंने कहा था कि बिहार में भी महाराष्ट्र जैसी ही “रिगिंग का ब्लूप्रिंट” अपनाया जा रहा है।
बिहार एसआईआर का मामला सामने आने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई को याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए ECI को आधार, राशन कार्ड और वोटर ID जैसे सामान्य दस्तावेज भी स्वीकार करने की सलाह दी। आयोग को 25 जुलाई तक जवाब देना है। 28 जुलाई को इस मामले की सुनवाई है।
बहरहाल, ‘SIR’ प्रक्रिया में फर्जीवाड़े के खुलासे, खासकर अजीत अंजुम की रिपोर्टिंग, ने बिहार विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठाए हैं। विपक्ष का मानना है कि यह NDA के पक्ष में मतदाताओं को हटाने की साजिश है, जिसे वे महाराष्ट्र की तर्ज पर “वोट चोरी” की कोशिश बता रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप और जनता का विरोध इस प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाने की मांग करता है। लेकिन चुनाव आयोग का अड़ियल रवैया मामले रो उलझा रहा है। बिहार में 243 सीटों के लिए होने वाले चुनावों में यह बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनेगा।